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कितना बेदर्द और तन्हा है मुहब्बत का सफ़र
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भारत-पाकिस्तान की दुश्मनी को लेकर काफ़ी लिखा और बोला जा रहा है। सर्जिकल स्ट्राइक के बाद पूरे भारत में एक जोश और संतुष्टि का माहौल बना है। इस कार्यवाही के बाद पाकिस्तान लगभग चुप है, जिसका कारण है कि इस सर्जिकल स्ट्राइक को अंतरराष्ट्रीय नियमों और क़ानून के मुताबिक़ हॉट पर्सुइट (Hot pursuit) की मान्यता प्राप्त होना।
जिससे पूछो वही एक दर्द लिए बैठा है
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हॉट पर्सुइट याने ‘किसी आधिकारिक सशस्त्र दल (जैसे सेना या पुलिस) द्वारा अपराधियों का अपराध करते ही त्वरित पीछा करना। इस पीछा करने और अपराधियों के ख़िलाफ़ कार्यवाही करने में देश या राज्य की सीमा पार कर जाने को अंतरराष्ट्री सीमा उल्लंघन नहीं माना जाता है। इसमें सामान्य रूप से किसी स्वीकृति या सूचना की भी आवश्यकता नहीं होती और इसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त है।
 
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इस मुद्दे पर कुछ विवाद भी सामने आए हैं। जिनमें से एक मुद्दा है नदियों के पानी का। विश्व भर में जलसंधियों के आधार पर नदियों के जल का बँटवारा होता है। जिसे भंग नहीं किया जा सकता, लेकिन अब ऐसा होना मुमकिन है। प्रसिद्ध वैज्ञानिक अल्बर्ट आइन्सटाइन ने कहा था कि भविष्य में युद्धों के कारण जल-विवाद ही होंगे। अब यह सामने आने लगा है। नदियों के पानी बंटवारे का विवाद हमारे देश में राज्यों के आपसी विवाद का कारण भी है। जैसे फ़िलहाल में कावेरी का विवाद।
एक इज़हार-ए-मुहब्बत ही न कर पाने को
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एक बात हमें अच्छी तरह समझ लेनी चाहिए कि चीन और पाकिस्तान से चाहे रिश्ते कितने भी मधुर हो जाएँ, नदियों के जल का विवाद होना अवश्यम्-भावी है। ब्रह्मपुत्र के पानी को लेकर इस समय चीन जो कुछ कर रहा है उसकी वजह पाकिस्तान नहीं है। पाकिस्तान पर तो वह बेवजह एहसान दिखा रहा है। ब्रह्मपुत्र के पानी को लेकर तो चीन के इरादे बहुत पहले से ही नेक नहीं हैं।
किसी कोने में वो अफ़सोस किए बैठा है
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माओ का शासन प्रारम्भ होते ही चीन ने नदियों का रास्ता बदलना और नहरों का निर्माण शुरू कर दिया था जिसका कारण था आधे चीन में सूखा और रेगिस्तान साथ ही बाक़ी आधे में बाढ़। चीन में कई वर्ष शिक्षा बन्द करके सबको नदियों का बहाव मोड़ने में लगा दिया गया था।
 
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इसलिए भारत सरकार को यह अभी से तय करना होगा कि भावी योजनाएँ क्या होंगी। इन विवादों को निपटाने में कुर्सी-मेज़ और पेन-काग़ज़ काम नहीं आएँगे बल्कि सशक्त और आधुनिक तकनीक से लैस सेना काम आएगी। सेना की तनख़्वाह में बढ़ोत्तरी, प्रत्येक नागरिक की अनिवार्य रूप से सैन्य शिक्षा, सैन्य शिक्षा में स्त्रियों की बराबर भागेदारी और प्रत्येक नागरिक में राष्ट्रीय भावना का अनवरत संचार जैसे सुधार ही हमें एक सुरक्षित राष्ट्र का गौरवमयी नागरिक बना सकते हैं।
मेरा महबूब, किसी रोज़ पलट कर आए
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दूसरा विवाद है, कुछ एक भारतीय फ़िल्मी अभिनेताओं द्वारा पाकिस्तानी कलाकारों का पक्ष लेना। इसमें पहली बात यह है कि इस तरह के अभिनेता कोई ज़िम्मेदार क़िस्म के इंसान नहीं है। इससे पहले भी इनकी ग़ैरज़िम्मेदाराना हरक़तें सामने आई हैं जिनकी चर्चा करना व्यर्थ है।
दिल को मासूम दिलासा सा दिए बैठा है
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समझना तो आम जनता को है जो कि फ़िल्मी कलाकारों को हीरो समझने लगती है और उन्हें असली ज़िन्दगी में भी बढ़िया इंसान मानने लगती है। तमाम एक्टर ऐसे हैं जो पर्दे पर खलनायक की भूमिका करते हैं लेकिन असल ज़िन्दगी में एक बेहतरीन इंसान हैं, ठीक इसका उल्टा नायक की भूमिका करने वाले के साथ भी हो सकता है। इसलिए जनता को अपने हीरो पर्दे से नहीं बल्कि असल ज़िन्दगी से ही चुनने चाहिए।
 
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कलाकार भी इंसान ही होता है और उसका भी अपना देश और देशभक्ति होती है। पाकिस्तानी कलाकारों की देशभक्ति उनके पाकिस्तान के लिए है। उनसे भारत के लिए वफ़ादारी की उम्मीद करना फ़ुज़ूल की बात है। पाकिस्तानी कलाकार अपनी कमाई को पाकिस्तान ले जाता है और वहीं टॅक्स देता है, संपत्ति ख़रीदता है और ख़र्चा करता है। पाकिस्तान चाहे आतंकी देश हो या अहिंसावादी उस पाकिस्तानी कलाकार के लिए तो वही उसका देश है।
उसको आती हो मेरी याद कभी फ़ुर्सत में
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अब ज़रा सोचिए कि हम पाकिस्तानी आतंकवाद में उस कलाकार का हिस्सा मानें या नहीं। जब सानिया मिर्ज़ा एक पाकिस्तानी से शादी करती है तो भारतवासी ये उम्मीद करते हैं कि वह अब भी भारत के लिए खेले और भारत को ही अपना देश समझे… तो बताइये कि पाकिस्तानी कलाकार भी तो शुद्ध रूप से पाकिस्तानी ही हुआ या नहीं? इस समय किसी पाकिस्तानी कलाकार की कमाई भारत में कराने से हम स्पष्ट रुप से पाकिस्तान की मदद ही कर रहे हैं।
ऐसी हसरत से दिल के घाव सिए बैठा है
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ऐसी बात नहीं है कि मुझे पाकिस्तान का कभी भी कुछ भी पसंद नहीं रहा। मेरे भी पसंदीदा शायर कुछ पाकिस्तानी रहे हैं जैसे फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ और अहमद फ़राज़। ग़ज़ल गायकों में मेंहदी हसन मेरे पसंदीदा हैं लेकिन पाकिस्तान के किसी शायर की ग़ज़ल पसंद करना एक अलग बात है और फ़िल्मी और टीवी कलाकारों को भारत में बिठाकर उसकी करोड़ों-अरबों की कमाई करवाना एक बिल्कुल अलग बात है।
 
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कैसा बेज़ार है, तन्हा है, बेख़बर भी है
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इसकी पहचान बनाने को पिए बैठा है
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| [[चित्र:Kitna-bedard-aur-tanha-Aditya-Chaurdhay.jpg|250px|center]]
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| 24 मई, 2015
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| 4 अक्टूबर, 2016
 
