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गोविन्द राम (चर्चा | योगदान) |
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जाटों के संबंध में प्रशांत चाहल ने नवभारत टाइम्स के लिए एक छोटा सा लेख माँगा। गुज़रे इतवार को छपा। | जाटों के संबंध में प्रशांत चाहल ने नवभारत टाइम्स के लिए एक छोटा सा लेख माँगा। गुज़रे इतवार को छपा। | ||
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+ | ; दिनांक- 29 दिसम्बर, 2014 | ||
+ | [[चित्र:Aditya-chaudhary-facebook-post-4.jpg|right|250px]] | ||
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हुस्न औ इश्क़ के क़िस्से तो हज़ारों हैं मगर | हुस्न औ इश्क़ के क़िस्से तो हज़ारों हैं मगर | ||
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समझ भी लूँ तो समझने से फ़र्क़ क्या होगा | समझ भी लूँ तो समझने से फ़र्क़ क्या होगा | ||
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+ | ; दिनांक- 23 दिसम्बर, 2014 | ||
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एक ही दिल था, वो कमबख़्त तूने तोड़ दिया | एक ही दिल था, वो कमबख़्त तूने तोड़ दिया | ||
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तेरी ही ख़ाइशें थी कि हमने रास्ता ही छोड़ दिया | तेरी ही ख़ाइशें थी कि हमने रास्ता ही छोड़ दिया | ||
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+ | ; दिनांक- 23 दिसम्बर, 2014 | ||
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क्या कहें तुमसे तो अब, कहना भी कुछ बेकार है | क्या कहें तुमसे तो अब, कहना भी कुछ बेकार है | ||
वक़्त तुमको काटना था हमने समझा प्यार है | वक़्त तुमको काटना था हमने समझा प्यार है | ||
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+ | ; दिनांक- 23 दिसम्बर, 2014 | ||
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एक दिल है, हज़ार ग़म हैं, लाख अफ़साने | एक दिल है, हज़ार ग़म हैं, लाख अफ़साने | ||
तुझे सुनने का उन्हें वक़्त, कभी ना होगा | तुझे सुनने का उन्हें वक़्त, कभी ना होगा | ||
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+ | ; दिनांक- 23 दिसम्बर, 2014 | ||
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मर गए तो भूत बन तुम को डराने अाएँगे | मर गए तो भूत बन तुम को डराने अाएँगे | ||
डर गए तो दूसरे दिन फिर डराने अाएँगे | डर गए तो दूसरे दिन फिर डराने अाएँगे | ||
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+ | ; दिनांक- 23 दिसम्बर, 2014 | ||
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कुछ एेसा कर देऽऽऽ | कुछ एेसा कर देऽऽऽ | ||
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हसीन चेहरा | हसीन चेहरा | ||
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+ | ; दिनांक- 23 दिसम्बर, 2014 | ||
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एक अपनी ज़िंदगी रुसवाइयों में कट गई | एक अपनी ज़िंदगी रुसवाइयों में कट गई | ||
जिसको जितनी चाहिए थी उसमें उतनी बँट गई | जिसको जितनी चाहिए थी उसमें उतनी बँट गई | ||
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+ | ; दिनांक- 24 दिसम्बर, 2014 | ||
+ | [[चित्र:Phool-jitne-bhi-diye.jpg|right|250px]] | ||
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फूल जितने भी दिए, उनको सजाने के लिए | फूल जितने भी दिए, उनको सजाने के लिए | ||
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वक़्त मुझको मिले फिर से ज़माने के लिए | वक़्त मुझको मिले फिर से ज़माने के लिए | ||
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+ | ; दिनांक- 19 दिसम्बर, 2014 | ||
+ | [[चित्र:Brajbhasha-geet-Aditya-Chaudhary.jpg|250px|right]] | ||
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तू जुलम करै अपनौ है कैंऽऽऽ | तू जुलम करै अपनौ है कैंऽऽऽ | ||
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तू जुलम करै अपनौ है कैंऽऽऽ | तू जुलम करै अपनौ है कैंऽऽऽ | ||
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+ | ; दिनांक- 15 दिसम्बर, 2014 | ||
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मृत्यु तुझे मैं जीकर दिखलाता हूँ | मृत्यु तुझे मैं जीकर दिखलाता हूँ | ||
पंक्ति 156: | पंक्ति 147: | ||
फिर से बिखराता हूं | फिर से बिखराता हूं | ||
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+ | ; दिनांक- 13 दिसम्बर, 2014 | ||
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नहीं कोई शाम कोई सुब्ह, जिससे बात करूँ । | नहीं कोई शाम कोई सुब्ह, जिससे बात करूँ । | ||
एक बस रात थी, ये सिलसिला भी टूट गया ॥ | एक बस रात थी, ये सिलसिला भी टूट गया ॥ | ||
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+ | ; दिनांक- 13 दिसम्बर, 2014 | ||
