गोविन्द राम (चर्चा | योगदान) छो (Text replacement - "class="headbg37"" to "class="table table-bordered table-striped"") |
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− | महान संत | + | महान संत कबीर दास के संबंध में अनेक क़िस्से और किंवदंतियाँ मशहूर हैं लेकिन मुझे जो बहुत प्रेरित करते हैं उनका ज़िक्र कर रहा हूँ। |
− | एक बार कबीर सत्संग में लीन थे। तभी वहाँ | + | एक बार कबीर सत्संग में लीन थे। तभी वहाँ वाराणसी की एक मशहूर नर्तकी आई और सभी के सामने बोली- |
"ये कोई साधु नहीं है। ये आपको भी धोखा दे रहा है और इसने मुझे भी धोखा दिया है। मुझसे शादी का झूठा वादा किया और मुझे झूठे सपने दिखाए। मेहरबानी करके मुझे इंसाफ़ दिलाइये।" | "ये कोई साधु नहीं है। ये आपको भी धोखा दे रहा है और इसने मुझे भी धोखा दिया है। मुझसे शादी का झूठा वादा किया और मुझे झूठे सपने दिखाए। मेहरबानी करके मुझे इंसाफ़ दिलाइये।" | ||
ये सब सुनने पर सभी उपस्थित जन कबीर साहब की ओर प्रश्नवाचक मुद्रा में देखने लगे। कबीर अपने स्थान से उठे और बोले- | ये सब सुनने पर सभी उपस्थित जन कबीर साहब की ओर प्रश्नवाचक मुद्रा में देखने लगे। कबीर अपने स्थान से उठे और बोले- | ||
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लोई का प्रेमी लोई को लेकर कबीर के पास गया और पैरों में गिरकर क्षमा मांगी और सदा के लिए कबीर का शिष्य बन गया। | लोई का प्रेमी लोई को लेकर कबीर के पास गया और पैरों में गिरकर क्षमा मांगी और सदा के लिए कबीर का शिष्य बन गया। | ||
कबीर ने कभी किसी से शिकायत नहीं की। शिकायत वे किया करते हैं जो कमज़ोर होते हैं। अपनी पत्नी लोई से भी उन्होंने यह शिकायत नहीं की कि लोई ने शादी से पहले क्यों नहीं बताया कि वह किसी से प्रेम करती है। कारण यह है कि कबीर ने किसी को इस लायक़ समझा ही नहीं कि वे शिकायत करते। कबीर के सामने सभी छोटे ही तो थे। राम ने कैकयी की शिकायत नहीं की और ना ही कभी यह कहा कि दशरथ ने क्यों कैकयी के कहने से उन्हें वन भेजा। | कबीर ने कभी किसी से शिकायत नहीं की। शिकायत वे किया करते हैं जो कमज़ोर होते हैं। अपनी पत्नी लोई से भी उन्होंने यह शिकायत नहीं की कि लोई ने शादी से पहले क्यों नहीं बताया कि वह किसी से प्रेम करती है। कारण यह है कि कबीर ने किसी को इस लायक़ समझा ही नहीं कि वे शिकायत करते। कबीर के सामने सभी छोटे ही तो थे। राम ने कैकयी की शिकायत नहीं की और ना ही कभी यह कहा कि दशरथ ने क्यों कैकयी के कहने से उन्हें वन भेजा। | ||
− | लोई से कबीर की दो सन्तान थीं- बेटा 'कमाल' और बेटी 'कमाली' । कबीर की अनेक रचनाएँ ऐसी हैं जिनके बारे में कहा जाता है कि वे कमाली की हैं। आपको याद होगा | + | लोई से कबीर की दो सन्तान थीं- बेटा 'कमाल' और बेटी 'कमाली' । कबीर की अनेक रचनाएँ ऐसी हैं जिनके बारे में कहा जाता है कि वे कमाली की हैं। आपको याद होगा राजकपूर जी की फ़िल्म "सत्यम् शिवम् सुन्दरम्" का गीत " सैंया निकस गए मैं ना लड़ी थी... रंग महल के दस दरवाज़े, ना जाने कौन सी खिड़की खुली थी..." |
यह कमाली की रचना है। जिसमें 'रंग महल' का अर्थ है हमारा शरीर और 'दस दरवाज़ों' से अर्थ है शरीर के वे दस मार्ग जिनसे प्राणों का निकलना माना जाता है। जनसामान्य को ध्यान में रखते हुए रचनाएँ ऐसी ही बनाई जाती थीं, जिनका सामान्य अर्थ कुछ ऐसा होता था कि सबको रुचिकर लगे लेकिन वास्तविक अर्थ किसी न किसी दर्शन अथवा भक्ति से संबंधित होता था। | यह कमाली की रचना है। जिसमें 'रंग महल' का अर्थ है हमारा शरीर और 'दस दरवाज़ों' से अर्थ है शरीर के वे दस मार्ग जिनसे प्राणों का निकलना माना जाता है। जनसामान्य को ध्यान में रखते हुए रचनाएँ ऐसी ही बनाई जाती थीं, जिनका सामान्य अर्थ कुछ ऐसा होता था कि सबको रुचिकर लगे लेकिन वास्तविक अर्थ किसी न किसी दर्शन अथवा भक्ति से संबंधित होता था। | ||