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इतनी तो बीत भी गई उतनी भी बीत जाएगी
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हिन्दी अकादमी दिल्ली में मेरे व्याख्यान का एक अंश यहाँ प्रस्तुत है ताकि सनद रहे कि मैं कहीं भी मौजूद होता हूँ तो ब्रज को नहीं भूलता…
जिस ज़िन्दगी की चाह थी वो जाने कब आ पाएगी
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“हिन्दी की इमारत लोकभाषाओं के स्तंभों पर टिकी हुई है। लोकभाषाएँ हिन्दी के स्तम्भ हैं उसकी नींव हैं। सारी दुनिया में से लोकभाषाएँ एक-एक करके समाप्त हो रही हैं। विश्व में 6000 भाषा-बोलियों का रंग-बिरंगा संसार है जिसमें से हर पच्चीसवें दिन एक लोकभाषा सदा के लिए विलुप्त हो जाती है और उसके साथ ही एक संस्कृति, एक विज्ञान, एक कला, एक पद्धति, एक परम्परा और एक शब्दावली भी मर जाती है।
 
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ज़रूरत हिन्दी अकादमी की नहीं बल्कि लोकभाषाओं की अकादमी की है जैसे ब्रजभाषा, अवधी, भोजपुरी, मागधी आदि की अकादमी बननी चाहिए क्योंकि जब लोकभाषा का ही संरक्षण नहीं होगा तो हिन्दी में प्रयुक्त होने वाले शब्दों का मूल हम कहाँ खोजेंगे। हमारी समृद्ध हिन्दी एक इतिहास रहित खोखली भाषा बनकर रह जाएगी।”
बच्चों को पाल भी लिया, घर को संभाल भी लिया
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शायद आप नहीं जानते होंगे कि ब्रजभाषा अकादमी राजस्थान में तो है पर उत्तर प्रदेश में नहीं…
वो फ़ुर्सतों चाय तेरे संग कब पी जाएगी
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| [[चित्र:Aditya-Chaudhary-Delhi-Akadami.jpg|center|200px]]
| 23 मई, 2015
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| 1 अक्टूबर, 2016
 
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कालान्तर में शब्दों के अर्थ बदल जाते हैं। महाभारत, रामायण अथवा बुद्ध के काल में प्रयुक्त होने वाले शब्दों के अर्थ आज भी वही हों ऐसा नहीं है।
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ओलंपिक मेडल जीतने के बाद जो करोड़ों रुपए की बरसात खिलाड़ियों पर होती है, वह पैसा अगर उन कोच को दिया जाए जिन्होंने उस खिलाड़ी को बनाया तो ज़्यादा बेहतर नतीजे सामने आ सकते हैं। 10 सिंधु मिलकर एक [[पुलेला गोपीचंद]] नहीं बना सकतीं हैं जबकि एक पुलेला गोपीचंद 10 [[पी.वी. सिंधु|सिंधु]] बना सकता है...
इस कारण आज के समय में भ्रांतियाँ पैदा हो जाना सहज ही है। ‘संग्राम’ और ‘गविष्टि’ शब्दों का अर्थ आज के संदर्भ में ‘संघर्ष’ या ‘युद्ध’ है। संग्राम तो अब भी प्रचलित है लेकिन गविष्टि उतना नहीं।
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क़बीलों की संस्कृति जब ग्रामों, पुरों और उरों (दक्षिण भारत) में स्थापित हो रही थी तब ग्रामों के सम्मेलन या पंचायत को ‘संग्राम’ कहा जाता था। यदि सामान्य रूप से संधि विच्छेद करें तो संग्राम का अर्थ ‘गाँवों का मिलना’ ही निकलता है। इन ‘संग्रामों’ में कभी-कभी झगड़ा और उपद्रव हो जाता था जो युद्ध का रूप भी धारण कर लेता था। कालान्तर में संग्राम शब्द का अर्थ ही बदल गया। - प्रसिद्ध विद्वान श्री डी डी कोसम्बी ने इसे विस्तार से समझाया है।
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‘गविष्टि’ शब्द का प्रयोग प्राचीन काल में गायों को ढूंढने के लिए होता था। इसका शाब्दिक अर्थ यही है।
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गायें चरते-चरते दूर निकल जाती थीं जिन्हें ढूंढने जाना पड़ता था। इन गायों को तलाश करने में उन लोगों से झगड़ा होता था जो गायों को बलपूर्वक रोक लेते थे। कालान्तर में गविष्टि शब्द भी युद्ध के संदर्भ में प्रयुक्त होने लगा। - प्रसिद्ध इतिहासकार सुश्री रोमिला थापर ने इसे विस्तार से समझाया है।
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| 12 मई, 2015
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| 28 अगस्त, 2016
 
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श्री [[रामविलास शर्मा]] जी की पुस्तक 'भारतीय संस्कृति एवं हिन्दी प्रदेश' का एक महत्वपूर्ण अंश
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किसी व्यक्ति का सही मूल्याँकन उसके जीवन के किसी कालखंड से नहीं बल्कि उसके पूरे जीवनकाल से होता है।
 
