छो (१ अवतरण आयात किया गया)
 
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
{| width="100%" style="background:#fbf8df; border:thin groove #003333; border-radius:5px; padding:8px;"
+
{| width="100%" class="table table-bordered table-striped"
 
|-
 
|-
 
|  
 
|  
पंक्ति 5: पंक्ति 5:
 
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;"><font color=#003333 size=5>मैं किसान हूँ भारत का<small> -आदित्य चौधरी</small></font></div>
 
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;"><font color=#003333 size=5>मैं किसान हूँ भारत का<small> -आदित्य चौधरी</small></font></div>
 
----
 
----
{| width="100%" style="background:transparent"
+
<center>
|-valign="top"
+
<poem style="width:360px; text-align:left; background:transparent; font-size:16px;">
| style="width:35%"|
+
| style="width:35%"|
+
<poem>
+
 
मैं किसान हूँ भारत का
 
मैं किसान हूँ भारत का
 
और सबका अन्न-विधाता हूँ
 
और सबका अन्न-विधाता हूँ
पंक्ति 46: पंक्ति 43:
 
सिंहासन भस्म हुए समझो
 
सिंहासन भस्म हुए समझो
 
</poem>
 
</poem>
| style="width:30%"|
+
</center>
|}
+
 
|}
 
|}
  

10:04, 14 जुलाई 2017 के समय का अवतरण

Copyright.png
मैं किसान हूँ भारत का -आदित्य चौधरी

मैं किसान हूँ भारत का
और सबका अन्न-विधाता हूँ

सब जन्म मुझी से पाते हैं
सब मेरी पैदा खाते हैं
अन्न-खाद्य सामग्री सब
मैं तुमको देता आया हूँ
फिर भी तुमने क्यों समझा है
ज्यों मैं ग़ैरों का जाया हूँ ?

सीमा पर
गोली खाने को
जो सीना आगे आता है
उन सीनों में दिल मेरा है
ये तुम्हें समझ नईं आता है ?
शहरों में गाली सुनता हूँ
गांवों में वोटर जनता हूँ
जब कभी पुकार कोई आए तो
'सुन ओ गवांर !'
भी सुनता हूँ

अब ये क्या किया ?
पाप है यह...
कैसा पैशाचिक मानस है
नीच नराधम कर्म है यह
यह हत्या से भी बढ़कर है

अधिग्रहण तो पहले होता था
यह ग्रहण
बलात-हरण है अब

देखो ! किसान को मत छेड़ो
वो पहले से ही शापित है
यदि फुंकार उठी ज्वाला
सिंहासन भस्म हुए समझो



सभी रचनाओं की सूची

सम्पादकीय लेख कविताएँ वीडियो / फ़ेसबुक अपडेट्स
सम्पर्क- ई-मेल: adityapost@gmail.com   •   फ़ेसबुक