छो ("ये वक़्त कह रहा है -आदित्य चौधरी" सुरक्षित कर दिया ([edit=sysop] (अनिश्चित्त अवधि) [move=sysop] (अनिश्चित्त अवधि)))
 
 
(इसी सदस्य द्वारा किये गये बीच के 5 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
{| width="100%" style="background:#fbf8df; border:thin groove #003333; border-radius:5px; padding:8px;"
+
{| width="100%" class="table table-bordered table-striped"
 
|-
 
|-
 
|  
 
|  
पंक्ति 5: पंक्ति 5:
 
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;"><font color=#003333 size=5>ये वक़्त कह रहा है<small> -आदित्य चौधरी</small></font></div>
 
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;"><font color=#003333 size=5>ये वक़्त कह रहा है<small> -आदित्य चौधरी</small></font></div>
 
----
 
----
{| width="100%" style="background:transparent"
+
<center>
|-valign="top"
+
<poem style="width:360px; text-align:left; background:transparent; font-size:16px;">
| style="width:35%"|
+
| style="width:35%"|
+
<poem style="color=#003333">
+
 
मरना तो सबका तय है, ये वक़्त कह रहा है
 
मरना तो सबका तय है, ये वक़्त कह रहा है
 
पुरज़ोर एक कोशिश, जीने की बारहा है
 
पुरज़ोर एक कोशिश, जीने की बारहा है
पंक्ति 25: पंक्ति 22:
 
इन्सां का ख़ौफ़ देखो, भगवान डर रहा है
 
इन्सां का ख़ौफ़ देखो, भगवान डर रहा है
 
</poem>
 
</poem>
| style="width:30%"|
+
</center>
|}
+
 
|}
 
|}
  
पंक्ति 39: पंक्ति 35:
  
 
__INDEX__
 
__INDEX__
 +
__NOTOC__

09:27, 5 अगस्त 2017 के समय का अवतरण

Copyright.png
ये वक़्त कह रहा है -आदित्य चौधरी

मरना तो सबका तय है, ये वक़्त कह रहा है
पुरज़ोर एक कोशिश, जीने की बारहा है

          कहने को सारी दुनिया है इश्क़ की दीवानी
          हर एक शख़्स लेकिन, पैसे पे मर रहा है

सारे सिकंदरों के, जाते हैं हाथ ख़ाली
कोई मानता नहीं है, बस याद कर रहा है

          हैवानियत के सारे, होते गुनाह माफ़ी
          अब बेटियों का पल्लू ही क़फ़्न बन रहा है

कोई खुदा नहीं है, अब आसमां में शायद
इन्सां का ख़ौफ़ देखो, भगवान डर रहा है


टीका टिप्पणी और संदर्भ

सभी रचनाओं की सूची

सम्पादकीय लेख कविताएँ वीडियो / फ़ेसबुक अपडेट्स
सम्पर्क- ई-मेल: adityapost@gmail.com   •   फ़ेसबुक