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[[शंकराचार्य]] से पहले और उनके बाद बहुत-से लोगों ने संसार को दु:ख का मूल कारण मानकर घर-बार छोड़कर संन्यासी हो जाना उचित समझा। संन्यास [[भारतीय संस्कृति]] की मूल धारा नहीं है। भारतीय जनता के चरित्र-निर्माण में रामायण और [[महाभारत]] की अद्वितीय भूमिका है। इन महाकाव्यों में कोई भी पात्र संन्यासी नहीं है। महाभारत में स्वयं [[व्यास]] ने अपने पुत्र [[शुकदेव]] से कहा-
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गृहस्थस्त्वेष धर्माणां सर्वेषां मूलमुच्यते, “यह गृहस्थ आश्रम सब धर्मों का मूल कहा जाता है।” ([[शांतिपर्व महाभारत|शांतिपर्व]], 234, 6) और [[मनुस्मृति]] में कहा गया है, गृहस्थ उच्यते श्रेष्ठ:, सभी आश्रमों में गृहस्थ श्रेष्ठ है। (6, 89) शरीर नश्वर है, आत्मा अमर है, इस धारणा से प्रेरित होकर अनेक युगों में बहुत-से लोगों ने शरीर को तरह-तरह के कष्ट दिए, जिससे मिट्टी से मुक्त होकर शीघ्र उन्हें शुद्ध ज्योति के दर्शन हो सकें। इस भावना का प्रचार भी किया गया कि जो शरीर को जितना ही अधिक कष्ट देगा, उसे उतना ही शीघ्र शुद्ध ज्योति के दर्शन होंगे।
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[[भारत]] में जो भी ज्ञान-विज्ञान में उन्नति हुई है, वह सापेक्ष रूप में संसार और मानव शरीर को सत्य मानकर ही हुई है। विभिन्न क्षेत्रों में विज्ञान की उन्नति से दर्शन का गहरा सम्बन्ध है। भाषा-विज्ञान में [[पाणिनी]], शरीर-विज्ञान में [[चरक]] या उनके पूर्ववर्ती आचार्य अग्निवेश, [[आत्रेय]], पुनर्वसु आदि और अर्थशास्त्र में [[चाणक्य|कौटिल्य]] अथवा उनके पूर्ववर्ती [[बृहस्पति ऋषि|बृहस्पति]], उशना आदि आचार्य सब संसार को सत्य मानकर ही भाषा, शरीर और समाज का विश्लेषण कर सके थे।
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भौतिक पदार्थ परिवर्तनशील हैं, अनित्य हैं, इनमें व्याप्त ऊर्जा, प्राणशक्ति ही विभिन्न पदार्थों के रूप में व्यंजित होती है, यह धारणा भारत में बहुत पुरानी है। यह दृष्टिकोण अपनाकर मनुष्य वैज्ञानिक अनुसंधान में निरंतर प्रगति कर सकता है। पाणिनी ने अपने दर्शन का उल्लेख नहीं किया, पर उनकी पद्धति वही है जो वैशेषिक दर्शन की है। चरक संहिता में इस दर्शन का उल्लेख है और कौटिल्य ने अर्थशास्त्र के आरम्भ में लोकायत, सांख्य और योग का स्पष्ट रूप से नाम लिया है। दार्शनिक यथार्थवाद की धारा लोककल्याण की धारणा से जुड़ी हुई है। प्राचीन दर्शन की कोई भी धारा लोकहित को छोड़कर नहीं चलती। लोक न होगा तो लोकहित कहाँ से होगा? ब्रह्म और आत्मा की सर्वाधिक चर्चा करने वाला वेदान्त भी लोकहित का तिरस्कार नहीं करता। लोकहित की यह धारणा उपनिषदों से धर्मशास्त्र तक चली आई है।
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[[दर्शन|भारतीय दर्शन]] की बहुत बड़ी विशेषता यह है कि वह लोकव्यवहार से कभी पूरी तरह असंबद्ध नहीं हुआ। धर्मशास्त्रों में बार-बार कहा गया है, पूजा, उपासना, कर्मकाण्ड की तुलना में सदाचार बढ़कर है। सदाचार का, मनुष्य के नैतिक मूल्यों का, एक दार्शनिक आधार है। वह उपनिषदों में प्राप्त है। जो ब्रह्म एक मनुष्य के भीतर है, वही ब्रह्म दूसरे मनुष्य के भीतर है। इसलिए एक मनुष्य दूसरे से घृणा क्यों करे, अपने को बड़ा और दूसरे को छोटा क्यों समझे? जिस समाज व्यवस्था में शूद्र छोटे हैं, ब्राह्मण बड़े हैं, स्त्रियाँ शूद्रों के समान हैं, वह व्यवस्था पुरोहितों की रची हुई है; संस्कृति के मूल स्रोतों से उसका कोई सम्बन्ध नहीं है। यजुर्वेद में कहा गया है-
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“(यथा इमां कल्याणी वाचम्) जिस प्रकार इस कल्याणकारी वाणी को हमने (ब्रह्मराजन्याभ्यां च शूद्राय च अर्याय स्वाय अरणाय च जनेभ्य: आवदानि) ब्राह्मण व क्षत्रियों के लिए और शूद्र के लिए तथा वैश्य के लिए, अपने प्रिय लगने व प्रिय न लगने वाले पराये एवं सम्पूर्ण जनों के लिए उपदेश किया है, वैसे हे मनुष्यो ! तुम लोग भी करो।“ (26, 2) (सातवलेकर, यजुर्वेद का सुबोध भाष्य, पृष्ठ 423)
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जब [[यजुर्वेद]] रचा गया था, तब समाज में चार वर्ण थे। यह [[वेद]] किसी एक वर्ण के लिए वरन् शूद्रों समेत चारों वर्णों के लिए है। शूद्र वेद न पढ़ें, पुरोहितों का यह कार्य वेदविरोधी था। शूद्रों के साथ स्त्रियों के लिए कहा गया- वे वेद न पढ़ें, लेकिन [[ऋग्वेद]] के अनेक सूक्त और मंत्र स्त्रियों के रचे हुए परम्परा से प्रसिद्ध हैं। 8वें मण्डल का एक पूरा सूक्त 91 आत्रेयी अपाला का रचा हुआ है। 10वें मण्डल के दो सूक्त 39, 80 काक्षीवती घोषा के रचे हुए प्रसिद्ध हैं। धर्मरक्षक पण्डित स्त्रियों के रचे हुए वेदमंत्र स्वयं पढ़ते हैं, परन्तु स्त्रियों को उन्हें पढ़ने का अधिकार न देते थे।
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[[राजा राममोहन राय]] परम वेदांती थे। उन्होंने [[सती प्रथा]] का विरोध किया। यह नहीं कहा- आत्मा के लिए शरीर बन्धन है, पति के साथ विधवा भी चिता पर भस्म हो जाए तो उसकी आत्मा मुक्त हो जाएगी। यहाँ व्यवहार में हम वेदांतियों को लोकहित के लिए संघर्ष करते हुए देखते हैं। राममोहन राय को विधवाओं की प्राणरक्षा के लिए संघर्ष करना पड़ा, इसी तरह विधवाओं के पुनर्विवाह के लिए [[स्वामी दयानन्द सरस्वती]] को संघर्ष करना पड़ा और साहित्यकारों में द्विज और शूद्र का भेद मिटाने के लिए [[सूर्यकांत त्रिपाठी निराला]] को संघर्ष करना पड़ा। भारतीय संस्कृति का इतिहास लोकविरोधी रूढ़ियों और प्रगतिशील विचारधाराओं के सतत संघर्ष का इतिहास है।
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| 11 मई, 2015
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| 17 अगस्त, 2016
 
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‘विद्युता’ पौराणिक धर्म ग्रंथों में वर्णित एक अप्सरा का नाम है। उसका सम्बन्ध अलकापुरी बताया गया है। इस अप्सरा ने 'अष्टावक्र' मुनि के स्वागत के अवसर पर कुबेर भवन में नृत्य किया था। इस नृत्य में नर्तकी एक के बाद एक अपने सभी वस्त्र उतार देती है और अंत में पूर्णत: नग्न होकर नृत्य करती है। यह नृत्य यूरोप में कॅबरे (cabaret) नाम से होता है।
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एक विदेशी पत्रकार ने एक आधुनिक नेता का इंटरव्यू लिया
 
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पत्रकार: सुनने में आया है कि आपके यहाँ बलात्कार की क्लिप 10 से 15 रुपये में मिलती है। यह तो बहुत शर्मनाक है।
ऋषि अष्टावक्र के साथ और भी कई ऋषि-मुनि थे जो यह नृत्य देख रहे थे। जब विद्युता ने नृत्य करते हुए वस्त्र उतारना शुरू किया तो पहले वस्त्र पर ही एक ऋषि क्रोध से मुँह फेरकर वहाँ से उठकर चले गए। जब और वस्त्र उतारे तो एक और ऋषि उठ खड़े हुए और यह कहते हुए वहाँ से चले गए कि इस नग्न नृत्य से मन विचलित होता है। यह सुनकर अन्य ऋषि-मुनि भी उठकर चले गए। अष्टावक्र बिना विचलित हुए शान्त भाव से नृत्य देखते रहे। विद्युता पूरे वस्त्र उतार कर नाच रही थी। जब उसने अपना नृत्य समाप्त किया तो उसने अष्टावक्र को प्रणाम कर आशीर्वाद मांगा। अष्टावक्र ने कहा-
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नेता: बिल्कुल झूठ है सर जी! ये सब अफ़वाह है। ऐसा कुछ नहीं है।
 
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पत्रकार: तो फिर सच क्या है?
“तुमने अत्यन्त श्रेष्ठ नृत्य का प्रदर्शन किया विद्युता! किंतु नृत्य को बीच में ही रोक दिया, मैं तो समझ रहा था कि तुम नृत्य करते-करते वस्त्रों के बाद अपनी त्वचा भी उतार दोगी और उसके बाद हड्डियों को ढकने वाला मांस भी उतार फेंकोगी… ? किंतु तुमने ऐसा न करके मुझे निराश कर दिया, यदि फिर कभी नृत्य करते-करते त्वचा और मांस को भी उतारो तो मुझे निमंत्रण देना, मैं अवश्य आऊँगा।”
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नेता: सच ये है सर कि क्लिप बिल्कुल मुफ़्त मिल रही है। कोई पैसा नहीं देना पड़ता। आप कहें तो आपको वाट्स एप कर दूँ?
 
