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<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;"><font color=#003333 size=5>मैं किसान हूँ भारत का<small> -आदित्य चौधरी</small></font></div>
 
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मैं किसान हूँ भारत का
 
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और सबका अन्न-विधाता हूँ
 
और सबका अन्न-विधाता हूँ
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सिंहासन भस्म हुए समझो
 
सिंहासन भस्म हुए समझो
 
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10:04, 14 जुलाई 2017 के समय का अवतरण

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मैं किसान हूँ भारत का -आदित्य चौधरी

मैं किसान हूँ भारत का
और सबका अन्न-विधाता हूँ

सब जन्म मुझी से पाते हैं
सब मेरी पैदा खाते हैं
अन्न-खाद्य सामग्री सब
मैं तुमको देता आया हूँ
फिर भी तुमने क्यों समझा है
ज्यों मैं ग़ैरों का जाया हूँ ?

सीमा पर
गोली खाने को
जो सीना आगे आता है
उन सीनों में दिल मेरा है
ये तुम्हें समझ नईं आता है ?
शहरों में गाली सुनता हूँ
गांवों में वोटर जनता हूँ
जब कभी पुकार कोई आए तो
'सुन ओ गवांर !'
भी सुनता हूँ

अब ये क्या किया ?
पाप है यह...
कैसा पैशाचिक मानस है
नीच नराधम कर्म है यह
यह हत्या से भी बढ़कर है

अधिग्रहण तो पहले होता था
यह ग्रहण
बलात-हरण है अब

देखो ! किसान को मत छेड़ो
वो पहले से ही शापित है
यदि फुंकार उठी ज्वाला
सिंहासन भस्म हुए समझो



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