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<div style=text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;><font color=#003333 size=5>कहता है जुगाड़ सारा ज़माना<small> -आदित्य चौधरी</small></font></div><br /> | <div style=text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;><font color=#003333 size=5>कहता है जुगाड़ सारा ज़माना<small> -आदित्य चौधरी</small></font></div><br /> | ||
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आज 'अंतर-राष्ट्रीय जुगाड़ दिवस' है ! ... और अगर नहीं है, तो होना चाहिए। इसके साथ ही कुछ ऐसा जुगाड़ भी किया जाना चाहिए, जिससे कि एक जुगाड़ मंत्रालय का जुगाड़ हो जाये। जुगाड़ मंत्रालय की ज़रूरत हमारे देश को किसी भी अन्य मंत्रालय से अधिक है... | आज 'अंतर-राष्ट्रीय जुगाड़ दिवस' है ! ... और अगर नहीं है, तो होना चाहिए। इसके साथ ही कुछ ऐसा जुगाड़ भी किया जाना चाहिए, जिससे कि एक जुगाड़ मंत्रालय का जुगाड़ हो जाये। जुगाड़ मंत्रालय की ज़रूरत हमारे देश को किसी भी अन्य मंत्रालय से अधिक है... | ||
− | एक बार एक अंग्रेज़ | + | एक बार एक अंग्रेज़ भारत के दौरे पर आ रहा था। वह जिस कम्पनी में काम करता था, उसके बॉस ने उसे समझाया- |
− | "देखो डेविड ! तुम | + | "देखो डेविड ! तुम ताजमहल देखने इंडिया जा रहे हो लेकिन इंडिया की गलियों में इधर-उधर मत घूमना और इन गलियों में कुछ भी खाना-पीना मत। ख़ासतौर से ये मथुरा, आगरा, बनारस... इनकी गलियों में ज़्यादा घूमने-फिरने की और कुछ भी खाने-पीने की ज़रूरत नहीं है, समझे !" |
"लेकिन सर ! बात क्या है, ऐसा क्यों ?" | "लेकिन सर ! बात क्या है, ऐसा क्यों ?" | ||
"बस बता दिया, बहस करने की ज़रूरत नहीं है।" | "बस बता दिया, बहस करने की ज़रूरत नहीं है।" | ||
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"यस सर !" | "यस सर !" | ||
"क्या है ?" | "क्या है ?" | ||
− | "सर ! इसे | + | "सर ! इसे जलेबी कहते हैं।" डेविड ने एक डिब्बा मेज़ पर रख दिया। |
"ओ.के. ! और अब तुम ये जानना चाहोगे कि इस जलेबी के अन्दर रस कैसे आया?" | "ओ.के. ! और अब तुम ये जानना चाहोगे कि इस जलेबी के अन्दर रस कैसे आया?" | ||
"यस सर ! लेकिन आपको कैसे मालूम ?" | "यस सर ! लेकिन आपको कैसे मालूम ?" | ||
पंक्ति 34: | पंक्ति 34: | ||
फिर डेविड और उसका बॉस हमारी 'जुगाड़ तकनीक' को हासिल करने का जुगाड़ करने के गुन्ताड़े में लग गए... | फिर डेविड और उसका बॉस हमारी 'जुगाड़ तकनीक' को हासिल करने का जुगाड़ करने के गुन्ताड़े में लग गए... | ||
आइए अब वापस चलें... | आइए अब वापस चलें... | ||
− | 'जुगाड़' शब्द की उत्पत्ति के पीछे शब्द है 'युक्ति', जिसका प्रचलित रूप है जुगत और जुगत का क्षेत्रीय रूप है 'जुगाड़' (विशेषकर | + | 'जुगाड़' शब्द की उत्पत्ति के पीछे शब्द है 'युक्ति', जिसका प्रचलित रूप है जुगत और जुगत का क्षेत्रीय रूप है 'जुगाड़' (विशेषकर हरियाणा और पंजाब में)। कभी-कभी मुझे लगता है कि आदिकाल में एक ऋषि हुए होंगे, जिनका नाम था 'जुगाड़ ऋषि'। ये जुगाड़ ऋषि अपनी करामाती बुद्धि से भारत को अपनी तकनीक, एक मन्त्र दे गये हैं 'जुगाड़'। यहाँ तक कि भारतकोश के कार्यालय में भी मैं अक़्सर इस शब्द को सुनता रहता हूँ। कभी पूछता हूँ कि ये प्रोग्रामिंग कैसे की? तो जवाब मिलता है कि 'सर ! ये जुगाड़ से किया है'। |
