छो (१ अवतरण आयात किया गया)
 
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
{| width="100%" style="background:#fbf8df; border:thin groove #003333; border-radius:5px; padding:8px;"
+
{| width="100%" class="table table-bordered table-striped"
 
|-
 
|-
 
|  
 
|  
पंक्ति 5: पंक्ति 5:
 
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;"><font color=#003333 size=5>क्यों विलग होता गया<small> -आदित्य चौधरी</small></font></div>
 
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;"><font color=#003333 size=5>क्यों विलग होता गया<small> -आदित्य चौधरी</small></font></div>
 
----
 
----
{| width="100%" style="background:transparent"
+
<center>
|-valign="top"
+
<poem style="width:360px; text-align:left; background:transparent; font-size:16px;">
| style="width:35%"|
+
| style="width:35%"|
+
<poem>
+
 
आज निर्गत, नीर निर्झर नयन से होता गया
 
आज निर्गत, नीर निर्झर नयन से होता गया
 
त्याग कर मेरा हृदय वह क्यों विलग होता गया
 
त्याग कर मेरा हृदय वह क्यों विलग होता गया
पंक्ति 25: पंक्ति 22:
 
वह निरंतर शुभ्र तन औ शांत मन होता गया  
 
वह निरंतर शुभ्र तन औ शांत मन होता गया  
 
</poem>
 
</poem>
| style="width:30%"|
+
</center>
|}
+
 
|}
 
|}
  

11:02, 13 जुलाई 2017 के समय का अवतरण

Copyright.png
क्यों विलग होता गया -आदित्य चौधरी

आज निर्गत, नीर निर्झर नयन से होता गया
त्याग कर मेरा हृदय वह क्यों विलग होता गया

शब्द निष्ठुर, रूठकर करते रहे मनमानियां
प्रेम का संदेश कुछ था और कुछ होता गया

मैं अधम, शोषित हुआ, अपने ही भ्रामक दर्प से
क्रूर समयाघात सह, अवसादमय होता गया

कर रही विचलित, कि ज्यों टंकार प्रत्यंचा की हो
नाद सुन अपने हृदय का मैं द्रवित होता गया

मैं, अपरिचित काल क्रम की रार में विभ्रमित था
वह निरंतर शुभ्र तन औ शांत मन होता गया


टीका टिप्पणी और संदर्भ


सभी रचनाओं की सूची

सम्पादकीय लेख कविताएँ वीडियो / फ़ेसबुक अपडेट्स
सम्पर्क- ई-मेल: adityapost@gmail.com   •   फ़ेसबुक