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* [[मौसम है ये गुनाह का -आदित्य चौधरी|मौसम है ये गुनाह का]] | * [[मौसम है ये गुनाह का -आदित्य चौधरी|मौसम है ये गुनाह का]] |
13:05, 25 अक्टूबर 2016 का अवतरण
कविताएँ
- इन मंजिलों को शायद
- हर शख़्स मुझे बिन सुने
- कितना बेदर्द और तन्हा
- मौसम है ये गुनाह का
- मैं गुम हूँ
- तुम क्षमा कर दो उन्हें भी
- पीते हम हैं
- क्यों विलग होता गया
- जो भी मैंने तुम्हें बताया
- हमें तो याद नहीं
- हरदम याद आती है
- क्यूँ करे
- यह स्तुति अब तुम बंद करो
- ये जो मिरी आंखों में
- सब ख़ुद को तलाश करते हैं
- कि तुम कुछ इस तरह आना
- आसमान को काला कर दे
- फ़र्क़ क्या होगा
- फूल जितने भी
- इमरान का बस्ता
- मैं किसान हूँ भारत का
- क्या यही है मेरी शिकस्त ?
- मैं समय हूँ, काल हूँ मैं
- निशाचर निरा मैं
- तू जुलम करै अपनौ है कैं
- ये तो तय नहीं था कि
- मत करना कोशिश भी
- मैं हूँ स्तब्ध सी
- दिलों के टूट जाने की
- यहाँ बेकार में
- एक ज़माना था
- अपने आप पर
- मिट्टी में मिलाया जाए
- क़ायम सवाल रहता है
- दिल का सौदा दिल से करना
- इक सपना बना लेते
- क्या यही तुम्हारा विशेष है?
- सुन ले
- हँस के रो गए
- कुछ नहीं कहा
- ये मुश्किल बात होती है
- दिल को ही सुनाने दो
- 1857
- हर शाख़ पे बैठे उल्लू से
- ये वक़्त कह रहा है
- लहू बहता है
- जीवन का अहसास
- एक बात तो कॉमन है
- आँखों का पानी
- सब चलता है
- जैसे संसार हमारा है
- एक बार तो पूछा होता
- तख़्त बनते हैं
- बहुत फ़ज़ीता है
- फ़साने भर को
- फ़ासले मिटाके
- वक़्त बहुत कम है
- अपना भी कोई ख़ाब हो
- तुमको बताने का क्या फ़ायदा
- मर गए होते
- इससे तो अच्छा है
- मेरा है वास्ता
- जश्न मनाया जाय
- कैसे कह दूँ कि मैं भी इंसा हूँ
- ये सूरज रोज़ ढलते हैं
- नहीं बीतता प्यार
- यूँ तो कुछ भी नया नहीं
- कोई साहिलों से पूछे
- भारत को स्वयं बनाओ
- जागोगे नहीं तो
- ऐसे ही उमर गई
- भार्या पुरुषोत्तम
- और जाने क्या हुआ उस दिन
- रात नहीं कटती थी रात में
- प्यार की दरकार
- ये दास्तान कुछ ऐसी है
- वो सुबह कभी तो आएगी
- छूट भागे रास्ते
- अब मुस्कुरा दे
- ये मुमकिन नहीं
- जीवन संगिनी
- उल्लू की पंचायत
- पत्थर का आसमान
- इस शहर में