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ये तेरा घर ये मेरा घर -आदित्य चौधरी


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यह लेख, भारतकोश के लिए लिखे मेरे संपादकीय ‘ज़माना' का अगला भाग भी माना जा सकता है…

  • छत का कमरा 

“अरे ज़रा मालूम तो कर राजेन्दर की भऊ मंदिर से लौटी… कि पुजारी के संग भाग गई…?”
“मुझे क्या मालूम बड़ी बुआ मैंने क्या दूरबीन थोड़े ही लगा रक्खी है तुम्हारी तरह… जो बड़े फूफा जी की जासूसी यहीं से कर लेती हो… “

  • आंगन 

“तू दिलीप कुमार की राम और श्याम देख आई… ? हाय मरी कितनी चंट है… किसोर की भऊ को भी ले जाती वो भी तो दिलीप कुमार पै मरै…” 

  • रसोई    

“मेरे तो बाप की बस की नईं है ये अट्ठाइस लोगों का आटा माढ़ना… जा! जाके नैक जगदीस चाचा को बुला ला वो मदद कर देगा… जइयो बेटा… जरा दौड़ के…”

  • बरामदा 

“झूला ताईऽऽऽ ! ओ झूला ताईऽऽऽ, महादेव ऊपर है क्या ? नैक नीचे तो भेजोऽऽऽ देखो जे नादिया बाबा आ गए… दो पस चून डाल दे…” 

  • आंगन

“छोटी चाचीऽऽऽ ! टाँड़ से हाँडी उतारवा के बरोसी के पास रखने की कह रई है अम्मा। छींके से टमाटर भी निकाल लेना हैंऽऽऽ और तिखाल में एक लालटेन भी जलवा दोऽऽऽ!” 

  • चौखट

“अजी माताजीऽऽऽ! माताजीऽऽऽ! लंहगा तो रंग लायौ पर जे दिल्ली बारी टैरालीन की धोबती पै रंग ई नाय चढ़ि रौ… कहा करुँ?” 
“चुप्प है जा म्हों भुरसे! गैया लात जाएगी, बैसेईं लौमना बांधि कै काढ़ि रई ऊँ” 

  • छत

“पल्लोऽऽऽ ओ पल्लोऽऽऽ देख तो सई... घन्टोली हलवाई के यहाँ ते इमरती आईं कि नईं… ? न आई हों तो सामने खड़ी होके बनवईयो, मरा ढड़ेल घी में ही न बना दे कहीं…कम ते कम तेरे बाबा के सराद में तो ताजे घी की बनाबै… और सुन वो सिकंदर रंगरेज को बुला लइयो”

