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किसी देश का गणतंत्र दिवस -आदित्य चौधरी


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          न जाने किस देश में, न जाने किस काल में, गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर, देश के प्रधानमंत्री का राष्ट्र के नाम संदेश टेलीविज़न पर प्रसारित हो रहा है।
मेरे देशवासियो !
आज गणतंत्र दिवस है कुछ दुष्ट प्रवृत्ति के नासमझ लोग इसे भूल से सड़तंत्र दिवस कहने लगे हैं, जो कि बिल्कुल ग़लत है। वे कहते हैं कि आज हमारे देश को एक सड़ा हुआ तंत्र चला रहा है इसलिए यह सड़तंत्र दिवस है। ऐसा सोचना भी पाप है।
          इस देश का प्रधानमंत्री होने के नाते मैं आज आपको अपनी पार्टी की, सरकार की उपलब्धियाँ गिनाऊँगा। आज इस महान अवसर पर, सबसे पहले भ्रष्टाचार के बारे में आपको यह बताते हुए मुझे गर्व का अनुभव हो रहा है कि हमने देश से भ्रष्टाचार को पूरी तरह से समाप्त कर दिया है। इसमें हमें कुछ समय ज़रूर लगा लेकिन हमने इसे समाप्त करके ही दम लिया। देश के सभी वे लोग जिनके भ्रष्ट होने की संभावना थी अब भ्रष्ट नहीं रहे। इंसान तो इंसान, हमने भैंस, बकरी, ऊँट, बैल और यहाँ तक कि छोटे छोटे मक्खी, मच्छरों को भी भ्रष्ट नहीं रहने दिया है। हाँ, कुछ चूहे हैं जिन्हें हम भ्रष्ट तो नहीं कह सकते लेकिन चोर ज़रूर कह सकते हैं क्योंकि वे चोरी से अनाज खा जाते हैं। उनसे भी कहा जा रहा है कि वे चोरी रोक दें और देश के विकास की मुख्य धारा में शामिल हो जाएँ।
          मेरे होनहार देशवासियो! भ्रष्टाचार को ख़त्म करने का जो रास्ता हमने अपनाया है, वह मैं आपको बताना चाहता हूँ। हमने सबसे पहले उन लोगों से पूछा जो हमारे क़रीब हैं जैसे कि नेता, अधिकारी और पुलिस। जब हमने उनसे पूछा कि कहीं आप लोग भ्रष्ट तो नहीं? तो उनका बहुत सीधा-सादा जवाब था कि नहीं सर! ये तो कोरी अफ़वाह है, हम तो बिल्कुल भ्रष्ट नहीं हैं। क्या आप को लगता है कि हम इतने पर संतुष्ट हो गए होंगे, नहीं हमने फिर भी नहीं माना कि वे भ्रष्ट नहीं हैं क्योंकि हमने उन्हें भगवान जी क़सम नहीं खिलाई थी। हमने हिंदुओं को भगवान की क़सम, मुसलमानों को ख़ुदा की क़सम खिलाई और ईसाइयों से भी जब तक बाई गॉड नहीं कहलवा लिया तब तक हमने नहीं माना कि वे भ्रष्ट नहीं हैं।
          मेरे महान देश के महान नागरिकों! आप सोच रहे होंगे कि उन लोगों का क्या जो कि भगवान को नहीं मानते तो हमने उनको कार्ल मार्क्स की क़सम खिलवाई। इसके बाद कहीं जाकर हमें विश्वास हुआ कि हमारे देश के नेता, अधिकारी और पुलिस भ्रष्ट नहीं हैं।
          हमारी नज़र फिर अमरूद आदमी की तरफ़ गई। माफ़ कीजिए आजकल आम आदमी की परिभाषा बदल जाने से हमें अमरूद आदमी ही कहना पड़ता है। सिर्फ़ फल का नाम बदला है लेकिन मायने इसके वही पुराने वाले हैं। मेरे देशवासियो ! इसके बाद हमने गली मुहल्लों में जाकर पुछवाया और जो नतीजा सामने आया वो बहुत उत्साह देने वाला था। हमारी टीम के सदस्यों ने जब मुहल्ले में जाकर एक महिला से पूछा कि क्या हमारे किसी नेता ने आपके साथ भ्रष्टाचार किया है तो उस महिला ने बताया कि उसके साथ हमारी पार्टी के एक बहुत साधारण से नेता से बलात्कार तो किया था लेकिन कोई भ्रष्टाचार नहीं किया। इससे दो बातें साबित हुईं एक तो ये कि हमारी पार्टी के बड़े नेता कभी बलात्कार नहीं करते सिर्फ़ छोटे नेता ही ऐसा करते हैं और दूसरी ये कि भ्रष्टाचार करना हमारी पार्टी के नेताओं का कल्चर नहीं है।
