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मैं गुम हूँ -आदित्य चौधरी

मैं गुम हूँ
तो गुम हो
तुम भी

लेकिन मैं तुम में
और शायद
तुम और कहीं

मैं तो हूँ तुम में
क्या तुम भी?

कभी ख़याल
कभी सपना
तो कभी यूँ ही
इन्हीं के साथ
शामिल हो
मेरे ज़ेहन में
तुम ही

किसी और
शायर की ग़ज़ल
के मक़्ते में
तलाशते तुम नाम मेरा

ये कौन सी आवाज़
की कशिश तुम्हें खींचे है
दूर मुझसे…

अरे ब्रूटस!
तुम भी…


टीका टिप्पणी और संदर्भ


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