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10:45, 27 अक्टूबर 2016 का अवतरण

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इससे तो अच्छा है -आदित्य चौधरी

करना सियासत, तिजारत की ख़ातिर ।[1]
इससे तो अच्छा है नाक़ारा रहते ।।[2]

चूल्हे बुझाकर, अलावों का मजमा ।
इससे तो अच्छा है कुहरे में रहते ।।

गर है लियाक़त का आग़ाज़ सजदा ।[3]
इससे तो अच्छा है आवारा रहते ।।

महलों की खिड़की से रिश्तों को तकना ।
इससे तो अच्छा है गलियों में रहते ।।

ग़ैरों की महफ़िल में बेवजहा हँसना ।
इससे तो अच्छा है तन्हा ही रहते ।।

बेमानी वादों से जनता को ठगना ।
इससे तो अच्छा है तुम चुप ही रहते ।।


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. सियासत=राजनीति, तिजारत=व्यापार
  2. नाक़ारा=बेरोज़गार
  3. लियाक़त=तमीज़, आग़ाज़=शुरुआत

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