14:27, 4 दिसम्बर 2015 का अवतरण
फ़ेसबुक अपडेट्स
|  पोस्ट
 | 
 संबंधित चित्र
 | 
 दिनांक
 |  
विभिन्न क्षेत्रों में बंगाल के वासियों की अद्भुत क्षमता और प्रतिभा तो जगज़ाहिर है ही लेकिन मतदाता के रूप में भी हमारे बांग्ला बंधु, मतदान प्रतिशत में कीर्तिमान स्थापित करते रहते हैं। 
क्या मछली खाने से अक़्ल ज़्यादा आती है। 
ये सवाल तो कोलकाता में जा बसे श्री जगदीश्वर चतुर्वेदी से भी पूछा जाना चाहिए... आख़िर मामला क्या है।
 
 
 | 
 | 
 24 अप्रॅल, 2014
 |  
इसी मैदान में उस शख़्स को फाँसी लगी होगी 
तमाशा देखने को भीड़ भी काफ़ी लगी होगी 
 
जिन्हें आज़ाद करने की ग़रज़ से जान पर खेला 
उन्हीं को चंद रोज़ों में ख़बर बासी लगी होगी 
 
बड़े सरकार आए हैं, यहाँ पौधा लगाएँगे 
हटाने धूल को मुद्दत में अब झाडू लगी होगी 
 
शहर में लोग ज़्यादा हैं जगह रहने की भी कम है 
इसी को सोचकर मैदान की बोली लगी होगी 
 
यहाँ तो ज़ात और मज़हब का अब बाज़ार लगता है 
उसे अपनी शहादत ही बहुत फीकी लगी होगी
 
 
 | 
 
 | 
 21 अप्रॅल, 2014
 |  
लहू बहता है तो कहना कि पसीना होगा 
न जाने कब तलक इस दौर में जीना होगा 
 
'छलक ना' जाय सरे शाम कहीं महफ़िल में 
ये जाम-ए-सब्र तो हर हाल में पीना होगा 
 
यूँ तो अहसास भी कम है चुभन का ज़ख़्मों की 
तूने जो चाक़ किया तो हमें सीना होगा 
 
अब तो उम्मीद भी ठोकर की तरह दिखती है 
करना बदनाम यूँ किस्मत को सही ना होगा 
 
यही वो शख़्स जो कुर्सी पे जाके बैठेगा 
वक़्त आने पे वो तेरा तो कभी ना होगा
 
 
 | 
 
 | 
 21 अप्रॅल, 2014
 |  
बीते लम्हों की यादों से  
अब उठें, भव्य उजियारा है 
इस नए साल को, यूँ जीएँ  
जैसे संसार हमारा है 
 
हम जीने दें और जी भी लें 
विश्वास जुटा कर उन सब में  
जो बात-बात पर कहते हैं 
हमको किस्मत ने मारा है 
 
अब रहे दामिनी निर्भय हो 
निर्भय इरोम का जीवन हो 
अब गर्भ में मुसकाये बिटिया 
यह अंश, वंश से प्यारा है
 
 
 | 
फ़ेयर ही लवली नहीं रहे 
अनफ़ेयर यही अफ़ेयर हो  
काली मैया जब काली है 
तो रंग से क्यों बंटवारा है 
 
ये ज़ात-पात क्या होती है 
माता की कोई ज़ात नहीं 
यदि पिता ज़ात को रोता है 
तो कैसा पिता हमारा है 
 
जाने कब हम ये समझेंगे 
ना जाने कब ये जानेंगे 
मस्जिद में राम, मंदिर में ख़ुदा 
हर मज़हब एक सहारा है
 
 
 | 
सुबह आज़ान जगाए हमें 
मंदिर की आरती झपकी दे 
सपनों में ख़ुदा या राम बसें 
मक़सद अब प्रेम हमारा है 
 
सहमी मस्जिद को बोल मिलेें 
मंदिर भी अब जी खोल मिलें 
गिरजे गुरुद्वारे सब बोलें 
जय हो ! यह देश हमारा है
 
 
 |   
 | 
 
 | 
 1 अप्रॅल, 2014
 |   
 | 
शब्दार्थ
संबंधित लेख