गोविन्द राम (चर्चा | योगदान) |
गोविन्द राम (चर्चा | योगदान) |
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<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;"><font color=#003333 size=5>मर गए होते<small> -आदित्य चौधरी</small></font></div> | <div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;"><font color=#003333 size=5>मर गए होते<small> -आदित्य चौधरी</small></font></div> | ||
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मरना ही शौक़ होता तो मर गए होते | मरना ही शौक़ होता तो मर गए होते | ||
जायज़ अगर ये होता तो कर गए होते | जायज़ अगर ये होता तो कर गए होते | ||
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ताकीद हर एक दोस्त को हम कर गये होते<ref>ताकीद = कोई बात ज़ोर देकर कहना</ref> | ताकीद हर एक दोस्त को हम कर गये होते<ref>ताकीद = कोई बात ज़ोर देकर कहना</ref> | ||
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09:58, 5 अगस्त 2017 के समय का अवतरण
मर गए होते -आदित्य चौधरी
मरना ही शौक़ होता तो मर गए होते |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ मुफ़लिसी = ग़रीबी
- ↑ आसाइश =समृद्धि
- ↑ बज़्म = सभा, महफिल
- ↑ माज़ूर = जिसे किसी श्रम या सेवा का फल दिया गया हो, प्रतिफलित
- ↑ पास = लिहाज़
- ↑ तौर = आचरण
- ↑ मुंतज़िर = इंतज़ार या प्रतीक्षा करने वाला
- ↑ रहमत = दया
- ↑ ताकीद = कोई बात ज़ोर देकर कहना