          ये जो सारे दृश्य आप देख रहे हैं ये भारतीय समाज के संयुक्त परिवार या कहें कि 'जौइंट फ़ैमिली' का माहौल है। कहाँ गए ये संयुक्त परिवार… और क्यों गए? आइए नये-पुराने ज़माने की ज़िन्दगी पर चर्चा करते हैं। 
          दुनिया में जिन खोजों का विशेष महत्व है उनमें पहिया, शून्य, दशमलव, π (पाई), पुस्तक छपाई, गुरुत्वाकर्षण, बैटरी, मोटर, डायनमो आदि हैं। इनमें डायनमो ने जो प्रभाव डाला है वो तो ग़ज़ब है। बिजली का बनने और आम जन के लिए सुलभ हो जाने से जैसे दुनिया ही बदल गई। कह सकते हैं कि दुनिया दो हैं, एक बिजली से पहले की दुनिया और दूसरी बिजली के बाद की दुनिया।
          बिजली आई तो कुटीर उद्योग, कल कारख़ानों में बदल गए। लोग अपना गाँव अपना शहर और यहाँ तक कि अपना देश छोड़कर रोज़गार की तलाश में घर से दूर घर बसाने लगे। शुरुआत में पुरुष ही बाहर जाते थे फिर परिवार सहित जाने लगे। संयुक्त परिवार की भव्य व्यवस्था दरक़ने लगी।
          गृहणी को संयुक्त परिवार में अपनी स्वतंत्रता का हनन होता प्रतीत होने लगा। मेरा पति, मेरे बच्चे और मेरा घर ही वरीयता हो गई। रिश्तेदारियों का आनंद अब मात्र रिश्तेदारी निबाहने तक सीमित रह गया। धीरे-धीरे लोग ‘हम’ से ‘मैं’ में बदलने लगे। बच्चों को बोर्डिंग स्कूलों में पढ़ाया जाने लगा। वैसे तो बच्चों को प्राचीनकाल से ही, अभिभावकों से दूर रखकर गुरुकुलों में पढ़ाने की परंपरा रही है लेकिन उस समय की गुरुकुल परंपरा में और अब की बोर्डिंग व्यवस्था में कोई तालमेल नहीं है।
          बिजली आने के बाद टीवी, कंप्यूटर, मोबाइल फ़ोन आदि की बहुत बड़ी भूमिका संयुक्त परिवार की व्यवस्था को समाप्त करने में रही।
ज़रा यह भी सोचना चाहिए कि यह परिवर्तन सही था या ग़लत ? संयुक्त परिवार, हमारी सभ्यता-संस्कृति, विकास और स्वतंत्रता के लिए उचित थे या अनुचित ?
          जहाँ तक नारी विमर्श की बात है तो निश्चित रूप से गृहस्थ जीवन में संयुक्त परिवार एक गृहणी के लिए बंधनों से भरे रहे होंगे। नारी स्वतंत्रता जैसी स्थिति इन परिवारों में कितनी संभावना लेकर जीवित रहती होगी यह कहना कोई कठिन काम नहीं है। संयुक्त परिवार की व्यवस्था भारत के एक-आध राज्य को छोड़कर सामान्यत: पुरुष प्रधान थी। संयुक्त परिवार, एक परिवार न होकर एक कुटुंब होता था। जिसका मुखिया अपने या परंपराओं द्वारा निष्पादित नियमों को कुटुंब के सभी सदस्यों पर लागू करता था।
          संयुक्त परिवार सुरक्षा की दृष्टि को देखकर बने थे। प्राचीन काल में न तो आज जैसे मकान थे, न राज्य द्वारा दी गई सुरक्षा इतनी सुदृढ़ थी। जंगली जानवरों का भय, डाकुओं का भय, दूसरे परिवार, क़बीले या गाँव द्वारा हमला किए जाने का भय आदि अनेक असुरक्षित वातावरण का सामना करते जीना ही संयुक्त परिवार का कारण बने।
          इसे समझने के लिए और थोड़ा आदिकाल की ओर चलें तो धरती पर 5 लाख वर्ष तक बने रहने वाली नीएंडरठल नस्ल के आज से 25 हज़ार साल पहले लुप्त हो जाने के कारणों में से एक संयुक्त परिवार की कमज़ोर संरचना भी था। नीएंडरठल शरीर के आकार और शक्ति में होमोसैपियन्स से अधिक थे किंतु भारी हथियारों का प्रयोग करते थे। जिन्हें वे हाथ में पकड़े-पकड़े ही इस्तेमाल करते थे अर्थात वे शस्त्रों का प्रयोग करते थे अस्त्रों का नहीं। अस्त्र को फेंककर चलाया जाता है। ये बलिष्ठ नस्ल अपने भारी-भरकम भालों का प्रयोग फेंककर नहीं कर पाती थी इसके विपरीत होमोसैपियन्स अपने हल्के भालों को फेंक भी सकते थे।
          नीएंडरठल के क़बीले-परिवार छोटे थे और इसमें 20 से 30 सदस्य होते थे। होमोसैपियन्स के क़बीले 100 से अधिक सदस्यों के थे। धीरे-धीरे नीएंडरठल यूरोप से ग़ायब हो गए। जिसका कारण था दोनों नस्लों की भोजन को लेकर लड़ाई और आपस में वैवाहिक संबंध न हो पाना। साथ ही संख्या बल से भी होमोसैपियन्स जीत गए।
          ऊपर दिया उदाहरण यह प्रमाणित करता है कि प्राचीन काल में बड़े संयुक्त परिवार अधिक सुरक्षित और व्यावहारिक थे। आज जबकि मनुष्य को सुरक्षा और भोजन के लिए प्राचीन काल जैसा संघर्ष नहीं करना पड़ता तो संयुक्त परिवार की अवधारणा समाप्त हो रही है।
          संयुक्त परिवारों का चलन समाप्त होने से पुरुष और स्त्री का भेद कम हुआ। नारी को स्वतंत्र-स्वच्छंद आकाश में विचरण करने का मौक़ा मिला। नई पहचान मिलने लगी। प्रतिभा निखारने का समय और मौक़ा मिलने लगा। यह सब कुछ हुआ लेकिन हम रिश्तों को जीना भूलते चले गए। रिश्तों का आनंद लेना भूलने लगे। दादी-नानी की कहानियाँ और लाढ़ जैसे कहीं छूट गया। कह नहीं सकते कि अच्छा हुआ या बुरा लेकिन इतना अवश्य है कि संयुक्त परिवार की यादें आजकल बुज़ुर्गों की गपशप का सबसे बड़ा हिस्सा बन गईं…


इस बार इतना ही... अगली बार कुछ और...
-आदित्य चौधरी
संस्थापक एवं प्रधान सम्पादक

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