जुगाड़ ऋषि का मन्त्र गांव-गांव में अपनाया जाता है। तमाम तरह के जुगाड़ किये जाते थे। खोजें की जाती थीं। बहुत से जुगाड़ अद्भुत होते थे, जो अक्सर गांव में और छोटे शहरों में देखने को मिलते थे लेकिन धीरे-धीरे ये चलन कम होता चला जा रहा है। इसकी आज बहुत ज़रूरत है। अनेक किस्म के जुगाड़ होते थे, उनमें कोई न कोई एक जुगाड़ ऐसा होता था, जो वास्तव में एक वैज्ञानिक खोज के रूप में विकसित हो सकता था। | जुगाड़ ऋषि का मन्त्र गांव-गांव में अपनाया जाता है। तमाम तरह के जुगाड़ किये जाते थे। खोजें की जाती थीं। बहुत से जुगाड़ अद्भुत होते थे, जो अक्सर गांव में और छोटे शहरों में देखने को मिलते थे लेकिन धीरे-धीरे ये चलन कम होता चला जा रहा है। इसकी आज बहुत ज़रूरत है। अनेक किस्म के जुगाड़ होते थे, उनमें कोई न कोई एक जुगाड़ ऐसा होता था, जो वास्तव में एक वैज्ञानिक खोज के रूप में विकसित हो सकता था। | ||
आजकल पढ़ाई का तरीक़ा बदल रहा है। नई पीढ़ी की रुचि विज्ञान और कला में कम है। ज़्यादातर छात्र इस तरह के विषय चुन रहे हैं जो व्यापार से और पैसा कमाने से संबंधित हैं। इसलिए 'जुगाड़' करने वाली प्रतिभा कम हो रही है। असल में जुगाड़ करने के लिए ख़ाली वक़्त भी चाहिए। यह कहावत कि 'ख़ाली दिमाग़ शैतान का घर' सही नहीं है, इसे होना चाहिए 'ख़ाली दिमाग़ जुगाड़ का घर'। | आजकल पढ़ाई का तरीक़ा बदल रहा है। नई पीढ़ी की रुचि विज्ञान और कला में कम है। ज़्यादातर छात्र इस तरह के विषय चुन रहे हैं जो व्यापार से और पैसा कमाने से संबंधित हैं। इसलिए 'जुगाड़' करने वाली प्रतिभा कम हो रही है। असल में जुगाड़ करने के लिए ख़ाली वक़्त भी चाहिए। यह कहावत कि 'ख़ाली दिमाग़ शैतान का घर' सही नहीं है, इसे होना चाहिए 'ख़ाली दिमाग़ जुगाड़ का घर'। | ||
− | शायद शुरुआती जुगाड़, | + | शायद शुरुआती जुगाड़, महात्मा गांधी ने बनाया था। उन्हें एक 'फ़ोर्ड कार' उपहार में मिली। गांधी जी ने कार के आगे बैल लगवा दिए और उसका नाम रख दिया 'ऑक्स-फ़ोर्ड'। इसके बाद तो हरियाणा-पंजाब से प्रसिद्धि प्राप्त करता हुआ 'जुगाड़' लगभग पूरे भारत में चलने लगा। |
जुगाड़ के लिए एक किस्सा और मशहूर है-</poem> | जुगाड़ के लिए एक किस्सा और मशहूर है-</poem> | ||
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14:16, 21 मई 2017 के समय का अवतरण
कहता है जुगाड़ सारा ज़माना -आदित्य चौधरी आज 'अंतर-राष्ट्रीय जुगाड़ दिवस' है ! ... और अगर नहीं है, तो होना चाहिए। इसके साथ ही कुछ ऐसा जुगाड़ भी किया जाना चाहिए, जिससे कि एक जुगाड़ मंत्रालय का जुगाड़ हो जाये। जुगाड़ मंत्रालय की ज़रूरत हमारे देश को किसी भी अन्य मंत्रालय से अधिक है... किसी गाँव की बात है कि अधेड़ उम्र में आकर, छोटे पहलवान की पत्नी स्वर्ग सिधार गई। छोटे पहलवान अकेले रह गए लेकिन बेटे बहू के घर में होने से संतोष कर लिया। एक दिन की बात है शाम के समय छोटे पहलवान खेत से लौटे तो उन्होंने बेटे की बहू से मूँग की दाल बनाने के लिए कहा। बहू ने अपने पति से कहलवा भेजा कि 'अब रात के समय मूँग की दाल कहाँ से आएगी, इसलिए जो कुछ बना है, वही खा लें'। |