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पत्रकार: जी नहीं मुझे नहीं चाहिए।… ये बताइये कि आपके यहाँ बिजली की बहुत समस्या है? आम आदमी के घरों में आपने अंधेरा कर रखा है?
सन्त अपने वीतराग में कितने गहरे डूब जाते होंगे इसकी कोई सीमा नहीं है। नग्न नर्तकी को नाचते हुए देखकर भी अष्टावक्र, विद्युता के मादक यौवन से भरी देहयष्टि के प्रति कामवासना से वशीभूत होने की अपेक्षा उसकी चमड़ी, मांस और हड्डी के बारे में विचारमग्न थे।
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नेता: ये भी ग़लत सूचना है। घरों में अंधेरा होने की बात झूठी है। घर-घर में इन्वर्टर हैं। ऍल.ई.डी लाइट हैं, बैटरी वाली। साथ ही हम उनको इन्वर्टर चार्ज करने के लिए हर दो घंटे बाद एक घंटा बिजली देते हैं। हम अफ़ग़ानिस्तान से ज़्यादा बिजली की सप्लाई दे रहे हैं। … सर आख़िर हम नेता भी तो इंसान ही हैं। जनता का दुख-दर्द हम नहीं समझेंगे तो कौन समझेगा।
 
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पत्रकार: आपकी पुलिस से जनता डरती है। पुलिस के पास जाने में घबराती है। ऐसा क्यों?
अष्टावक्र जन्म से ही शारीरिक रूप से अपूर्ण थे। उनके शरीर में हाथ-पैरों सहित कई हड्डियां टेड़ी-मेड़ी थीं। उनकी शारीरिक कुरूपता के कारण उनमें कोई आकर्षण नहीं था। मिथिला नरेष राजा जनक की राजसभा में जाने पर जनक के सभासदों ने हँसकर उनका उपहास किया। जनक की कोई प्रतिक्रिया न देखकर अष्टावक्र ने जनक को संबोधित करते हुए कहा-
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नेता: डरने का क्या है जी… डरते तो लोग भूत-प्रेत से भी हैं पर भूत-प्रेत कोई डरने की चीज़ हैं। जब भूत-प्रेत होते ही नहीं तो उनसे डरना क्या?
 
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पत्रकार: तो अाप कहना चाहते हैं कि आपके पास पुलिस है ही नहीं ये बस जनता का भ्रम है जैसे कि भूत-प्रेत?
“मैं समझता था कि तू विद्वान व्यक्ति है किंतु तेरी सभा में तो मात्र शरीर का और विशेषकर चमड़ी का मूल्यांकन करने वाले सभासद हैं। मैं तो चमड़ी के व्यापारियों की सभा में आ गया।”
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नेता: असल में हमारी पॉलिसी बहुत ज़बर्दस्त है सर! हम पुलिस को अपनी सीक्योरिटी में लगाए रखते हैं। जिससे पुलिस जनता के पास पहुँचती ही नहीं है तो जनता डरेगी कैसे? दूसरी बात ये है सर कि जब हमारी पुलिस से चोर, डाकू और बलात्कारी जैसे लोग नहीं डरते जबकि वे भी तो इंसान हैं… इसी समाज का हिस्सा हैं … तो फिर जनता को डरने की क्या ज़रूरत है ?
 
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पत्रकार: आपके यहाँ सड़कों में गड्ढे हैं। बरसात में सड़कों पर पानी भर जाता है। इसका भी कोई जवाब है आपके पास ?
जनक शर्मिंदा हुए और अष्टावक्र से उपदेश के लिए प्रार्थना की, जो बाद में अष्टावक्र गीता के नाम से प्रसिद्ध है।
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नेता: हमारे कर्मचारी, दिन और रात गड्ढे भरने में लगे रहते हैं सर! हमारा देश बहुत बड़ा है। लाखों किलोमीटर सड़कें हैं। देश बड़ा होने से ट्रॅफ़िक भी ज़्यादा है। रोड ऍक्सीडेन्ट कम हों इसलिए हमको गड्ढे भी बना कर रखने पड़ते हैं। गड्ढों की वजह से स्पीड कम रहती है और ऍक्सीडेन्ट कम होते हैं।
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पत्रकार: आप अपने बारे में बताइये कि आप कितने पढ़े-लिखे हैं ?
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नेता: देश सेवा से फ़ुर्सत मिलती तभी तो पढ़ता…
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पत्रकार ने मौन धारण कर लिया और वापस चला गया।
 
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| 9 मई, 2015
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| 14 अगस्त, 2016
 
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मौसम है ये गुनाह का इक करके देख लो
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सुसेवायाम्
जी लो किसी के इश्क़ में या मर के देख लो
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परम पिता श्रीमंत प्रजापति ब्रह्मा जी महाराज
  
क्या ज़िन्दगी मिली तुम्हें डरने के वास्ते?
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सिरी पत्री जोग लिखी मथुरा से ब्रह्मलोक कूँ
जो भी लगे कमाल उसे करके देख लो
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हमारी सबकी राम-राम आप सब को मिले।
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अपरंच समाचार ये है कि यहाँ सब कुशल है और आपके यहाँ तो सब कुशल होगा ही…
  
जो लोग तुमसे कह रहे जाना नहीं ‘उधर’
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यहाँ मौसम बरसात का है झमाझम चौमासे चल रहे हैं तो फिर थोड़ी बहुत तबियत भी ‘नासाज’ चलती है। बाक़ी सब आपकी ‘किरपा’ से ठीक-ठाक और सकुशल है। पिछले दिनों घनघनाती बारिश आई। घरों-चौबारों में तो बच्चे काग़ज़ की नाव चलाने लगे, गाँवों में कच्चे घर गिर गए, शहर में पक्के घरों की छत टपकने लगीं और अब आपसे क्या छुपाना, हमारा भी घर पुराना है तो उसकी छत भी टपकी। हमारे यहाँ कहते हैं ‘जितना नाहर (शेर) का डर नहीं है जितना कि टपके का डर है’। ख़ैर आप तो बादलों से ऊपर रहते हैं आपको क्या पता कि बारिश क्या है और ‘टपका’ क्या है।
इतना भी क्या है पूछना, जाकर के देख लो
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कब-कब हैं ये मंज़र ये नज़ारे हयात के
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बरसात से किसान की फ़सल बहुत ही अच्छी होने की संभावना बन रही है ब्रह्मा जी! । सब आपकी माया है… कहीं धूप कहीं छाया है।
इक बार ही देखो तो नज़र भर के देख लो
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बाक़ी सब आपकी किरपा है। सबकुछ ठीक-ठाक चल रहा है, कुशल मंगल है। वैसे तो आपको पता ही होगा लेकिन फिर भी बता दूँ कि एक देश है फ्रांस वहाँ एक ट्रक ने जानबूझ कर सैकड़ों लोग कुचल डाले… उस दृश्य को देखकर दिल तो क्या पत्थर का पहाड़ भी पिघल जाता। मगर आपके ब्रह्मलोक में तो न ही सड़कें हैं और न ही ट्रक तो आपको इसका कोई अनुभव नहीं होगा। जब आपको कभी दर्द हुआ ही नहीं तो समझेंगे क्या प्रजापति जी! हमारे यहाँ कहते हैं कि ‘जाके पैर न फटी बिबाई वो कहा जाने पीर पराई’ फिर भी हम तो आपसे ही गुहार करते हैं भले ही आप सुनें न सुनें।
  
