गोविन्द राम (चर्चा | योगदान) |
गोविन्द राम (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 6: | पंक्ति 6: | ||
| | | | ||
{| width=98% class="table table-bordered table-striped" | {| width=98% class="table table-bordered table-striped" | ||
+ | |- | ||
+ | | | ||
+ | ; दिनांक- 29 दिसम्बर, 2016 | ||
+ | <poem> | ||
+ | || चलो जाने दो || | ||
+ | पैसे की माया निराली है। चार दोस्तों में कोई एक ऐसा होता है जिसे हमेशा साथ इसलिए रखना पड़ता है कि वो ख़र्च करता है। ऐसे दोस्त बड़े झिलाऊ भी हो सकते हैं और इनका सेन्स ऑफ़ ह्यूमर अक्सर बहुत कम होता है। पैसे का सीधा रिश्ता झेलने से भी है। कोई अपने पति को इसलिए झेल रही है कि वो पैसे वाला है तो कोई अपनी बीवी को ठीक इसी वजह से झेलता है कि बीवी ही उसका ख़र्च चलाती है। कोई पैसे वाले जीजा से त्रस्त है तो कोई पैसे वाले साले से। | ||
+ | |||
+ | पैसा आजकल चर्चा में है और आजकल मुझे ज़बर्दस्ती, रूप विधा का विशेषज्ञ बनाया जा रहा है। रूप विज्ञान, रूप कला और रूप विधा… ये नाम सुन्दरता से संबंधित नहीं हैं बल्कि मुद्रा से संबंधित हैं। प्राचीन काल में मुद्रा संबंधी जानकारी रखने वाले और मुद्राओं को ढालने की प्रक्रिया जानने वाले को रूप विज्ञानी कहा जाता था। इसीलिए आजकल मुद्रा को रुपया कहा जाता है। | ||
+ | |||
+ | मैं भारतकोश के माध्यम से सारी दुनिया को कंप्यूटर का आधुनिक तकनीकी ज्ञान देने के लिए जाना जाता हूँ, विशेषकर हिन्दी कंप्यूटिंग और विभिन्न सॉफ़्टवेयर, स्मार्ट फ़ोन और सीएमएस ऑपरेटिंग के लिए लेकिन पिछले कुछ दिनों मैं ख़ुद को एक छात्र जैसा महसूस कर रहा हूँ। इस क्रम में सबसे पहले तो मुझे दो हज़ार के नोट में प्रधानमंत्री का भाषण सुनाया गया फिर उसके असली-नक़ली होने की ट्रेनिंग दी गई जो कई लोगों ने अलग-अलग तरह से दी। इसके बाद पुराने नोटों से नयों की तुलना की गई। नेत्रहीनों के लिए क्या सुविधा पुराने-नए नोटों में थी यह सब बताया गया। | ||
+ | |||
+ | जो भी मिलने आया उसने रुपये से संबंधी विभिन्न प्रकार के रहस्य बताए। मुझे पता ही नहीं था कि जिन लोगों को मैं साधारण व्यक्ति समझता था वे असल में नोटों के रिसर्च स्कॉलर निकले। धीरे-धीरे मुझे लगने लगा कि मैं भारतकोश से नहीं बल्कि भारतीय रिज़र्व बैंक से संबंधित हूँ। | ||
+ | |||
+ | अब बारी थी, मेरे बैंक जाने की। मैंने किसी भी बैंक और विशेषकर स्टेट बैंक के दर्शन किए, जो पिछले बीसियों साल से नहीं किए थे। चैक काटकर दिया तो मेरे हस्ताक्षर नहीं मिले, मिलते भी कैसे पिछले हस्ताक्षर तक़रीबन पैंतीस साल पहले किए थे जब मेरा नाम आदित्य कुमार था, आदित्य चौधरी नहीं। मुझे बैंक में चैक काटने की ज़रूरत ही नहीं पड़ी थी। एटीएम से ही काम चल जाता था। ख़ैर… बैंक पहुँच कर मैनेजर से मिला और अपनी समस्या बताई। | ||
+ | |||
+ | मेरे बग़ल में बैठे सज्जन ने मेरा नाम सुनकर मेरी तरफ़ घूर कर देखा और मुझसे पूछा “आदित्य चौधरी ?… मतलब वोई आदित्य चौधरी ?” | ||
+ | मैंने कुछ सोचा और कहा “हाँ जी वोई आदित्य चौधरी!” मैं उनका आशय समझ गया था। | ||
