छो (Text replacement - "style="background:#fbf8df; border:thin groove #003333; border-radius:5px; padding:8px;"" to "class="table table-bordered table-striped"")
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
{| width="100%" class="table table-bordered table-striped" class="table table-bordered table-striped"
+
{| width="100%" class="table table-bordered table-striped"  
 
|-
 
|-
 
|  
 
|  
पंक्ति 5: पंक्ति 5:
 
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;"><font color=#003333 size=5>हँस के रो गए<small> -आदित्य चौधरी</small></font></div>
 
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;"><font color=#003333 size=5>हँस के रो गए<small> -आदित्य चौधरी</small></font></div>
 
----
 
----
{| width="100%" class="table table-bordered table-striped" style="background:transparent"
+
{| width="100%"
 
|-valign="top"
 
|-valign="top"
 
| style="width:35%"|
 
| style="width:35%"|

14:17, 27 अक्टूबर 2016 का अवतरण

Copyright.png
हँस के रो गए -आदित्य चौधरी

मसरूफ़ अपनी ज़िन्दगी में इतने हो गए
सब मुफ़लिसी के यार, शोहरतों में खो गए

          शतरंज की बाज़ी पे वो हर रोज़ झगड़ना
          ख़ाली बिसात देखकर हम हँस के रो गए

इमली के घने साए में कंचों की दोपहर
अब क्या कहें, साए भी तो कमज़र्फ हो गए

          हर रोज़ छत पे जाके पतंगों को लूटना
          छत के भी तो चलन थे, शहरों में खो गए

सावन की किसी रात में बरसात की रिमझिम
अब मौसमों की छोड़िये, कमरे जो हो गए

          सत् श्री अकाल बोल के लंगर में बैठना
          अब इस तरहा के दौर, बस इक ख़ाब हो गए

बिन बात के वो रूठना, खिसिया के झगड़ना
जो यार ज़िन्दगी के थे, अब दोस्त हो गए



सभी रचनाओं की सूची

सम्पादकीय लेख कविताएँ वीडियो / फ़ेसबुक अपडेट्स
सम्पर्क- ई-मेल: adityapost@gmail.com   •   फ़ेसबुक