कुछ लोग रोज़ मर रहे, जीने की फ़िक्र में
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श्रीमंत! हमारे देश में प्रजातंत्र है आप प्रजापति हैं तो इसके बारे में अच्छी तरह से जानते ही होंगे, अब आपके सामने हम क्या ज्ञानी बनें। प्रजातंत्र में जनता को स्वतंत्रता मिली हुई है, विशेषकर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता। इस स्वतंत्रता के लाभ क्या हैं हम साधारण जन समझ नहीं पाते लेकिन इसके नुक़सान भी हैं जो हमें बहुत दु:खी करते हैं। यह अभिव्यक्ति बच्चियों से बलात्कार करने में ज़्यादा की जा रही है। बलात्कार की घटनाएँ इतनी सामान्य हो चली हैं कि लोग अपनी दुश्मनी निकालने के लिए झूठे बलात्कार के आरोप लगाने लगे हैं। अभी पिछले दिनों दो पड़ोसियों में ज़मीन को लेकर विवाद हो गया दोनों ने एक दूसरे पर अपनी नाबालिग बेटियों पर यौनशोषण होने का झूठा आरोप पुलिस की उपस्थिति में लगाने की कोशिश की… बाक़ी सब सकुशल है, ठीक-ठाक चल रहा है।
जीना है अगर शान से तो मर के देख लो
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जमती नहीं है रस्म-ओ-रिवायत की बंदिशें
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हमारे प्रदेश में अब चुनाव आने वाले हैं ब्रह्मा जी! तीन-चार पार्टियाँ हैं जो यहाँ दंगल में हिस्सा लेंगी। एक सामाजिक न्याय का बहाना बनाएगी तो दूसरी समाजवाद का, तीसरी अच्छे दिनों का और चौथी के पास तो पता नहीं क्या मुद्दा है। इस चुनाव में जीते कोई भी लेकिन हारेगी हमेशा की तरह जनता ही। चेहरों के अलावा कुछ भी नहीं बदलेगा (अाजकल तो सरकार बदलने पर बहुत से चेहरे भी नहीं बदलते)। विकास कार्यों में कमीशन, पोखर-तालाबों पर क़ब्ज़े, झूठे वादे, व्यक्तिगत लाभ देने की पेशकश, पैसा लेकर नौकरी, नेताओं, ब्यूरोक्रेसी और पुलिस का निरंकुश राज…
परवाज़ नए ले, उड़ान भर के देख लो
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‘आदित्य’ को रुसवा जो कर रहे हो शहर में
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आपके ब्रह्मलोक में प्रजातंत्र नहीं है इसलिए आपको यह सब नहीं भुगतना पड़ता है परमपिता! ऐसा नहीं है कि प्रजातंत्र कोई बुरी पद्धति है बल्कि बहुत से देशों में यह सचमुच में है और अपने सर्वजनहिताय स्वरूप में ही मौजूद है। ज़रा ये बताइये कि हमारा प्रजातंत्र ऐसा क्यों है ? हर गली-मुहल्ले में पार्टियाँ बन रही हैं कुछ ही परिवार राज किए जा रहे हैं। किसी को धर्म, किसी को जाति और किसी को क्षेत्र या भाषा का ही मुद्दा मिलता है। जनहितकारी मुद्दे ग़ायब हैं। व्यक्तिगत हित सर्वोपरि हैं। हमारे देश में तो कुछ ऐसा लगता है कि जैसे प्रजातंत्र वह द्रौपदी है जिसे दु:शासन (कुशासन) से ही ब्याह दिया गया है। बाक़ी सब कुशल है, सब आपकी ‘किरपा’ है।
तो सारे गिरेबान इस शहर के देख लो
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| 6 मई, 2015
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बुद्ध पूर्णिमा 4 मई 2015 को है। इस बार भगवान बुद्ध मुस्कुराएँगे नहीं। व्यथित हैं बुद्ध। नेपाल-भारत में आए भूकंप से। इतनी अधिक मात्रा में मृत्यु देखकर, वह भी निज जन्मस्थान लुंबिनी के निकट…
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बुद्ध तो एक शव देखकर ही प्रवज्या को चले गए थे। फिर इतने शव? क्या फिर अवतार लेंगे? अाओ बुद्ध तुम्हारी ज़रूरत है अब विश्व को… या फिर कुपित हैं बुद्ध, नहीं लेंगे अवतार… क्या अब कभी नहीं?…
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आपसे करबद्ध निवेदन है कि थोड़ा सा हमारा दर्द समझने और बाँटने की ‘किरपा’ कीजिए। ज़रा झांककर देखिए बुन्देलखन्ड में कितने किसान भूखे मरे और कितने आत्महत्या करके। हमारे पड़ोस की उस औरत के घर में जिसका पति कुछ कमाता नहीं और फिर भी जुअा खेलता है और शराब पीकर अपनी बीवी-बच्चों की पिटाई करता है। बीवी अपने पति से पिट-पिट कर भी घरों में चौका-बर्तन करके अपने बच्चों को पाल रही है। अपने बच्चों को पानी पिलाने के लिए भी उसे किसी धनाड्य के घर से आर.ओ. का पानी ले जाना पड़ता है। शेष सब कुशल मंगल है। आपकी किरपा बनी हुई है।
  
भारत के ईशान कोण पर हलचल है। विध्वंसकारी हलचल। चीन की कुदृष्टि से भी भयावह। 10 फ़ीट का विस्थापन झेल रहा है ईशान पर भारत। वास्तु के आधार पर तो ईशान को मंगलकारी वायु के प्रवाहन का द्योतक होना चाहिए लेकिन इस बार यह कैसा प्रवाह?
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कभी-कभी हम सोचते हैं ब्रह्मा जी! कि धरती का सारा धुँआ उड़कर असमान की तरफ़ जाता है। आपको अखरता तो होगा। पर्यावरण की हालत का अन्दाज़ा आपको ज़रूर होगा। हमारे खेतों से होकर जो नहर गुज़र रही हैं उनमें पानी का रंग काला होने लगा है। बाग़ों को काटकर दुक़ाने बनाई जा रही हैं। जब कोई बड़ा पेड़ काटा जाता है तो हमें लगता है कि किसी बज़ुर्ग की हत्या हो गई। क्या आपको भी ऐसा लगता है? हमारे घर में भी एक नीम का पेड़ है वो बूढ़ा हो गया है और हमारे घर की ओर बहुत ज़्यादा झुक गया है। डर है कि कहीं घर पर न गिर पड़े। कई बार सोचा कि इसे कटवादें लेकिन हिम्मत नहीं पड़ती। जब हमारा एक पेड़ के पीछे ये हाल है तो दुनियाँ में न जाने कितने पेड़ रोज़ाना काटे जा रहे हैं। किसी का दिल नहीं पसीजता? आपका भी नहीं?
  
आइए बुद्ध का स्मरण करें और बुद्धम शरणम् गच्छामि, संघम् शरणम् गच्छामि और धम्मम् शरणम् गच्छामि का पाठ करें।
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हमने तो जो मन में आया लिख दिया है अब आप जानें कि क्या ‘एक्सन’ लेंगे। कोई भूल-चूक हुई हो तो ‘छिमा’ कीजिएगा।
  
बुद्ध, बुद्ध क्यों बने? सिद्धार्थ का बुद्ध हो जाना कैसे घटा? क्यों हो जाते हैं सिद्धार्थ ‘बुद्ध' ? क्या है ये सन्न्यास, क्या है यह प्रवज्या। यह सन्न्यास किस चाह में, किस खोज में ? ईश्वर की खोज में या मोक्ष प्राप्ति के लिए या कुछ और…?
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सबको यथायोग्य
 
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आपका अाज्ञाकारी
सिद्धार्थ ने वृद्ध को देखा, रुग्ण को देखा और फिर शव को देखा और गृह त्यागकर सन्न्यस्त हो गए। क्या यही सब घटा? नहीं और भी कुछ घटा था।
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आदित्य चौधरी
 
