गोविन्द राम (चर्चा | योगदान) छो (Text replacement - "class="headbg37"" to "class="table table-bordered table-striped"") |
गोविन्द राम (चर्चा | योगदान) |
||
(एक अन्य सदस्य द्वारा किये गये बीच के 2 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति 15: | पंक्ति 15: | ||
"महाराज ! मैं यात्रा पर जाना चाहता हूँ, जिससे मुझे एक ऐसा व्यक्ति मिल जाए जो आपके इस विश्व प्रसिद्ध उद्यान की सही देखभाल कर सके। यदि आपकी आज्ञा हो तो मैं यात्रा पर चला जाउँ ?" | "महाराज ! मैं यात्रा पर जाना चाहता हूँ, जिससे मुझे एक ऐसा व्यक्ति मिल जाए जो आपके इस विश्व प्रसिद्ध उद्यान की सही देखभाल कर सके। यदि आपकी आज्ञा हो तो मैं यात्रा पर चला जाउँ ?" | ||
इस तरह रमण देश की यात्रा पर निकल गया... | इस तरह रमण देश की यात्रा पर निकल गया... | ||
− | अनेक नगरों का भ्रमण करने के बाद वह | + | अनेक नगरों का भ्रमण करने के बाद वह काशी पहुँचा। जब काशी में भी उसे अपने मापदण्ड के अनुसार कोई व्यक्ति नहीं मिला तो वह निराश हो कर वापस लौटने लगा। रास्ते में तेज़ धूप थी और भयंकर गर्मी पड़ रही थी। चलते-चलते उसने देखा कि कुछ मज़दूर पत्थर तोड़ रहे हैं। उन मज़दूरों में एक महिला भी थी जो सभी के साथ बराबर काम कर रही थी। |
रमण ने अपनी गाड़ी रुकवाई और एक मज़दूर से पूछा- | रमण ने अपनी गाड़ी रुकवाई और एक मज़दूर से पूछा- | ||
"इतनी कड़ी धूप में क्या कर रहे हो भाई?" | "इतनी कड़ी धूप में क्या कर रहे हो भाई?" | ||
पंक्ति 27: | पंक्ति 27: | ||
जब राजा को पता चला तो राजा ने पूछा- | जब राजा को पता चला तो राजा ने पूछा- | ||
"रमण ! तुमने एक अनपढ़ मज़दूर महिला को उद्यान की ज़िम्मेदारी दे दी है इसके पीछे क्या कारण है ?" | "रमण ! तुमने एक अनपढ़ मज़दूर महिला को उद्यान की ज़िम्मेदारी दे दी है इसके पीछे क्या कारण है ?" | ||
− | "महाराज ! मेरे पास उद्यान की देख-भाल के लिए वनस्पति शास्त्री से लेकर भूमि-शास्त्री तक सभी विद्वान सदैव उपस्थित रहते हैं। मुझे आवश्यकता थी तो एक ऐसे व्यक्ति की जो कि किसी भी कार्य को करने को पूरी तरह से सकारात्मक दृष्टिकोण का गुण रखता हो क्योंकि ऐसा व्यक्ति ही सृजनकर्ता हो सकता है। चिलचिलाती धूप में, मंदिर के लिए पत्थर तो वहाँ सभी मज़दूर तोड़ रहे थे लेकिन इस महिला का, पत्थर तोड़ने के कार्य को 'मंदिर निर्माण कार्य' समझ कर मेहनत करना एक सकारात्मक सोच का सबसे अच्छा उदाहरण है। महाराज ! महान अर्थशास्त्री | + | "महाराज ! मेरे पास उद्यान की देख-भाल के लिए वनस्पति शास्त्री से लेकर भूमि-शास्त्री तक सभी विद्वान सदैव उपस्थित रहते हैं। मुझे आवश्यकता थी तो एक ऐसे व्यक्ति की जो कि किसी भी कार्य को करने को पूरी तरह से सकारात्मक दृष्टिकोण का गुण रखता हो क्योंकि ऐसा व्यक्ति ही सृजनकर्ता हो सकता है। चिलचिलाती धूप में, मंदिर के लिए पत्थर तो वहाँ सभी मज़दूर तोड़ रहे थे लेकिन इस महिला का, पत्थर तोड़ने के कार्य को 'मंदिर निर्माण कार्य' समझ कर मेहनत करना एक सकारात्मक सोच का सबसे अच्छा उदाहरण है। महाराज ! महान अर्थशास्त्री चाणक्य ने लिखा है कि ज्ञान प्राप्त करने से कोई व्यक्ति योग्य हो सकता है गुणी नहीं हो सकता। यही ध्यान में रखते हुए मैंने जहाँ योग्य विद्वानों को उद्यान के लिए चुना, वहीं पर कम से कम एक गुणी व्यक्ति को भी चुना।" |
आइए अब भारतकोश पर चलते हैं। | आइए अब भारतकोश पर चलते हैं। | ||