+ | इसके बाद उन सज्जन ने मेरे पिताश्री की बहुत तारीफ़ की और कुछ मेरी भी। फिर दोबारा मेरी तरफ़ देखकर कहा | ||
+ | “लेकिन आपको हुआ क्या ? आपकी दाढ़ी तो काली थी ?” | ||
+ | “मैं बालों को रंगता नहीं हूँ। उम्र के साथ सफ़ेद तो होनी थी…” | ||
+ | ये सुनकर वे सज्जन कुछ उदास हो गए। | ||
+ | अब तक मैनेजर साहब काफ़ी प्रभावित हो चुके थे, वे ख़ुद ही उठकर मेरी समस्या के हल में लग गए। जब समस्या हल हो गई तो मैंने चाहा कि कुछ पैसा नए हस्ताक्षरों से निकाल कर देखूँ लेकिन बैंक में पैसा ही नहीं था। | ||
+ | |||
+ | इसके बाद खेल शुरु हुआ ऑनलाइन पेमेन्ट का। मैंने पेटीएम डाउनलोड कर लिया। ऑनलाइन बैंकिंक शुरू कर दी (पहले यह ज़म्मेदारी मेरी श्रीमती जी की थी)। जल्दी ही पेटीएम को इस्तेमाल करने का मौक़ा भी आ गया। असल में पिछले दिनों में चेन्नई गया था। चेन्नई से लौटने की फ़्लाइट दो-तीन घंटे लेट थी। हवाई अड्डे से गुड़गांवा में एक कॉलोनी तक जाने के लिए ‘उबर टैक्सी’ बुलाई। ड्राइवर सामान रखवाने के लिए कार से नहीं उतरा। मैंने ही पिछली सीट पर सामान रखा और टैक्सी में बैठा, रात के बारह बज रहे थे। टैक्सी वाले से नाम पूछा तो उसने अपना नाम बताया ‘बलवान सिंह’ उसकी क़द-काठी देखकर मैंने पूछा | ||
+ | “जाट हो ?” | ||
+ | “हाँ” | ||
+ | “हरयाणा के?” | ||
+ | “हाँ।” | ||
+ | “मैं भी जाट हूँ।” मैंने बात बढ़ाने के लिए कहा, लेकिन उस पर कोई असर नहीं हुआ। | ||
+ | |||
+ | उसके स्मार्टफ़ोन के गूगल मॅप पर मेरे गंतव्य स्थान का रूट दिख रहा था। जब वह कॉलोनी आ गई तो वह बंदा कॉलोनी के अंदर जाने को तैयार नहीं। बोला कि मैं तो वहीं ले जाऊँगा जहाँ गूगल मॅप दिखा रहा है। मैंने कहा कि मुझे कॉलोनी के अंदर जाना है। बड़ी मुश्किल से वह राज़ी हुआ। गाड़ी वापस मोड़ने में उसने पीछे से एक दूसरी कार से टकरा भी दी। ये सोचकर कि वो कार वाला इससे लड़ेगा इसने अपनी कार तेज़ी से भगाई। ये वन वे था। | ||
+ | |||
+ | जैसे-तैसे मैं वहाँ पहुँचा जहाँ मुझे जाना था। पेटीएम से उसका भुगतान हो गया। मुझे पता भी नहीं चला। मैंने सोचा कि भुगतान नहीं हुआ है तो उसे नक़द पैसे भी दे दिए। मैंने कहा- | ||
+ | “सामान उतारो!” | ||
+ | “अजी कोई मतलब ही नहीं है ये तो कम्पनी की टॅक्सी है, मैं क्यों सामान उतारूँ।” | ||
+ | रात के साढ़े बारह बज रहे थे। मुझे नींद अा रही थी। मैंने अपने आप ही सामान उतारा और चला आया। मज़ेदार बात ये कि ‘उबर’ ने पूछा कि सफ़र कैसा रहा और ड्राइवर कैसा था। पहले तो मैंने सोचा कि शिकायत कर दूँ फिर सोचा चलो जाने दो… | ||
+ | |||
+ | ये ‘चलो जाने दो’ कोई मामूली ‘चलो जाने दो’ नहीं है बल्कि ये हमारे देश के पिछड़ेपन की एक मुख्य वजह है। हम लोग सरकार, नेता, अधिकारी और अन्य भी बहुतों की ग़लत बात को बड़ी सहनशीलता से झेलते हैं। बिजली,पानी,सड़क,सुरक्षा,स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे मसलों पर भी हम चुप रहते हैं। रिश्वत, ग़लत क़ानून, पुलिस ज़्यादती आदि को सहकर भी चुप रहते हैं। कोई भी नेता ज़रा सा सपना दिखाकर हमें बहका लेता है और हम बहक जाते हैं जब उसकी असली मंशा पता चलती है तब तक बहुत देर हो चुकी होती है लेकिन फिर भी हम यही सोचकर चुप हो जाते हैं कि चलो जाने दो... | ||