कमाल भी कमाल ही था। कमाल के संबंध में भी कई क़िस्से मशहूर हैं। जब कमाल को पेट भरने का कोई तरीक़ा नहीं मिला तो उसने कबीर साहब से कहा- | कमाल भी कमाल ही था। कमाल के संबंध में भी कई क़िस्से मशहूर हैं। जब कमाल को पेट भरने का कोई तरीक़ा नहीं मिला तो उसने कबीर साहब से कहा- | ||
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"नहीं-नहीं, इस बार तो हम लोग घर से ही गंडासा साथ लेकर चलेंगे जिससे रात में तुमको जगाना ना पड़े।" कबीर बोले | "नहीं-नहीं, इस बार तो हम लोग घर से ही गंडासा साथ लेकर चलेंगे जिससे रात में तुमको जगाना ना पड़े।" कबीर बोले | ||
क़साई हँसता हुआ चला गया। | क़साई हँसता हुआ चला गया। | ||
− | मेरे ख़याल से कबीर साहब ने जिस तरह से कमाल का साथ दिया वह केवल कबीर साहब ही कर सकते थे। महापुरुषों के लक्षण भी विलक्षण होते हैं और उनके जीने का तरीक़ा भी। उनकी महानता का पता उनके उस तरीक़े से लगता है जो तरीक़ा वे अपनी बात को रखने के लिए अपनाते हैं और यही आगे चलकर एक ऐसी शिक्षा बन जाती है जो सदैव याद रहती है। जैसे, | + | मेरे ख़याल से कबीर साहब ने जिस तरह से कमाल का साथ दिया वह केवल कबीर साहब ही कर सकते थे। महापुरुषों के लक्षण भी विलक्षण होते हैं और उनके जीने का तरीक़ा भी। उनकी महानता का पता उनके उस तरीक़े से लगता है जो तरीक़ा वे अपनी बात को रखने के लिए अपनाते हैं और यही आगे चलकर एक ऐसी शिक्षा बन जाती है जो सदैव याद रहती है। जैसे, महाभारत में भीष्म का यह बताना कि उनको मारना है तो शिखण्डी को सामने कर दो। महाभारत युद्ध में कर्ण द्वारा केवल अर्जुन को ही मारने की प्रतिज्ञा का निर्वहन करते हुए शेष सभी पांडवों को हराने के बावजूद भी उनका वध न करना।... |
ख़ैर... | ख़ैर... | ||
− | आगे चलकर कमाल भी संत हो गये। कुछ समय बाद कबीर साहब की ख्याति दूर-दूर तक फैलने लगी और दूसरे शहरों से भी लोग उनसे मिलने आने लगे। एक बहुत धनी व्यापारी कबीर साहब के पास आया और उनको संतरे के आकार का | + | आगे चलकर कमाल भी संत हो गये। कुछ समय बाद कबीर साहब की ख्याति दूर-दूर तक फैलने लगी और दूसरे शहरों से भी लोग उनसे मिलने आने लगे। एक बहुत धनी व्यापारी कबीर साहब के पास आया और उनको संतरे के आकार का हीरा दिखाके बोला- |
"मेरे पास ये अत्यंत मूल्यवान हीरा है और मैं इसे आपको देना चाहता हूँ।" | "मेरे पास ये अत्यंत मूल्यवान हीरा है और मैं इसे आपको देना चाहता हूँ।" | ||
"लेकिन मैं इसका क्या करूँगा। यह मेरे किस काम का है। इसे तुम वापस ले जाओ। मैं तो इसको हाथ भी नहीं लगाऊँगा।" कबीर बोले | "लेकिन मैं इसका क्या करूँगा। यह मेरे किस काम का है। इसे तुम वापस ले जाओ। मैं तो इसको हाथ भी नहीं लगाऊँगा।" कबीर बोले | ||
पंक्ति 62: | पंक्ति 62: | ||
"इसका कोई मोल मेरे लिए नहीं है। इसे वापस ले जाओ।" | "इसका कोई मोल मेरे लिए नहीं है। इसे वापस ले जाओ।" | ||
व्यापारी यह सोचता हुआ वापस जाने लगा कि बाप-बेटे दोनों ही पहुँचे हुए संत हैं और मोह-माया में भरोसा नहीं करते। लेकिन कमाल ने उसे वापस बुलाया और कहा- | व्यापारी यह सोचता हुआ वापस जाने लगा कि बाप-बेटे दोनों ही पहुँचे हुए संत हैं और मोह-माया में भरोसा नहीं करते। लेकिन कमाल ने उसे वापस बुलाया और कहा- | ||
