गोविन्द राम (चर्चा | योगदान) |
गोविन्द राम (चर्चा | योगदान) |
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जब बिक रहा हो झूठ हर इक दर पे सुब्ह शाम | जब बिक रहा हो झूठ हर इक दर पे सुब्ह शाम | ||
− | 'आदित्य'ये बुख़ार कैसा तुझपे चढ़ गया | + | 'आदित्य' ये बुख़ार कैसा तुझपे चढ़ गया |
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12:02, 27 अक्टूबर 2016 का अवतरण
हर शख़्स मुझे बिन सुने -आदित्य चौधरी
हर शख़्स मुझे बिन सुने आगे जो बढ़ गया |