सकारात्मक सोच का मतलब क्या है ? किसे कहते हैं सकारात्मक सोच और इसकी आदत कैसे डाली जाए ? | सकारात्मक सोच का मतलब क्या है ? किसे कहते हैं सकारात्मक सोच और इसकी आदत कैसे डाली जाए ? | ||
− | एक बार महान दार्शनिक | + | एक बार महान दार्शनिक जे. कृष्णमूर्ति से किसी ने प्रश्न किया- |
"मैं अपने माता-पिता की इज़्ज़त करना चाहता हूँ और उन्हें सम्मान देना चाहता हूँ तो मुझे क्या करना चाहिए ?" | "मैं अपने माता-पिता की इज़्ज़त करना चाहता हूँ और उन्हें सम्मान देना चाहता हूँ तो मुझे क्या करना चाहिए ?" | ||
इसके उत्तर में कृष्णमूर्ति ने कहा- | इसके उत्तर में कृष्णमूर्ति ने कहा- | ||
पंक्ति 51: | पंक्ति 51: | ||
;एक उदाहरण देखें | ;एक उदाहरण देखें | ||
एक बार एक संत और उनका एक शिष्य एक नदी के किनारे-किनारे जा रहे थे। मार्ग में उन्होंने देखा कि एक स्त्री मूल्यवान वस्त्र और आभूषण पहने नदी के किनारे खड़ी है। पास पहुँचने पर स्त्री ने संत से कहा- | एक बार एक संत और उनका एक शिष्य एक नदी के किनारे-किनारे जा रहे थे। मार्ग में उन्होंने देखा कि एक स्त्री मूल्यवान वस्त्र और आभूषण पहने नदी के किनारे खड़ी है। पास पहुँचने पर स्त्री ने संत से कहा- | ||
− | "क्षमा करें प्रभु ! कृपया मेरी सहायता करें। मैं एक नृत्यांगना हूँ और लोगों का मनोरंजन करना और नगरवधू ( | + | "क्षमा करें प्रभु ! कृपया मेरी सहायता करें। मैं एक नृत्यांगना हूँ और लोगों का मनोरंजन करना और नगरवधू (वेश्या) की तरह जीवन जीना ही मेरी नियति है। आज सायंकाल, नदी के पार, यहाँ के नगर श्रेष्ठि (नगर सेठ) के यहाँ मेरे नृत्य का आयोजन है। मेरा नाव वाला आज आया नहीं है। मैं चलकर भी नदी पार कर सकती हूँ क्योंकि नदी में पानी कम है किन्तु मेरे वस्त्र भीग जाएँगे और मेरा नृत्य कार्यक्रम नहीं हो पाएगा। कृपया नदी पार करने में मेरी सहायता करें। इस दीन नगर वधू पर दया करें प्रभु!" |
इससे पहले कि संत कुछ कहते, उनके शिष्य ने कहा- | इससे पहले कि संत कुछ कहते, उनके शिष्य ने कहा- | ||
− | "लगता है तुम्हारी बुद्धि भ्रष्ट हो गई है जो तुम जैसी | + | "लगता है तुम्हारी बुद्धि भ्रष्ट हो गई है जो तुम जैसी वेश्या साधु-संतों से यह अपेक्षा रखती है कि तुमको अंक में भरकर (गोदी में उठाकर) नदी पार करवाई जाए। हमारे लिए तो तुमको स्पर्श करना भी पाप है। तुमको ऐसा दु:साहस नहीं करना चाहिए।" |
इतना कहकर शिष्य आगे बढ़ गया किन्तु संत वहीं खड़े रहे और शिष्य को आदेश दिया- | इतना कहकर शिष्य आगे बढ़ गया किन्तु संत वहीं खड़े रहे और शिष्य को आदेश दिया- | ||
"इसे अविलम्ब अपने अंक में लेकर नदी पार करवाओ, यह मेरी आज्ञा है शिष्य !" | "इसे अविलम्ब अपने अंक में लेकर नदी पार करवाओ, यह मेरी आज्ञा है शिष्य !" |
09:35, 15 अप्रैल 2018 के समय का अवतरण
प्रतीक्षा की सोच -आदित्य चौधरी पुराने समय की बात है एक राजा के राज्य में बेहद सुंदर बाग़ीचा था। यह कोई मामूली बाग़ीचा नहीं था। इसे देखने दुनिया भर से लोग आया करते थे। इस बाग़ीचे के इतने सुंदर होने का कारण था 'रमण'। रमण ही इस सुंदर उद्यान का कर्ता-धर्ता था। बूढ़ा हो रहा था रमण और उसे चिंता सता रही थी कि उसके बाद बाग़ का क्या होगा ?
... तमाम ऐसे ही उदाहरण हैं जिनसे हमारी नकारात्मक सोच ज़ाहिर होती है।
एक बार एक संत और उनका एक शिष्य एक नदी के किनारे-किनारे जा रहे थे। मार्ग में उन्होंने देखा कि एक स्त्री मूल्यवान वस्त्र और आभूषण पहने नदी के किनारे खड़ी है। पास पहुँचने पर स्त्री ने संत से कहा- |