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इस शहर में -आदित्य चौधरी


इस शहर में अब कोई मरता नहीं
    वो मरें भी कैसे जो ज़िन्दा नहीं

हो रहे नीलाम चौराहों पे रिश्ते
    क्या कहें कोई दोस्त शर्मिंदा नहीं

घूमता है हर कोई कपड़े उतारे
    शहर भर में अब कोई नंगा नहीं

कौन किसको भेजता है आज लानत
    इस तरह का अब यहाँ मसला नहीं

हो गया है एक मज़हब 'सिर्फ़ पैसा'
    अब कहीं पर मज़हबी दंगा नहीं

मर गये, आज़ाद हमको कर गये वो
    उनका महफ़िल में कहीं चर्चा नहीं

अब यहाँ खादी वही पहने हुए हैं
    जिनकी यादों में भी अब चरख़ा नहीं

इस शहर में अब कोई मरता नहीं
    वो मरें भी कैसे जो ज़िन्दा नहीं


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