          इसके बाद हमने बच्चों में भ्रष्टाचार का पता लगवाया। रेल विभाग में बच्चों ने गंभीर भ्रष्टाचार किया हुआ था। आपको याद होगा पुराना ज़माना, जब छोटे-छोटे मासूम बच्चे रेल की पटरियों पर रेल से गिरा कोयला बीना करते थे। इससे दो नुक़सान हो रहे थे। एक तो इन बच्चों की जान को ख़तरा था और दूसरे ये कोयला रेल विभाग की संपत्ति थी। हमने ये भ्रष्टाचार रोक दिया। हमने विकास किया जिससे डीज़ल और बिजली से चलने वाली रेलगाड़ी बनी। जब कोयला पटरियों पर गिरता ही नहीं तो बच्चे बीनेगे क्या? इसलिए आजकल बच्चे रेल की पटरियों पर नज़र नहीं आएँगे। वे बच्चे अब शान से छोटे-बड़े शहरों में कूड़ा इकट्ठा करने के उद्योग में लगे हुए हैं। जब भी हमारी गाड़ियाँ सड़कों पर निकलती हैं और जब कभी उन गाड़ियों से झांक हम कूड़ा बीनते हुए बच्चों को देखते हैं तो मन संतोष से भर जाता है कि चलो इन बच्चों का जीवन रेलगाड़ी से कटने से बच गया और ये शान से सुरक्षित होकर यहाँ कूड़ा बीन रहे हैं।
  कुछ और बच्चे हैं जो घरेलू नौकर हैं या किसी दुकान या फ़ॅक्ट्री में काम करते हैं। हमने इन बच्चों के मालिकों से पूछा तो पता चला कि ये बच्चे कोई भ्रष्टाचार नहीं कर रहे बल्कि अपना काम ईमानदारी से कर रहे हैं। एक बात जो हमें बुरी लगती है वो ये है कि इन बच्चों के साथ कोई बदसलूकी न हो। इसके बारे में हमने एक अध्यादेश जारी किया है, जिससे इन बच्चों का कोई भी मालिक इनको अब सप्ताह में एक बार से ज़्यादा नहीं पीट सकेगा।
          हमने घरेलू महिला की शक्ति को भी पहचाना है और उचित सम्मान दिया है। जिन परिवारों में गैस का सिलेंडर कालाबाज़ारी याने ब्लॅक में जाता था वो आज पूरी तरह बंद है। क्योंकि भोजना आयोग को संभालने वाले विद्वान अँगूठाटेक सिंह की सलाह पर सिलेंडर को ब्लॅक के रेट से भी मँहगा कर दिया है। इससे राजस्व भी अधिक हो गया और जनता को ब्लॅक में सिलेंडर भी नहीं लेना पड़ रहा है।
          हमने ग़रीबी भी हटाई थी। हमने किसी को ग़रीब नहीं रहने दिया था। कुछ ग़रीब लोग, चोर बन गए, कुछ डाकू बने, कुछ आतंकी बने बाक़ी बचे तो स्वर्गवासी बने जो भी अपनी योग्यता के अनुसार बन सकता था, हमने उसकी सहायता उसी दिशा में की और हमने उसे ग़रीब नहीं रहने दिया।
          हमारे देश में एक व्यवसाय बहुत बड़े पैमाने पर चल रहा है। यह है भीख मांगने का। पहले भिखारी ग़रीब होते थे लेकिन अभी-अभी अख़बारों में आपने एक भिखारी को लूटे जाने की ख़बर पढ़ी होगी। ज़रा सोचिए हमने भिखारियों का स्तर भी इतने बढ़ा दिया कि वे लुटने लगे। जल्दी ही हम एक टॅक्स लगाने जा रहे हैं। जिसे 'बॅगर टॅक्स' कहा जाएगा। जिस देश के भिखारी भी टॅक्स देने की स्थिति में पहुँच चुके हों उस देश का भविष्य कितना उज्ज्वल है, यह मुझे कहने की ज़रूरत नहीं है।
