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− | + | मुंशी प्रेमचन्द की कहानी 'पूस की रात', मोहन राकेश के नाटक 'आषाढ़ का एक दिन' और दुष्यंत कुमार की इन पंक्तियों की स्मृति में | |
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कैसे आकाश में सूराख़ नहीं हो सकता | कैसे आकाश में सूराख़ नहीं हो सकता | ||
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हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिये, | हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिये, | ||
− | इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिये - | + | इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिये -दुष्यंत कुमार |
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08:11, 27 अक्टूबर 2016 का अवतरण
पत्थर का आसमान -आदित्य चौधरी
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