गोविन्द राम (चर्चा | योगदान) |
गोविन्द राम (चर्चा | योगदान) |
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;एक गुमनाम किसान गजेन्द्र द्वारा, सरेआम फांसी लगा लेने पर... | ;एक गुमनाम किसान गजेन्द्र द्वारा, सरेआम फांसी लगा लेने पर... | ||
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हर शख़्स मुझे बिन सुने आगे जो बढ़ गया | हर शख़्स मुझे बिन सुने आगे जो बढ़ गया | ||
तो दर्द दिखाने को मैं फांसी पे चढ़ गया | तो दर्द दिखाने को मैं फांसी पे चढ़ गया | ||
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जब बिक रहा हो झूठ हर इक दर पे सुब्ह शाम | जब बिक रहा हो झूठ हर इक दर पे सुब्ह शाम | ||
− | 'आदित्य'ये बुख़ार कैसा तुझपे चढ़ गया | + | 'आदित्य' ये बुख़ार कैसा तुझपे चढ़ गया |
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10:30, 13 जुलाई 2017 के समय का अवतरण
हर शख़्स मुझे बिन सुने -आदित्य चौधरी
हर शख़्स मुझे बिन सुने आगे जो बढ़ गया |