छो (Text replacement - "width="100%" style=" to "width="100%" class="table table-bordered table-striped" style=")
 
(इसी सदस्य द्वारा किये गये बीच के 2 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
{| width="100%" class="table table-bordered table-striped" style="background:#fbf8df; border:thin groove #003333; border-radius:5px; padding:8px;"
+
{| width="100%" class="table table-bordered table-striped"  
 
|-
 
|-
 
|  
 
|  
पंक्ति 5: पंक्ति 5:
 
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;"><font color=#003333 size=5>हर शख़्स मुझे बिन सुने<small> -आदित्य चौधरी</small></font></div>
 
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;"><font color=#003333 size=5>हर शख़्स मुझे बिन सुने<small> -आदित्य चौधरी</small></font></div>
 
----
 
----
:: एक गुमनाम किसान गजेन्द्र द्वारा, सरेआम फांसी लगा लेने पर...
+
;एक गुमनाम किसान गजेन्द्र द्वारा, सरेआम फांसी लगा लेने पर...
{| width="100%" class="table table-bordered table-striped" style="background:transparent"
+
<center>
|-valign="top"
+
<poem style="width:360px; text-align:left; background:transparent; font-size:16px;">
| style="width:35%"|
+
| style="width:35%"|
+
<poem>
+
 
हर शख़्स मुझे बिन सुने आगे जो बढ़ गया
 
हर शख़्स मुझे बिन सुने आगे जो बढ़ गया
 
तो दर्द दिखाने को मैं फांसी पे चढ़ गया
 
तो दर्द दिखाने को मैं फांसी पे चढ़ गया
पंक्ति 24: पंक्ति 21:
  
 
जब बिक रहा हो झूठ हर इक दर पे सुब्ह शाम
 
जब बिक रहा हो झूठ हर इक दर पे सुब्ह शाम
'आदित्य'ये बुख़ार कैसा तुझपे चढ़ गया  
+
'आदित्य' ये बुख़ार कैसा तुझपे चढ़ गया  
 
</poem>
 
</poem>
| style="width:30%"|
+
</center>
|}
+
 
|}
 
|}
  

10:30, 13 जुलाई 2017 के समय का अवतरण

Copyright.png
हर शख़्स मुझे बिन सुने -आदित्य चौधरी

एक गुमनाम किसान गजेन्द्र द्वारा, सरेआम फांसी लगा लेने पर...

हर शख़्स मुझे बिन सुने आगे जो बढ़ गया
तो दर्द दिखाने को मैं फांसी पे चढ़ गया

महलों के राज़ खोल दूँ शायद में इस तर्हा
इस वास्ते ये ख़ून मेरे सर पे चढ़ गया

कांधों पे जिसे लाद के कुर्सी पे बिठाया
वो ही मेरे कांधे पे पैर रख के चढ़ गया

किससे कहें, कैसे कहें, सुनता है यहाँ कौन
कुछ भाव ज़माने का ऐसा अबके चढ़ गया

जब बिक रहा हो झूठ हर इक दर पे सुब्ह शाम
'आदित्य' ये बुख़ार कैसा तुझपे चढ़ गया



सभी रचनाओं की सूची

सम्पादकीय लेख कविताएँ वीडियो / फ़ेसबुक अपडेट्स
सम्पर्क- ई-मेल: adityapost@gmail.com   •   फ़ेसबुक