− | "इस पत्थर को तुम भी क्यों ढोते हो ? इससे मुक्ति पाओ और इसे यहीं छोड़ दो। | + | "इस पत्थर को तुम भी क्यों ढोते हो ? इससे मुक्ति पाओ और इसे यहीं छोड़ दो। काशी आए हो तो कुछ ज्ञान भी लेकर जाओ केवल पत्थरों को कब तक संभालते फिरोगे।" |
"मैं इस हीरे को कहाँ रख दूँ?" व्यापारी ने पूछा | "मैं इस हीरे को कहाँ रख दूँ?" व्यापारी ने पूछा | ||
"जहाँ चाहे रख दो, फेंक दो या चाहो तो मेरी कुटिया में ही छोड़ दो।" | "जहाँ चाहे रख दो, फेंक दो या चाहो तो मेरी कुटिया में ही छोड़ दो।" | ||
पंक्ति 75: | पंक्ति 75: | ||
"अजी वहाँ कहाँ मिलेगा... "इस तरह बड़बड़ाते हुए व्यापारी हीरा खोजने लगा और देखता क्या है कि हीरा तो वहीं रखा है। व्यापारी कमाल के पैरों गिर पड़ा और क्षमा प्रार्थना करते हुए बोला- | "अजी वहाँ कहाँ मिलेगा... "इस तरह बड़बड़ाते हुए व्यापारी हीरा खोजने लगा और देखता क्या है कि हीरा तो वहीं रखा है। व्यापारी कमाल के पैरों गिर पड़ा और क्षमा प्रार्थना करते हुए बोला- | ||
"आपने सच ही कहा था कि मैंने आपको कोई हीरा नहीं दिया, दिया तो केवल पत्थर, लेकिन आपने मुझे सचमुच का हीरा दिया है। आपके दिए हुए हीरे को मैं छू तो नहीं सकता लेकिन इस हीरे से भी अनमोल शिक्षा के सहारे पूरा जीवन आनंद से व्यतीत कर सकता हूँ।" | "आपने सच ही कहा था कि मैंने आपको कोई हीरा नहीं दिया, दिया तो केवल पत्थर, लेकिन आपने मुझे सचमुच का हीरा दिया है। आपके दिए हुए हीरे को मैं छू तो नहीं सकता लेकिन इस हीरे से भी अनमोल शिक्षा के सहारे पूरा जीवन आनंद से व्यतीत कर सकता हूँ।" | ||
− | ज़िन्दगी जितनी सहज हो उतनी ही आनंदमय होती है। महान वैज्ञानिक | + | ज़िन्दगी जितनी सहज हो उतनी ही आनंदमय होती है। महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंसटाइन, नहाने के लिए, सर धोने के लिए और दाढ़ी बनाने के लिए एक ही साबुन का प्रयोग करते थे। किसी ने पूछा तो बोले कि तीन तरह के साबुनों से मुझे उलझन होती है और मैं असमंजस में रहना पसंद नहीं करता। सहज होना आनंददायक तो है लेकिन सहज होना बहुत मुश्किल है। सरल और सहज तो आप 'होते' हैं 'बन' नहीं सकते फिर भी प्रयास करते रहने में क्या बुराई है...। सहजता राम जैसी कि तैयार हुए 'राज सिंहासन' के लिए और पल भर में ही जाना पड़ा 'वनवास' के लिए। राम वन को भी सहजता से ही गए। महावीर सहजता में इतने गहरे उतर गए कि 'निर्वस्त्र' ही रहे। रामकृष्ण परमहंस कहीं बारात में नाच होता देखते तो स्वयं भी नाचने लग जाते। जनक महलों में रहकर भी 'विदेह' कहलाए। चैतन्य महाप्रभु की सहज भक्ति के कारण तो मुस्लिम भी 'कृष्ण भक्त' हो गए और इन भक्तों ने वृन्दावन में अनेक भव्य मंदिर बनवा दिए। विष्णुगुप्त चाणक्य चंद्रगुप्त को मगध का 'शासक' बना कर वापस 'शिक्षक' बन गए। |
अनेक-अनेक उदाहरण ऐसे हैं जिनसे विभिन्न क्षेत्रों के व्यक्तियों द्वारा यह पता लगता है कि सहजता 'त्याग' से प्राप्त नहीं होती बल्कि जो कुछ भी उपलब्ध है, उसके प्रति 'साक्षी भाव' होना ही 'सहजता' है। | अनेक-अनेक उदाहरण ऐसे हैं जिनसे विभिन्न क्षेत्रों के व्यक्तियों द्वारा यह पता लगता है कि सहजता 'त्याग' से प्राप्त नहीं होती बल्कि जो कुछ भी उपलब्ध है, उसके प्रति 'साक्षी भाव' होना ही 'सहजता' है। | ||
17:06, 21 मई 2017 के समय का अवतरण
कबीर का कमाल -आदित्य चौधरी महान संत कबीर दास के संबंध में अनेक क़िस्से और किंवदंतियाँ मशहूर हैं लेकिन मुझे जो बहुत प्रेरित करते हैं उनका ज़िक्र कर रहा हूँ। |