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10:21, 27 अक्टूबर 2016 का अवतरण

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बहुत फ़ज़ीता है -आदित्य चौधरी

कौन सहारे विश्वासों के जीता है?
कौन दिवा स्वप्नों की मदिरा पीता है?

मार दिया उसको ही जिसने मुँह खोला
या फिर जेलों में ही जीवन बीता है

भरी जेब वालों के भीतर मत झांको
सब कुछ भरा मिलेगा, दिल ही रीता है

नहीं आसरा मिलता हो जब महलों में
कोई झोंपड़ी ढूंढो, बहुत सुभीता है

ख़ैर मनाओ यार! अभी तुम ज़िन्दा हो
रोज़ ज़हर खाकर भी कोई जीता है ? 

नेताओं के सच्चे झूठे झगड़ों में
वोटर अपना फटा गरेबाँ सीता है

ख़ुदा और भगवानों की इस दुनिया में
एक भले मानुस का बहुत फ़ज़ीता है।


टीका टिप्पणी और संदर्भ

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