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14:14, 27 अक्टूबर 2016 का अवतरण

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लहू बहता है -आदित्य चौधरी

लहू बहता है तो कहना कि पसीना होगा
न जाने कब तलक इस दौर में जीना होगा

          'छलक ना' जाय सरे शाम कहीं महफ़िल में
          ये जाम-ए-सब्र तो हर हाल में पीना होगा

यूँ तो अहसास भी कम है चुभन का ज़ख़्मों की
तूने जो चाक़ किया तो हमें सीना होगा

          अब तो उम्मीद भी ठोकर की तरह दिखती है
          करना बदनाम यूँ किस्मत को सही ना होगा

यही वो शख़्स जो कुर्सी पे जाके बैठेगा
वक़्त आने पे वो तेरा तो कभी ना होगा


टीका टिप्पणी और संदर्भ

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