          हमने देश को साक्षर बनाया है। आज हमारे देश में कोई भी ऐसा नागरिक नहीं है जो पढ़ा-लिखा न हो। जो निरक्षर थे उनको हमने स्मार्ट फ़ोन, लॅपटॉप और टॅबलेट दिए हैं जिससे वो साक्षर हो गए हैं। हमारे कई मंत्री, सांसद और विधायक पहले पढ़े-लिखे नहीं थे लेकिन अब लॅपटाप मिल जाने से वे साक्षर की श्रेणी में आ गए हैं। हमारे भोजना आयोग के कर्ताधर्ता अँगूठाटेक सिंह अब सिर्फ़ नाम के ही अँगूठाटेक है वो अब अँगूठा नहीं टेकते बल्कि आपको जानकर आश्चर्य होगा कि वे अपने हस्ताक्षर कर सकते हैं।
          हमने देश की सुरक्षा पर पूरा ध्यान दिया है। आप तो जानते हैं कि सर्दी के मौसम में विदेशों से पक्षी उड़ कर हमारे देश में आ जाते थे। जिससे देश की सुरक्षा को ख़तरा हो रहा था। हमारे देश के पक्षियों के साथ ये पक्षी अच्छा व्यवहार भी नहीं करते थे। जिन-जिन तालाबों और झीलों में रुकते थे हमने उनको सुखवा दिया है। जिससे ये विदेशी जासूस पक्षी अब हमारे देश में नहीं आते हैं।
          हमने किसान के बारे में सबसे ज़्यादा काम किया है। हमारे अन्नदाता किसान को दिन-रात, सर्दी-गर्मी में खेतों में काम करना पड़ता था। हमारी सरकार अब खेतों को ख़त्म करके उन खेतों में अब सड़कें, बड़ी-बड़ी मॉल, ऊँची-ऊँची इमारतें और पुल बनवा रही है। किसान को उसके खेतों का मुआवज़ा मिल जाता है। जिसे वो तीन-चार साल तक अपनी ऐश-मौज में ख़र्च करता रहता है जो कि पहले नहीं कर पाता था।
          हमने नदियों का भी पूरा ख़याल रखा है। लोग कुछ समय पहले तक नदियों का पानी पी पीकर उनको सुखाए दे रहे थे। उसमें नहाते भी थे और उसके पानी को बर्तनों में भरकर भी ले जाते थे। इस ग़लत परम्परा के चलते नदियाँ सूखने लगीं। हमने छोटे-बड़े शहरों के पूरे मलबे-कचरे को इन नदियों में डलवाया जिससे इनका पानी पीने तो क्या नहाने लायक़ भी नहीं रहा। नदियों की रक्षा के लिए हमने करोड़ों-अरबों रुपया ख़र्च करके यह योजना बनाई जो आज सुचारू रूप से चल रही है।

मेरे देशवासियो! मैं तो सिर्फ़ इतना ही कहना चाहता हूँ आप हमारा साथ दीजिए और विकास की इस धारा में शामिल हो जाइए। जय सड़तंत्र दिवस! ओह! माफ़ कीजिए जय गणतंत्र दिवस!

इस बार इतना ही... अगली बार कुछ और...
-आदित्य चौधरी
संस्थापक एवं प्रधान सम्पादक



तख़्त बनते हैं -आदित्य चौधरी

 
तेरे ताबूत की कीलों से उनके तख़्त बनते हैं
कुचल जा जाके सड़कों पे, तभी वो बात सुनते हैं

गुनाहों को छुपाने का हुनर उनका निराला है
तेरा ही ख़ून होता है हाथ तेरे ही सनते हैं

न जाने कौनसी खिड़की से तू खाते बनाता है
जो तेरी जेब के पैसे से उनके चॅक भुनते हैं

बना है तेरी ही छत से सुनहरा आसमां उनका
मिलेगी छत चुनावों में, वहाँ तम्बू जो तनते हैं

न जाने किस तरह भगवान ने इनको बनाया था
नहीं जनती है इनको मां, यही अब मां को जनते हैं


टीका टिप्पणी और संदर्भ

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