गोविन्द राम (चर्चा | योगदान) छो (Text replacement - "style="background:#fbf8df; border:thin groove #003333; border-radius:5px; padding:8px;"" to "class="table table-bordered table-striped"") |
गोविन्द राम (चर्चा | योगदान) |
||
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) | |||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
− | {| width="100%" class="table table-bordered table-striped" | + | {| width="100%" class="table table-bordered table-striped" |
|- | |- | ||
| | | | ||
पंक्ति 5: | पंक्ति 5: | ||
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;"><font color=#003333 size=5>जीवन संगिनी<small> -आदित्य चौधरी</small></font></div> | <div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;"><font color=#003333 size=5>जीवन संगिनी<small> -आदित्य चौधरी</small></font></div> | ||
---- | ---- | ||
− | + | <center> | |
− | + | <poem style="width:360px; text-align:left; background:transparent; font-size:16px;"> | |
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
क़ीमत चुकाई, तो मालूम होगा | क़ीमत चुकाई, तो मालूम होगा | ||
जो यूँ ही मिला है, फ़रिश्ता हो शायद | जो यूँ ही मिला है, फ़रिश्ता हो शायद | ||
पंक्ति 30: | पंक्ति 27: | ||
ये दुनिया तुम्हारी औ तुम इसके सूरज | ये दुनिया तुम्हारी औ तुम इसके सूरज | ||
तुम्हें रात को वो सुलाता हो शायद | तुम्हें रात को वो सुलाता हो शायद | ||
− | |||
− | |||
</poem> | </poem> | ||
− | + | </center> | |
− | + | ||
|} | |} | ||
10:33, 5 अगस्त 2017 के समय का अवतरण
जीवन संगिनी -आदित्य चौधरी
क़ीमत चुकाई, तो मालूम होगा |