+ | </poem> | ||
+ | |- | ||
+ | | | ||
+ | ; दिनांक- 23 दिसम्बर, 2016 | ||
+ | <poem> | ||
+ | “अरे छोटूऽऽऽ! जल्दी से सॉस बनाने का सामान ले आ, सॉस बनानी है…” | ||
+ | ढाबे का मालिक ने आवाज़ लगाई। | ||
+ | मैं वहीं खड़ा चाय पी रहा था। मैंने पूछा- | ||
+ | “सॉस ख़ुद ही बनाते हो ?” | ||
+ | “और क्या… हम बजार वाली टमाटर की सॉस पर भरोसा नहीं करते… ख़ुद अपनी बनाते हैं बिल्कुल शुद्ध” | ||
+ | तभी छोटू सॉस बनाने का सामान ले आया। मैंने पूछा- | ||
+ | “कैसे बनाते हो ?” | ||
+ | ढाबे के मालिक ने इत्मीनान से बताना शुरू किया और सॉस बनाने का कार्यक्रम शुरू कर दिया। | ||
+ | “देखो साब ! पहले तो इमली को मसल के बीज अलग कर लो फिर इसमें काशीफल याने कद्दू का उबला गूदा मिला दो। गूदा बिना छिलके वाला होना चाहिए इसलिए छीलकर उबालो… फिर गाय छाप लाल रंग मिला लो और बाद में बूरा और थोड़ी लाल मिर्च, हल्का सा नमक और थोड़ा सिरका… बस हो गई तैयार घर की शुद्ध सॉस याने टमैटो कैचअप।” | ||
+ | मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ, मैंने पूछा- | ||
+ | “टमाटर नहीं मिलाना है?” | ||
+ | “अजी टमाटर कौन मिलाता है, बहुत महंगे हैं और सॉस जल्दी ख़राब भी हो जाती है। बड़ी-बड़ी कम्पनी भी तो टमाटर नहीं डालतीं…” | ||
+ | मैं तो दंग रह गया। ढाबे वाले का ‘कॉन्फ़िडेंस’ देखकर। कितने आत्मविश्वास के साथ वो नक़ली टमॅटो कॅचप बना रहा था। मज़ेदार बात ये है कि मैं दिल्ली जाते वक़्त मैं अक्सर उसी के ढाबे पर रुकता था और उसी सॉस के साथ कटलेट्स खाता था। | ||
+ | </poem> | ||
+ | |- | ||
+ | | | ||
+ | ; दिनांक- 22 दिसम्बर, 2016 | ||
+ | <poem> | ||
+ | वैसे तो आजकल सब नोटबंदी से जुड़ी बातों और कामों में ही व्यस्त हैं लेकिन एक बहुत गंभीर मसला है जिस पर ग़ौर किया जाना चाहिए- | ||
+ | |||
+ | जितना भी इतिहास को खंगालता हूँ तो अपने होने से अधिक अपने न होने का अहसास अधिक होने लगता है। इतिहास किसी न किसी रूप में मुझसे टकरा ही जाता है कभी कोई किताब, कोई पेन्टिग, कोई फ़ोटो, कोई संगीत या कोई इमारत…। हम कितने अकेले हैं यह सोच ही बड़ी अद्भुत है। हो सकता है यह सोच किसी के लिए डर हो और किसी के लिए रोमांच। | ||
+ | |||
+ | जन्म, मृत्यु, सृष्टि आदि बहुत सारे शाश्वत प्रश्न मन में आने लगते हैं। विज्ञान की खोजों के जंगल में खो जाता हूँ तो आश्चर्य से भर जाता हूँ। कभी मन करता है कि कहीं किसी पहाड़ पर चलकर रहा जाय जहाँ आधुनिक सुविधाएँ न के बराबर हों। ख़ूब बूढ़े होकर बिना इलाज के मरा जाय… और भी न जाने क्या-क्या विचार मन को भरमाते हैं… ख़ैर ये तो दुनिया है और इस दुनिया में हमें जीने का मौक़ा मिलने का क्या प्रयोजन है ये तो मुझे नहीं मालूम लेकिन ज़िन्दगी को जीना है और हमेशा सार्थक बनाने की कोशिश करते रहना है। | ||
+ | |||
