गोविन्द राम (चर्चा | योगदान) |
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"महाराज ! मैं यात्रा पर जाना चाहता हूँ, जिससे मुझे एक ऐसा व्यक्ति मिल जाए जो आपके इस विश्व प्रसिद्ध उद्यान की सही देखभाल कर सके। यदि आपकी आज्ञा हो तो मैं यात्रा पर चला जाउँ ?" | "महाराज ! मैं यात्रा पर जाना चाहता हूँ, जिससे मुझे एक ऐसा व्यक्ति मिल जाए जो आपके इस विश्व प्रसिद्ध उद्यान की सही देखभाल कर सके। यदि आपकी आज्ञा हो तो मैं यात्रा पर चला जाउँ ?" | ||
इस तरह रमण देश की यात्रा पर निकल गया... | इस तरह रमण देश की यात्रा पर निकल गया... | ||
− | अनेक नगरों का भ्रमण करने के बाद वह | + | अनेक नगरों का भ्रमण करने के बाद वह काशी पहुँचा। जब काशी में भी उसे अपने मापदण्ड के अनुसार कोई व्यक्ति नहीं मिला तो वह निराश हो कर वापस लौटने लगा। रास्ते में तेज़ धूप थी और भयंकर गर्मी पड़ रही थी। चलते-चलते उसने देखा कि कुछ मज़दूर पत्थर तोड़ रहे हैं। उन मज़दूरों में एक महिला भी थी जो सभी के साथ बराबर काम कर रही थी। |
रमण ने अपनी गाड़ी रुकवाई और एक मज़दूर से पूछा- | रमण ने अपनी गाड़ी रुकवाई और एक मज़दूर से पूछा- | ||
"इतनी कड़ी धूप में क्या कर रहे हो भाई?" | "इतनी कड़ी धूप में क्या कर रहे हो भाई?" | ||
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;एक उदाहरण देखें | ;एक उदाहरण देखें | ||
एक बार एक संत और उनका एक शिष्य एक नदी के किनारे-किनारे जा रहे थे। मार्ग में उन्होंने देखा कि एक स्त्री मूल्यवान वस्त्र और आभूषण पहने नदी के किनारे खड़ी है। पास पहुँचने पर स्त्री ने संत से कहा- | एक बार एक संत और उनका एक शिष्य एक नदी के किनारे-किनारे जा रहे थे। मार्ग में उन्होंने देखा कि एक स्त्री मूल्यवान वस्त्र और आभूषण पहने नदी के किनारे खड़ी है। पास पहुँचने पर स्त्री ने संत से कहा- | ||
− | "क्षमा करें प्रभु ! कृपया मेरी सहायता करें। मैं एक नृत्यांगना हूँ और लोगों का मनोरंजन करना और नगरवधू ( | + | "क्षमा करें प्रभु ! कृपया मेरी सहायता करें। मैं एक नृत्यांगना हूँ और लोगों का मनोरंजन करना और नगरवधू (वेश्या) की तरह जीवन जीना ही मेरी नियति है। आज सायंकाल, नदी के पार, यहाँ के नगर श्रेष्ठि (नगर सेठ) के यहाँ मेरे नृत्य का आयोजन है। मेरा नाव वाला आज आया नहीं है। मैं चलकर भी नदी पार कर सकती हूँ क्योंकि नदी में पानी कम है किन्तु मेरे वस्त्र भीग जाएँगे और मेरा नृत्य कार्यक्रम नहीं हो पाएगा। कृपया नदी पार करने में मेरी सहायता करें। इस दीन नगर वधू पर दया करें प्रभु!" |
इससे पहले कि संत कुछ कहते, उनके शिष्य ने कहा- | इससे पहले कि संत कुछ कहते, उनके शिष्य ने कहा- | ||
− | "लगता है तुम्हारी बुद्धि भ्रष्ट हो गई है जो तुम जैसी | + | "लगता है तुम्हारी बुद्धि भ्रष्ट हो गई है जो तुम जैसी वेश्या साधु-संतों से यह अपेक्षा रखती है कि तुमको अंक में भरकर (गोदी में उठाकर) नदी पार करवाई जाए। हमारे लिए तो तुमको स्पर्श करना भी पाप है। तुमको ऐसा दु:साहस नहीं करना चाहिए।" |
इतना कहकर शिष्य आगे बढ़ गया किन्तु संत वहीं खड़े रहे और शिष्य को आदेश दिया- | इतना कहकर शिष्य आगे बढ़ गया किन्तु संत वहीं खड़े रहे और शिष्य को आदेश दिया- | ||
"इसे अविलम्ब अपने अंक में लेकर नदी पार करवाओ, यह मेरी आज्ञा है शिष्य !" | "इसे अविलम्ब अपने अंक में लेकर नदी पार करवाओ, यह मेरी आज्ञा है शिष्य !" |
09:35, 15 अप्रैल 2018 के समय का अवतरण
प्रतीक्षा की सोच -आदित्य चौधरी पुराने समय की बात है एक राजा के राज्य में बेहद सुंदर बाग़ीचा था। यह कोई मामूली बाग़ीचा नहीं था। इसे देखने दुनिया भर से लोग आया करते थे। इस बाग़ीचे के इतने सुंदर होने का कारण था 'रमण'। रमण ही इस सुंदर उद्यान का कर्ता-धर्ता था। बूढ़ा हो रहा था रमण और उसे चिंता सता रही थी कि उसके बाद बाग़ का क्या होगा ?
... तमाम ऐसे ही उदाहरण हैं जिनसे हमारी नकारात्मक सोच ज़ाहिर होती है।
एक बार एक संत और उनका एक शिष्य एक नदी के किनारे-किनारे जा रहे थे। मार्ग में उन्होंने देखा कि एक स्त्री मूल्यवान वस्त्र और आभूषण पहने नदी के किनारे खड़ी है। पास पहुँचने पर स्त्री ने संत से कहा- |