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<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;"><font color=#003333 size=5>कितना बेदर्द और तन्हा<small> -आदित्य चौधरी</small></font></div>
 
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;"><font color=#003333 size=5>कितना बेदर्द और तन्हा<small> -आदित्य चौधरी</small></font></div>
 
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कितना बेदर्द और तन्हा है मुहब्बत का सफ़र
 
कितना बेदर्द और तन्हा है मुहब्बत का सफ़र
 
जिससे पूछो वही एक दर्द लिए बैठा है
 
जिससे पूछो वही एक दर्द लिए बैठा है
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इसकी पहचान बनाने को पिए बैठा है  
 
इसकी पहचान बनाने को पिए बैठा है  
 
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10:32, 13 जुलाई 2017 के समय का अवतरण

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कितना बेदर्द और तन्हा -आदित्य चौधरी

कितना बेदर्द और तन्हा है मुहब्बत का सफ़र
जिससे पूछो वही एक दर्द लिए बैठा है

एक इज़हार-ए-मुहब्बत ही न कर पाने को
किसी कोने में वो अफ़सोस किए बैठा है

मेरा महबूब, किसी रोज़ पलट कर आए
दिल को मासूम दिलासा सा दिए बैठा है

उसको आती हो मेरी याद कभी फ़ुर्सत में
ऐसी हसरत से दिल के घाव सिए बैठा है

कैसा बेज़ार है, तन्हा है, बेख़बर भी है
इसकी पहचान बनाने को पिए बैठा है


टीका टिप्पणी और संदर्भ


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