पंक्ति 5: पंक्ति 5:
 
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;"><font color=#003333 size=5>पत्थर का आसमान<small> -आदित्य चौधरी</small></font></div>
 
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;"><font color=#003333 size=5>पत्थर का आसमान<small> -आदित्य चौधरी</small></font></div>
 
----
 
----
{| width="100%" 
+
<center>
|-valign="top"
+
<poem style="width:360px; text-align:left; background:transparent; font-size:16px;">
| style="width:35%"|
+
| style="width:35%"|
+
<poem style="color=#003333">
+
 
पूस की रात ने
 
पूस की रात ने
 
आषाढ़ के एक दिन से पूछा
 
आषाढ़ के एक दिन से पूछा
पंक्ति 30: पंक्ति 27:
 
हम तो उन्हें  
 
हम तो उन्हें  
 
ख़रोंच भी नहीं पाते हैं
 
ख़रोंच भी नहीं पाते हैं
</poem>
+
 
| style="width:30%"|
+
|-
+
| colspan="3"|
+
 
मुंशी प्रेमचन्द की कहानी 'पूस की रात', मोहन राकेश के नाटक 'आषाढ़ का एक दिन' और दुष्यंत कुमार की इन पंक्तियों की स्मृति में  
 
मुंशी प्रेमचन्द की कहानी 'पूस की रात', मोहन राकेश के नाटक 'आषाढ़ का एक दिन' और दुष्यंत कुमार की इन पंक्तियों की स्मृति में  
<poem>
+
 
 
कैसे आकाश में सूराख़ नहीं हो सकता  
 
कैसे आकाश में सूराख़ नहीं हो सकता  
 
एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारो
 
एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारो
पंक्ति 42: पंक्ति 36:
 
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिये -दुष्यंत कुमार   
 
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिये -दुष्यंत कुमार   
 
</poem>
 
</poem>
|}
+
</center>
 
|}
 
|}
  

10:33, 5 अगस्त 2017 के समय का अवतरण

Copyright.png
पत्थर का आसमान -आदित्य चौधरी

पूस की रात ने
आषाढ़ के एक दिन से पूछा
"बड़ी तबियत से उछाला था पत्थर तुमने
आसमान में
सूराख़ हुआ क्या ?"
परबत सी पीर लिये
दिन बोला
"एक नहीं
हज़ारों उछाले गये
पत्थरों को वो लील गया"
असल में हम भूल जाते हैं
कि हमारे उछाले हुए पत्थर
जैसे ही
ऊपर जाते हैं
कमबख्त वो भी
आसमान बन जाते हैं
कि उसमें सूराख़ करना तो
दूर की बात है
हम तो उन्हें
ख़रोंच भी नहीं पाते हैं

मुंशी प्रेमचन्द की कहानी 'पूस की रात', मोहन राकेश के नाटक 'आषाढ़ का एक दिन' और दुष्यंत कुमार की इन पंक्तियों की स्मृति में

कैसे आकाश में सूराख़ नहीं हो सकता
एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारो

हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिये,
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिये -दुष्यंत कुमार


सभी रचनाओं की सूची

सम्पादकीय लेख कविताएँ वीडियो / फ़ेसबुक अपडेट्स
सम्पर्क- ई-मेल: adityapost@gmail.com   •   फ़ेसबुक