+ | तो आइए इस दुनिया के बारे में बात करें… इस दुनिया में कई दुनिया हैं। जेम्स वॉट से पहले और उसके बाद। पेट्रोलियम से पहले और उसके बाद। बिजली से पहले और उसके बाद। न्यूटन से पहले और उसके बाद। आइन्सटाइन से पहले और उसके बाद। कंप्यूटर से पहले और उसके बाद। इंटरनेट से पहले और उसके बाद। स्मार्ट फ़ोन से पहले और उसके बाद। | ||
+ | |||
+ | हम पेट्रोल, बिजली, न्यूटन, आइन्सटाइन, कंप्यूटर, इंटरनेट और स्मार्टफ़ोन की दुनिया में रह रहे हैं। ऐसा नहीं है कि इसमें भारत का योगदान नहीं है। असल में बहुत सी भारतीय खोजों के बल पर ये नई दुनिया टिकी है। जिसमें प्राचीन काल के पिंगल, पाणिनी, आर्यभट्ट और कणाद के नाम प्रमुख हैं। जिन्होंने अणु, पाई, बाइनरी और खगोलीय खोज कीं और आधुनिक काल के जगदीश चंद्र बसु, सी.वी. रमण, हरगोविन्द खुराना आदि के नाम प्रमुख हैं। बहुत सारी खोजें हुईं और उनके तरह-तरह के नतीजे समाज के सामने आए। एक नतीजा पर्यावरण को ख़तरे के रूप में आया। | ||
+ | |||
+ | पर्यावरण अब कोई ऐसा मुद्दा नहीं रह गया है जिस पर कि बार-बार बहस की जाय। पर्यावरण अब एक ऐसी आपत्कालिक स्थिति है जिससे निपटने के प्रयास युद्धस्तर पर करने की आवश्यकता है। जिस तरह जापान, हिरोशिमा-नागासाकी के बम के बाद की विभीषिका से उबरा। चीन बाढ़ और सूखा की स्थिति से उबरा। उसी तरह भारत को इस प्रदूषण की चुनौती से लड़कर उबरना होगा वरना आज की दुनिया में जो जन्म ले रहा है उसका कल कैसा हो सकता है यह सभी समझदार व्यक्ति अच्छी तरह समझते हैं। | ||
+ | |||
+ | प्रदूषण के जगत के महानायक बिजली, पेट्रोलियम, डिटरजेंट और पेस्टीसाइड्स हैं लेकिन इनके बिना विकास संभव नहीं माना जाता। जहाँ तक आधुनिक विचारधारा का संबंध है यही माना जाता है। प्लास्टिक और मिनरल वॉटर की ख़ाली बोतलें और नदियों-तालाबों में घुलता डिटरजेंट और पेस्टीसाइड्स एक ख़ौफ़नाक अजेय दैत्य बनकर सामने खड़ा है। विशेषज्ञ बता रहे हैं कि दिल्ली में रहने वालों की उम्र में पिछले दिनों के प्रदूषण से 3 से 5 साल कम हो गए याने वे अपनी सामान्य उम्र से कम जीएँगे। | ||
+ | |||
+ | क्या तरीक़ा है इस प्रदूषण से लड़ने का और इसे हराने का ? | ||
+ | |||
+ | यह प्रश्न ऐसा है जिसका उत्तर; सरकार, पर्यावरणविद् और सामान्य रूप से समझदार व्यक्ति बख़ूबी जानते हैं। इसके लिए किसी नई खोज की आवश्यकता नहीं है। हमारे चारों ओर फैली प्रकृति के प्रत्येक व्यवहार में पर्यावरण रक्षण के उपाय छिपे हैं। हमको ज़रूरत है तो उन उपायों को समझकर प्रयोग में लाने की और रोज़मर्रा की ज़िन्दगी में उन्हें अपनाने की। इनको अपनाकर हम वायु और जल प्रदूषण को सीमित स्तर तक ला सकते हैं। | ||
+ | |||
+ | तो फिर समस्या क्या है ? | ||
+ | |||
+ | समस्या है व्यवसाय और व्यवसाइयों के जाल में फ़ंसी सरकारें और अदालतें। औद्योगिक क्रांति के चलते बहुत सी असावधानियाँ हुईं और जिसका मुख्य कारण था कमज़ोर प्रशासन। नियम-क़ानून बने लेकिन लागू कराने वालों की लापरवाही से लागू नहीं किए गए। साधारण से साधारण नियमों को भी अनदेखा किया गया और उद्योग, अनियमत रूप से बढ़ते गए साथ ही प्रदूषण भी। ऐसा नहीं है कि यह केवल भारत में ही हुआ। यह समस्या अनेक देशों की रही है। जिनमें विकासशील देश या तीसरी दुनिया के देश मुख्य हैं। विकासशील देशों में विकास हुआ और हो रहा है, यह तो अच्छी बात है लेकिन इस विकास की क़ीमत, आज अपनी नई पीढ़ी से शुद्ध हवा और शुद्ध पानी, छीनकर चुकानी पड़ रही है। | ||
