गोविन्द राम (चर्चा | योगदान) |
गोविन्द राम (चर्चा | योगदान) |
||
| पंक्ति 20: | पंक्ति 20: | ||
जब बिक रहा हो झूठ हर इक दर पे सुब्ह शाम | जब बिक रहा हो झूठ हर इक दर पे सुब्ह शाम | ||
| − | 'आदित्य'ये बुख़ार कैसा तुझपे चढ़ गया | + | 'आदित्य' ये बुख़ार कैसा तुझपे चढ़ गया |
</poem> | </poem> | ||
|} | |} | ||
12:02, 27 अक्टूबर 2016 का अवतरण
|
हर शख़्स मुझे बिन सुने -आदित्य चौधरी
हर शख़्स मुझे बिन सुने आगे जो बढ़ गया |
