छो (१ अवतरण आयात किया गया)
 
(इसी सदस्य द्वारा किये गये बीच के 4 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
{| width="100%" style="background:#fbf8df; border:thin groove #003333; border-radius:5px; padding:8px;"
+
{| width="100%" class="table table-bordered table-striped"
 
|-
 
|-
 
|  
 
|  
पंक्ति 5: पंक्ति 5:
 
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;"><font color=#003333 size=5>फ़ासले मिटाके<small> -आदित्य चौधरी</small></font></div>
 
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;"><font color=#003333 size=5>फ़ासले मिटाके<small> -आदित्य चौधरी</small></font></div>
 
----
 
----
{| width="100%" style="background:transparent"
+
<center>
|-valign="top"
+
<poem style="width:360px; text-align:left; background:transparent; font-size:16px;">
| style="width:35%"|
+
| style="width:35%"|
+
<poem style="color=#003333">
+
 
फ़ासले मिटाके, आया क़रीब होता  
 
फ़ासले मिटाके, आया क़रीब होता  
 
चाहे नसीब वाला या कम नसीब होता  
 
चाहे नसीब वाला या कम नसीब होता  
पंक्ति 25: पंक्ति 22:
 
इक साथ उसका होना, राहत तमाम होता
 
इक साथ उसका होना, राहत तमाम होता
 
</poem>
 
</poem>
| style="width:30%"|
+
</center>
|}
+
 
|}
 
|}
  
पंक्ति 39: पंक्ति 35:
  
 
__INDEX__
 
__INDEX__
 +
__NOTOC__

09:42, 5 अगस्त 2017 के समय का अवतरण

Copyright.png
फ़ासले मिटाके -आदित्य चौधरी

फ़ासले मिटाके, आया क़रीब होता
चाहे नसीब वाला या कम नसीब होता

उसे ज़िन्दगी में अपनी, मेरी तलाश होती
मैं उसकी सुबह होता, वो मेरी शाम होता

मेरी आरज़ू में उसके, ख़ाबों के फूल होते
यूँ साथ उसके रहना, कितना हसीन होता

जब शाम कोई तन्हा, खोई हुई सी होती
तब जिस्म से ज़ियादा, वो पास दिल के होता

दिल के हज़ार सदमे, ग़म के हज़ार लम्हे
इक साथ उसका होना, राहत तमाम होता


टीका टिप्पणी और संदर्भ

सभी रचनाओं की सूची

सम्पादकीय लेख कविताएँ वीडियो / फ़ेसबुक अपडेट्स
सम्पर्क- ई-मेल: adityapost@gmail.com   •   फ़ेसबुक