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सिद्धार्थ अनेक सुंदर दासियों और रणिकाओं के साथ रात्रि विश्राम में थे। वे रात को उठे तो देखा कि जिन नारियों के साथ वे सो रहे थे, वे सब जागते हुए तो बहुत सुंदर लगती हैं लेकिन सोते हुए उनका रूप ऐसा नहीं था कि जिसपर रीझा जा सके या उनके साथ रमण करने की वासना मन में उत्पन्न हो क्योंकि किसी के बाल बेतरतीब फैले हुए थे, किसी के वस्त्र अस्तव्यस्त होकर एक वितृष्णा पैदा कर रहे थे, कोई नग्नावस्था में विचित्र और कुरूप लग रही थी, कोई खर्राटे ले रही थी और इसी प्रकार के दृश्य सिद्धार्थ के समक्ष उपस्थित थे।
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सिद्धार्थ को बहुत क्षोभ हुआ और उन्होंने सोचा कि क्या इन्हीं के साथ मैं रमण करता हूँ। यह शारीरिक रूप-लावण्य तो अस्थाई भाव है, एक प्रपंच है जो मेरी वासना का कारण बनता है। सत्य का स्थाई भाव तो कहीं कुछ और ही है। यह सोचकर सिद्धार्थ ने मन बना लिया कि वे यह सब छोड़कर निकल जाएँगे। पुत्र मोहवश राहुल को भी साथ लेने के लिए गए लेकिन पत्नी के जाग जाने के संशय में उन्होंने राहुल को छोड़ दिया। सिद्धार्थ ने सोचा कि अपने पुत्र को भी बचाऊँ इस वासना के दलदल से लेकिन वे ऐसा कर न पाए।
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सार्वकालिक, सार्वभौमिक, शाश्वत सत्य खोजने निकल पड़े सिद्धार्थ और आज हम उन्हें बुद्ध के रूप में जानते हैं।
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*[http://bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%AC%E0%A5%81%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%A7 बुद्ध (भारतकोश)]
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| 28 जुलाई, 2016
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| 3 मई, 2015
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महत्वपूर्ण यह नहीं कि आप अपने ज्ञान के प्रति कितने सतर्क हैं ! महत्वपूर्ण तो यह कि आप अपने अज्ञान के प्रति कितने सतर्क हैं।
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अपनी अज्ञानता का सही रूप में ज्ञान होना और निरंतर बने रहना ही किसी भी ज्ञानी की सही पहचान है।
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अक्सर हमारा ज्ञान ही हमें विचारवान होने से रोकने लगता है। स्वयं को ज्ञानी मानकर जीते जाना, हमारे भीतर न जाने कितनी अज्ञानता पैदा करता है और नए विचारों से वंचित कर देता है।
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| [[चित्र:Aditya-Chaudhary-Facebook-Post-04.jpg|center|200px]]
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| 4 जुलाई, 2016
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13:43, 25 अक्टूबर 2016 का अवतरण

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भारत-पाकिस्तान की दुश्मनी को लेकर काफ़ी लिखा और बोला जा रहा है। सर्जिकल स्ट्राइक के बाद पूरे भारत में एक जोश और संतुष्टि का माहौल बना है। इस कार्यवाही के बाद पाकिस्तान लगभग चुप है, जिसका कारण है कि इस सर्जिकल स्ट्राइक को अंतरराष्ट्रीय नियमों और क़ानून के मुताबिक़ हॉट पर्सुइट (Hot pursuit) की मान्यता प्राप्त होना।
हॉट पर्सुइट याने ‘किसी आधिकारिक सशस्त्र दल (जैसे सेना या पुलिस) द्वारा अपराधियों का अपराध करते ही त्वरित पीछा करना। इस पीछा करने और अपराधियों के ख़िलाफ़ कार्यवाही करने में देश या राज्य की सीमा पार कर जाने को अंतरराष्ट्री सीमा उल्लंघन नहीं माना जाता है। इसमें सामान्य रूप से किसी स्वीकृति या सूचना की भी आवश्यकता नहीं होती और इसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त है।
इस मुद्दे पर कुछ विवाद भी सामने आए हैं। जिनमें से एक मुद्दा है नदियों के पानी का। विश्व भर में जलसंधियों के आधार पर नदियों के जल का बँटवारा होता है। जिसे भंग नहीं किया जा सकता, लेकिन अब ऐसा होना मुमकिन है। प्रसिद्ध वैज्ञानिक अल्बर्ट आइन्सटाइन ने कहा था कि भविष्य में युद्धों के कारण जल-विवाद ही होंगे। अब यह सामने आने लगा है। नदियों के पानी बंटवारे का विवाद हमारे देश में राज्यों के आपसी विवाद का कारण भी है। जैसे फ़िलहाल में कावेरी का विवाद।
एक बात हमें अच्छी तरह समझ लेनी चाहिए कि चीन और पाकिस्तान से चाहे रिश्ते कितने भी मधुर हो जाएँ, नदियों के जल का विवाद होना अवश्यम्-भावी है। ब्रह्मपुत्र के पानी को लेकर इस समय चीन जो कुछ कर रहा है उसकी वजह पाकिस्तान नहीं है। पाकिस्तान पर तो वह बेवजह एहसान दिखा रहा है। ब्रह्मपुत्र के पानी को लेकर तो चीन के इरादे बहुत पहले से ही नेक नहीं हैं।
माओ का शासन प्रारम्भ होते ही चीन ने नदियों का रास्ता बदलना और नहरों का निर्माण शुरू कर दिया था जिसका कारण था आधे चीन में सूखा और रेगिस्तान साथ ही बाक़ी आधे में बाढ़। चीन में कई वर्ष शिक्षा बन्द करके सबको नदियों का बहाव मोड़ने में लगा दिया गया था।
इसलिए भारत सरकार को यह अभी से तय करना होगा कि भावी योजनाएँ क्या होंगी। इन विवादों को निपटाने में कुर्सी-मेज़ और पेन-काग़ज़ काम नहीं आएँगे बल्कि सशक्त और आधुनिक तकनीक से लैस सेना काम आएगी। सेना की तनख़्वाह में बढ़ोत्तरी, प्रत्येक नागरिक की अनिवार्य रूप से सैन्य शिक्षा, सैन्य शिक्षा में स्त्रियों की बराबर भागेदारी और प्रत्येक नागरिक में राष्ट्रीय भावना का अनवरत संचार जैसे सुधार ही हमें एक सुरक्षित राष्ट्र का गौरवमयी नागरिक बना सकते हैं।
दूसरा विवाद है, कुछ एक भारतीय फ़िल्मी अभिनेताओं द्वारा पाकिस्तानी कलाकारों का पक्ष लेना। इसमें पहली बात यह है कि इस तरह के अभिनेता कोई ज़िम्मेदार क़िस्म के इंसान नहीं है। इससे पहले भी इनकी ग़ैरज़िम्मेदाराना हरक़तें सामने आई हैं जिनकी चर्चा करना व्यर्थ है।
समझना तो आम जनता को है जो कि फ़िल्मी कलाकारों को हीरो समझने लगती है और उन्हें असली ज़िन्दगी में भी बढ़िया इंसान मानने लगती है। तमाम एक्टर ऐसे हैं जो पर्दे पर खलनायक की भूमिका करते हैं लेकिन असल ज़िन्दगी में एक बेहतरीन इंसान हैं, ठीक इसका उल्टा नायक की भूमिका करने वाले के साथ भी हो सकता है। इसलिए जनता को अपने हीरो पर्दे से नहीं बल्कि असल ज़िन्दगी से ही चुनने चाहिए।
कलाकार भी इंसान ही होता है और उसका भी अपना देश और देशभक्ति होती है। पाकिस्तानी कलाकारों की देशभक्ति उनके पाकिस्तान के लिए है। उनसे भारत के लिए वफ़ादारी की उम्मीद करना फ़ुज़ूल की बात है। पाकिस्तानी कलाकार अपनी कमाई को पाकिस्तान ले जाता है और वहीं टॅक्स देता है, संपत्ति ख़रीदता है और ख़र्चा करता है। पाकिस्तान चाहे आतंकी देश हो या अहिंसावादी उस पाकिस्तानी कलाकार के लिए तो वही उसका देश है।
अब ज़रा सोचिए कि हम पाकिस्तानी आतंकवाद में उस कलाकार का हिस्सा मानें या नहीं। जब सानिया मिर्ज़ा एक पाकिस्तानी से शादी करती है तो भारतवासी ये उम्मीद करते हैं कि वह अब भी भारत के लिए खेले और भारत को ही अपना देश समझे… तो बताइये कि पाकिस्तानी कलाकार भी तो शुद्ध रूप से पाकिस्तानी ही हुआ या नहीं? इस समय किसी पाकिस्तानी कलाकार की कमाई भारत में कराने से हम स्पष्ट रुप से पाकिस्तान की मदद ही कर रहे हैं।
ऐसी बात नहीं है कि मुझे पाकिस्तान का कभी भी कुछ भी पसंद नहीं रहा। मेरे भी पसंदीदा शायर कुछ पाकिस्तानी रहे हैं जैसे फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ और अहमद फ़राज़। ग़ज़ल गायकों में मेंहदी हसन मेरे पसंदीदा हैं लेकिन पाकिस्तान के किसी शायर की ग़ज़ल पसंद करना एक अलग बात है और फ़िल्मी और टीवी कलाकारों को भारत में बिठाकर उसकी करोड़ों-अरबों की कमाई करवाना एक बिल्कुल अलग बात है।