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मैंने देखा था, ज़िन्दगी से छुप के एक ख़्वाब कोई । | मैंने देखा था, ज़िन्दगी से छुप के एक ख़्वाब कोई । | ||
वो भी कमबख़्त मिरे दिल की तरहा टूट गया ॥ | वो भी कमबख़्त मिरे दिल की तरहा टूट गया ॥ | ||
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+ | ; दिनांक- 10 दिसम्बर, 2014 | ||
+ | [[चित्र:Chaudhary-Digambar-Singh with family.jpg|250px|right]] | ||
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− | मेरे पसंदीदा शायर | + | मेरे पसंदीदा शायर अहमद फ़राज़ साहब की मशहूर ग़ज़ल का मत्ला और मक़्ता अर्ज़ है… |
अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें। | अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें। | ||
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जैसे दो शख़्स तमन्ना के सराबों में मिलें॥ | जैसे दो शख़्स तमन्ना के सराबों में मिलें॥ | ||
− | 10 दिसम्बर, अाज पिताजी की पुण्यतिथि है। मैं गर्व करता हूँ कि मैं | + | 10 दिसम्बर, अाज पिताजी की पुण्यतिथि है। मैं गर्व करता हूँ कि मैं चौधरी दिगम्बर सिंह जी जैसे पिता का बेटा हूँ। वे स्वतंत्रता सेनानी थे और चार बार संसद सदस्य रहे। वे मेरे गुरु और मित्र भी थे। |
उनके स्वर्गवास पर मैंने एक कविता लिखी थी... | उनके स्वर्गवास पर मैंने एक कविता लिखी थी... | ||
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मुझे रुला नहीं पाता | मुझे रुला नहीं पाता | ||
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+ | ; दिनांक- 4 दिसम्बर, 2014 | ||
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सुन रहे, | सुन रहे, | ||
...मतली लाने वाले स्वर के | ...मतली लाने वाले स्वर के | ||
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− | + | ||
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जनता को | जनता को | ||
उलझाने की | उलझाने की | ||
पंक्ति 294: | पंक्ति 280: | ||
षडयंत्रों में रत हैं | षडयंत्रों में रत हैं | ||
सभी 'इयागो' जैसे | सभी 'इयागो' जैसे | ||
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सुबह सवेरे पूजा गृह में | सुबह सवेरे पूजा गृह में | ||
स्तुति रत हो | स्तुति रत हो | ||
पंक्ति 305: | पंक्ति 293: | ||
कभी कान इनके सुनने | कभी कान इनके सुनने | ||
को बने नहीं हैं | को बने नहीं हैं | ||
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− | + | ||
− | + | ||
छिनते बचपन की | छिनते बचपन की | ||
बिकती तस्वीरों से ये | बिकती तस्वीरों से ये | ||
पंक्ति 336: | पंक्ति 322: | ||
सब सहते हो...? | सब सहते हो...? | ||
</poem> | </poem> | ||
+ | [[चित्र:Mat-karna-koshish-aditya-chaudhary.jpg|left|250px]] | ||
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+ | ; दिनांक- 3 दिसम्बर, 2014 | ||
<poem> | <poem> | ||
"हाँ तो नरेन ! तो क्या खाओगे ? मैं जल्दी से सब्ज़ी बना देती हूँ, तुम भी रसोई में आ जाओ सब्ज़ी काटने में मेरी सहायता करो।” | "हाँ तो नरेन ! तो क्या खाओगे ? मैं जल्दी से सब्ज़ी बना देती हूँ, तुम भी रसोई में आ जाओ सब्ज़ी काटने में मेरी सहायता करो।” | ||
पंक्ति 352: | पंक्ति 338: | ||
मेरे विचार से भारतीय संस्कार का इतना सटीक उदाहरण और पाठ कोई और मिलना मुश्किल है। | मेरे विचार से भारतीय संस्कार का इतना सटीक उदाहरण और पाठ कोई और मिलना मुश्किल है। | ||
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+ | ; दिनांक- 3 दिसम्बर, 2014 | ||
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|-valign="top" | |-valign="top" | ||
पंक्ति 385: | पंक्ति 370: | ||
गंगा और जमना क्या | गंगा और जमना क्या | ||
आखों में रहती है | आखों में रहती है | ||
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− | + | ||
− | + | ||
जब भी तू कहती है | जब भी तू कहती है | ||
मम्मा-अम्मा मुझको | मम्मा-अम्मा मुझको | ||
पंक्ति 402: | पंक्ति 385: | ||
समझेगा कौन इसे | समझेगा कौन इसे | ||
किस-किस को समझाऊँ | किस-किस को समझाऊँ | ||
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+ | | | ||
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यूँ ही इक बात मगर | यूँ ही इक बात मगर | ||
कहती हूँ तुम सबसे | कहती हूँ तुम सबसे | ||
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साहिब का नूर हैं ये | साहिब का नूर हैं ये | ||
ईश्वर की मेवा है | ईश्वर की मेवा है | ||
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इनमें हर मंदिर है | इनमें हर मंदिर है | ||
इनमें हर मस्जिद है | इनमें हर मस्जिद है | ||
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जीवन की रेखा है | जीवन की रेखा है | ||
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