+ | |||
+ | निकट भविष्य में हमारा स्वस्थ रह पाना ही सबसे बड़ी चुनौती होगी और हमें इसके लिए तैयार हो जाना चाहिए। | ||
+ | |||
+ | © आदित्य चौधरी | ||
+ | </poem> | ||
+ | |- | ||
+ | | | ||
+ | ; दिनांक- 26 नवम्बर, 2016 | ||
+ | <poem> | ||
+ | [[चित्र:Ratan-Tata-on-demonitization.jpg|250px|right]] | ||
+ | भारत के प्रमुख उद्योगपति श्री रतन टाटा द्वारा सरकार के नाम पत्र का हिन्दी भावार्थ प्रस्तुत है- | ||
+ | |||
+ | वर्तमान में, पुराने नोटों के चलन पर रोक लगने के कारण ऐसा कहा जा रहा है की इससे सामान्य जन को बहुत कठिनाई हो रही है, ख़ास तौर से छोटे शहरों-क़स्बों में मेडिकल इमरजेंसी, बड़ी सर्जरी और अस्पतालों में दवाइयां ख़रीदने में। नक़दी की कमी के कारण, ग़रीब जनता को रोज़मर्रा की घर की ज़रूरतों को पूरी करने में भी कठिनाई हो रही है। | ||
+ | |||
+ | हालांकि सरकार अपनी तरफ से नए करंसी नोटों की कमी पूरी करने की पूरी कोशिश कर रही है किंतु ग़रीब जनता के लिये विशेष राहत के उपाय उपलब्ध कराने चाहिए, जैसे कि राष्ट्रीय आपदा के समय किये जाते हैं। जिससे उनकी रोज़मर्रा की ज़रूरतें पूरी हो सकें और छोटे अस्पतालों में आपात्कालीन स्वास्थ्य देखभाल और इलाज हो सके। ऐसे राहत उपाय इस ग़रीब जनता द्वारा ख़ूब सराहे जाएँगे क्योंकि इस से यह भी साबित होगा कि इस महत्वपूर्ण विमुद्रीकरण की संक्रान्ति के समय में सरकार आम आदमी के बारे में भी चिंता करती है और उनकी ज़रूरतों को भूली नहीं है। | ||
+ | </poem> | ||
+ | |- | ||
+ | | | ||
+ | ; दिनांक- 6 अक्टूबर, 2016 | ||
+ | <poem> | ||
+ | यूँ तो हम अपनी परम्परा और प्राचीनता की दुहाई देते हैं लेकिन अपने त्योहारों तक के नाम और उच्चारण में लापरवाही बरतते हैं जिससे अर्थ का अनर्थ हो जाता है। | ||
+ | |||
+ | मुझे नवरात्र की बधाइयाँ आ रही हैं जिनमें से सभी में लिखा होता है नवरात्रि की शुभकामना। यह अनुचित है। नवरात्रि का अर्थ हुआ नई रात। हमारे नौ देवियों के त्योहार का नाम है नवरात्र जिसका अर्थ है नौ रातें। नवरात्रि लिखने से तो अच्छा है लोकभाषा में नौराते ही लिखें या नौदेवी। | ||
+ | |||
+ | सही यह है "पावन व्रतोत्सव नवरात्र की शुभकामनाएँ" | ||
+ | </poem> | ||
|- | |- | ||
| | | |
07:28, 9 फ़रवरी 2017 का अवतरण
फ़ेसबुक अपडेट्स
सितंबर 2013 • अक्तूबर 2013 • नवंबर 2013 • दिसंबर 2013 • जनवरी 2014 • फ़रवरी 2014 • मार्च 2014 • अप्रॅल 2014 • मई 2014 • जून 2014 • जुलाई 2014 • अगस्त 2014 • सितंबर 2014 • अक्टूबर 2014 • नवंबर 2014 • दिसंबर 2014 • जनवरी 2015 • फ़रवरी 2015 • मार्च 2015 • अप्रॅल 2015 • मई 2015 • जून 2015 • जुलाई-सितम्बर 2015 • अक्टूबर-दिसम्बर 2015 • जनवरी-जून 2016 • जुलाई-दिसम्बर 2016 • जनवरी-मार्च 2017 • अप्रैल 2017 • मई-दिसंबर 2017
|