4 अक्टूबर, 2016

हिन्दी अकादमी दिल्ली में मेरे व्याख्यान का एक अंश यहाँ प्रस्तुत है ताकि सनद रहे कि मैं कहीं भी मौजूद होता हूँ तो ब्रज को नहीं भूलता…
“हिन्दी की इमारत लोकभाषाओं के स्तंभों पर टिकी हुई है। लोकभाषाएँ हिन्दी के स्तम्भ हैं उसकी नींव हैं। सारी दुनिया में से लोकभाषाएँ एक-एक करके समाप्त हो रही हैं। विश्व में 6000 भाषा-बोलियों का रंग-बिरंगा संसार है जिसमें से हर पच्चीसवें दिन एक लोकभाषा सदा के लिए विलुप्त हो जाती है और उसके साथ ही एक संस्कृति, एक विज्ञान, एक कला, एक पद्धति, एक परम्परा और एक शब्दावली भी मर जाती है।
ज़रूरत हिन्दी अकादमी की नहीं बल्कि लोकभाषाओं की अकादमी की है जैसे ब्रजभाषा, अवधी, भोजपुरी, मागधी आदि की अकादमी बननी चाहिए क्योंकि जब लोकभाषा का ही संरक्षण नहीं होगा तो हिन्दी में प्रयुक्त होने वाले शब्दों का मूल हम कहाँ खोजेंगे। हमारी समृद्ध हिन्दी एक इतिहास रहित खोखली भाषा बनकर रह जाएगी।”
शायद आप नहीं जानते होंगे कि ब्रजभाषा अकादमी राजस्थान में तो है पर उत्तर प्रदेश में नहीं…

Aditya-Chaudhary-Delhi-Akadami.jpg
1 अक्टूबर, 2016

ओलंपिक मेडल जीतने के बाद जो करोड़ों रुपए की बरसात खिलाड़ियों पर होती है, वह पैसा अगर उन कोच को दिया जाए जिन्होंने उस खिलाड़ी को बनाया तो ज़्यादा बेहतर नतीजे सामने आ सकते हैं। 10 सिंधु मिलकर एक पुलेला गोपीचंद नहीं बना सकतीं हैं जबकि एक पुलेला गोपीचंद 10 सिंधु बना सकता है...

28 अगस्त, 2016

किसी व्यक्ति का सही मूल्याँकन उसके जीवन के किसी कालखंड से नहीं बल्कि उसके पूरे जीवनकाल से होता है।

Aditya-Chaudhary-Facebook-post-3.jpg
17 अगस्त, 2016

एक विदेशी पत्रकार ने एक आधुनिक नेता का इंटरव्यू लिया
पत्रकार: सुनने में आया है कि आपके यहाँ बलात्कार की क्लिप 10 से 15 रुपये में मिलती है। यह तो बहुत शर्मनाक है।
नेता: बिल्कुल झूठ है सर जी! ये सब अफ़वाह है। ऐसा कुछ नहीं है।
पत्रकार: तो फिर सच क्या है?
नेता: सच ये है सर कि क्लिप बिल्कुल मुफ़्त मिल रही है। कोई पैसा नहीं देना पड़ता। आप कहें तो आपको वाट्स एप कर दूँ?
पत्रकार: जी नहीं मुझे नहीं चाहिए।… ये बताइये कि आपके यहाँ बिजली की बहुत समस्या है? आम आदमी के घरों में आपने अंधेरा कर रखा है?
नेता: ये भी ग़लत सूचना है। घरों में अंधेरा होने की बात झूठी है। घर-घर में इन्वर्टर हैं। ऍल.ई.डी लाइट हैं, बैटरी वाली। साथ ही हम उनको इन्वर्टर चार्ज करने के लिए हर दो घंटे बाद एक घंटा बिजली देते हैं। हम अफ़ग़ानिस्तान से ज़्यादा बिजली की सप्लाई दे रहे हैं। … सर आख़िर हम नेता भी तो इंसान ही हैं। जनता का दुख-दर्द हम नहीं समझेंगे तो कौन समझेगा।
पत्रकार: आपकी पुलिस से जनता डरती है। पुलिस के पास जाने में घबराती है। ऐसा क्यों?
नेता: डरने का क्या है जी… डरते तो लोग भूत-प्रेत से भी हैं पर भूत-प्रेत कोई डरने की चीज़ हैं। जब भूत-प्रेत होते ही नहीं तो उनसे डरना क्या?
पत्रकार: तो अाप कहना चाहते हैं कि आपके पास पुलिस है ही नहीं ये बस जनता का भ्रम है जैसे कि भूत-प्रेत?
नेता: असल में हमारी पॉलिसी बहुत ज़बर्दस्त है सर! हम पुलिस को अपनी सीक्योरिटी में लगाए रखते हैं। जिससे पुलिस जनता के पास पहुँचती ही नहीं है तो जनता डरेगी कैसे? दूसरी बात ये है सर कि जब हमारी पुलिस से चोर, डाकू और बलात्कारी जैसे लोग नहीं डरते जबकि वे भी तो इंसान हैं… इसी समाज का हिस्सा हैं … तो फिर जनता को डरने की क्या ज़रूरत है ?
पत्रकार: आपके यहाँ सड़कों में गड्ढे हैं। बरसात में सड़कों पर पानी भर जाता है। इसका भी कोई जवाब है आपके पास ?
नेता: हमारे कर्मचारी, दिन और रात गड्ढे भरने में लगे रहते हैं सर! हमारा देश बहुत बड़ा है। लाखों किलोमीटर सड़कें हैं। देश बड़ा होने से ट्रॅफ़िक भी ज़्यादा है। रोड ऍक्सीडेन्ट कम हों इसलिए हमको गड्ढे भी बना कर रखने पड़ते हैं। गड्ढों की वजह से स्पीड कम रहती है और ऍक्सीडेन्ट कम होते हैं।
पत्रकार: आप अपने बारे में बताइये कि आप कितने पढ़े-लिखे हैं ?
नेता: देश सेवा से फ़ुर्सत मिलती तभी तो पढ़ता…
पत्रकार ने मौन धारण कर लिया और वापस चला गया।

14 अगस्त, 2016

सुसेवायाम्
परम पिता श्रीमंत प्रजापति ब्रह्मा जी महाराज

सिरी पत्री जोग लिखी मथुरा से ब्रह्मलोक कूँ
हमारी सबकी राम-राम आप सब को मिले।
अपरंच समाचार ये है कि यहाँ सब कुशल है और आपके यहाँ तो सब कुशल होगा ही…

यहाँ मौसम बरसात का है झमाझम चौमासे चल रहे हैं तो फिर थोड़ी बहुत तबियत भी ‘नासाज’ चलती है। बाक़ी सब आपकी ‘किरपा’ से ठीक-ठाक और सकुशल है। पिछले दिनों घनघनाती बारिश आई। घरों-चौबारों में तो बच्चे काग़ज़ की नाव चलाने लगे, गाँवों में कच्चे घर गिर गए, शहर में पक्के घरों की छत टपकने लगीं और अब आपसे क्या छुपाना, हमारा भी घर पुराना है तो उसकी छत भी टपकी। हमारे यहाँ कहते हैं ‘जितना नाहर (शेर) का डर नहीं है जितना कि टपके का डर है’। ख़ैर आप तो बादलों से ऊपर रहते हैं आपको क्या पता कि बारिश क्या है और ‘टपका’ क्या है।

