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गोविन्द राम (चर्चा | योगदान) |
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<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;"><font color=#003333 size=5>पत्थर का आसमान<small> -आदित्य चौधरी</small></font></div> | <div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;"><font color=#003333 size=5>पत्थर का आसमान<small> -आदित्य चौधरी</small></font></div> | ||
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पूस की रात ने | पूस की रात ने | ||
आषाढ़ के एक दिन से पूछा | आषाढ़ के एक दिन से पूछा | ||
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ख़रोंच भी नहीं पाते हैं | ख़रोंच भी नहीं पाते हैं | ||
− | + | मुंशी प्रेमचन्द की कहानी 'पूस की रात', मोहन राकेश के नाटक 'आषाढ़ का एक दिन' और दुष्यंत कुमार की इन पंक्तियों की स्मृति में | |
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कैसे आकाश में सूराख़ नहीं हो सकता | कैसे आकाश में सूराख़ नहीं हो सकता | ||
एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारो | एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारो | ||
हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिये, | हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिये, | ||
− | इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिये - | + | इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिये -दुष्यंत कुमार |
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10:33, 5 अगस्त 2017 के समय का अवतरण
पत्थर का आसमान -आदित्य चौधरी
पूस की रात ने |