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फूल जितने भी दिए, उनको सजाने के लिए
 
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बेच देते हैं वो, कुछ पैसा बनाने के लिए
 
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वक़्त मुझको मिले फिर से ज़माने के लिए
 
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08:18, 14 जुलाई 2017 के समय का अवतरण

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फूल जितने भी -आदित्य चौधरी

फूल जितने भी दिए, उनको सजाने के लिए
बेच देते हैं वो, कुछ पैसा बनाने के लिए

बड़ी शिद्दत से हमने ख़त लिखे, और भेजे थे
वो भी जलवा दिए हैं, ठंड भगाने के लिए

हाय नाज़ों से हमने दिल को अपने पाला था
तोड़ते रहते हैं वो काम बनाने के लिए

एक दिन मर्द बने, घर ही उनके पहुँच गए
बच्चा पकड़ा दिया था हमको, खिलाने के लिए

कोई जो जान बचाए, मेरी इस आफ़त से
वक़्त मुझको मिले फिर से ज़माने के लिए


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