बरसात से किसान की फ़सल बहुत ही अच्छी होने की संभावना बन रही है ब्रह्मा जी! । सब आपकी माया है… कहीं धूप कहीं छाया है।
बाक़ी सब आपकी किरपा है। सबकुछ ठीक-ठाक चल रहा है, कुशल मंगल है। वैसे तो आपको पता ही होगा लेकिन फिर भी बता दूँ कि एक देश है फ्रांस वहाँ एक ट्रक ने जानबूझ कर सैकड़ों लोग कुचल डाले… उस दृश्य को देखकर दिल तो क्या पत्थर का पहाड़ भी पिघल जाता। मगर आपके ब्रह्मलोक में तो न ही सड़कें हैं और न ही ट्रक तो आपको इसका कोई अनुभव नहीं होगा। जब आपको कभी दर्द हुआ ही नहीं तो समझेंगे क्या प्रजापति जी! हमारे यहाँ कहते हैं कि ‘जाके पैर न फटी बिबाई वो कहा जाने पीर पराई’ फिर भी हम तो आपसे ही गुहार करते हैं भले ही आप सुनें न सुनें।

श्रीमंत! हमारे देश में प्रजातंत्र है आप प्रजापति हैं तो इसके बारे में अच्छी तरह से जानते ही होंगे, अब आपके सामने हम क्या ज्ञानी बनें। प्रजातंत्र में जनता को स्वतंत्रता मिली हुई है, विशेषकर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता। इस स्वतंत्रता के लाभ क्या हैं हम साधारण जन समझ नहीं पाते लेकिन इसके नुक़सान भी हैं जो हमें बहुत दु:खी करते हैं। यह अभिव्यक्ति बच्चियों से बलात्कार करने में ज़्यादा की जा रही है। बलात्कार की घटनाएँ इतनी सामान्य हो चली हैं कि लोग अपनी दुश्मनी निकालने के लिए झूठे बलात्कार के आरोप लगाने लगे हैं। अभी पिछले दिनों दो पड़ोसियों में ज़मीन को लेकर विवाद हो गया दोनों ने एक दूसरे पर अपनी नाबालिग बेटियों पर यौनशोषण होने का झूठा आरोप पुलिस की उपस्थिति में लगाने की कोशिश की… बाक़ी सब सकुशल है, ठीक-ठाक चल रहा है।

हमारे प्रदेश में अब चुनाव आने वाले हैं ब्रह्मा जी! तीन-चार पार्टियाँ हैं जो यहाँ दंगल में हिस्सा लेंगी। एक सामाजिक न्याय का बहाना बनाएगी तो दूसरी समाजवाद का, तीसरी अच्छे दिनों का और चौथी के पास तो पता नहीं क्या मुद्दा है। इस चुनाव में जीते कोई भी लेकिन हारेगी हमेशा की तरह जनता ही। चेहरों के अलावा कुछ भी नहीं बदलेगा (अाजकल तो सरकार बदलने पर बहुत से चेहरे भी नहीं बदलते)। विकास कार्यों में कमीशन, पोखर-तालाबों पर क़ब्ज़े, झूठे वादे, व्यक्तिगत लाभ देने की पेशकश, पैसा लेकर नौकरी, नेताओं, ब्यूरोक्रेसी और पुलिस का निरंकुश राज…

आपके ब्रह्मलोक में प्रजातंत्र नहीं है इसलिए आपको यह सब नहीं भुगतना पड़ता है परमपिता! ऐसा नहीं है कि प्रजातंत्र कोई बुरी पद्धति है बल्कि बहुत से देशों में यह सचमुच में है और अपने सर्वजनहिताय स्वरूप में ही मौजूद है। ज़रा ये बताइये कि हमारा प्रजातंत्र ऐसा क्यों है ? हर गली-मुहल्ले में पार्टियाँ बन रही हैं कुछ ही परिवार राज किए जा रहे हैं। किसी को धर्म, किसी को जाति और किसी को क्षेत्र या भाषा का ही मुद्दा मिलता है। जनहितकारी मुद्दे ग़ायब हैं। व्यक्तिगत हित सर्वोपरि हैं। हमारे देश में तो कुछ ऐसा लगता है कि जैसे प्रजातंत्र वह द्रौपदी है जिसे दु:शासन (कुशासन) से ही ब्याह दिया गया है। बाक़ी सब कुशल है, सब आपकी ‘किरपा’ है।

आपसे करबद्ध निवेदन है कि थोड़ा सा हमारा दर्द समझने और बाँटने की ‘किरपा’ कीजिए। ज़रा झांककर देखिए बुन्देलखन्ड में कितने किसान भूखे मरे और कितने आत्महत्या करके। हमारे पड़ोस की उस औरत के घर में जिसका पति कुछ कमाता नहीं और फिर भी जुअा खेलता है और शराब पीकर अपनी बीवी-बच्चों की पिटाई करता है। बीवी अपने पति से पिट-पिट कर भी घरों में चौका-बर्तन करके अपने बच्चों को पाल रही है। अपने बच्चों को पानी पिलाने के लिए भी उसे किसी धनाड्य के घर से आर.ओ. का पानी ले जाना पड़ता है। शेष सब कुशल मंगल है। आपकी किरपा बनी हुई है।

कभी-कभी हम सोचते हैं ब्रह्मा जी! कि धरती का सारा धुँआ उड़कर असमान की तरफ़ जाता है। आपको अखरता तो होगा। पर्यावरण की हालत का अन्दाज़ा आपको ज़रूर होगा। हमारे खेतों से होकर जो नहर गुज़र रही हैं उनमें पानी का रंग काला होने लगा है। बाग़ों को काटकर दुक़ाने बनाई जा रही हैं। जब कोई बड़ा पेड़ काटा जाता है तो हमें लगता है कि किसी बज़ुर्ग की हत्या हो गई। क्या आपको भी ऐसा लगता है? हमारे घर में भी एक नीम का पेड़ है वो बूढ़ा हो गया है और हमारे घर की ओर बहुत ज़्यादा झुक गया है। डर है कि कहीं घर पर न गिर पड़े। कई बार सोचा कि इसे कटवादें लेकिन हिम्मत नहीं पड़ती। जब हमारा एक पेड़ के पीछे ये हाल है तो दुनियाँ में न जाने कितने पेड़ रोज़ाना काटे जा रहे हैं। किसी का दिल नहीं पसीजता? आपका भी नहीं?

हमने तो जो मन में आया लिख दिया है अब आप जानें कि क्या ‘एक्सन’ लेंगे। कोई भूल-चूक हुई हो तो ‘छिमा’ कीजिएगा।

सबको यथायोग्य
आपका अाज्ञाकारी
आदित्य चौधरी

28 जुलाई, 2016

महत्वपूर्ण यह नहीं कि आप अपने ज्ञान के प्रति कितने सतर्क हैं ! महत्वपूर्ण तो यह कि आप अपने अज्ञान के प्रति कितने सतर्क हैं।
अपनी अज्ञानता का सही रूप में ज्ञान होना और निरंतर बने रहना ही किसी भी ज्ञानी की सही पहचान है।
अक्सर हमारा ज्ञान ही हमें विचारवान होने से रोकने लगता है। स्वयं को ज्ञानी मानकर जीते जाना, हमारे भीतर न जाने कितनी अज्ञानता पैदा करता है और नए विचारों से वंचित कर देता है।

Aditya-Chaudhary-Facebook-Post-04.jpg
4 जुलाई, 2016


शब्दार्थ

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