गोविन्द राम (चर्चा | योगदान) छो (Text replacement - "__INDEX__" to "__INDEX__ __NOTOC__") |
गोविन्द राम (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 5: | पंक्ति 5: | ||
| | | | ||
{| width=100% class="table table-bordered table-striped" | {| width=100% class="table table-bordered table-striped" | ||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
|- | |- | ||
− | |- | + | | |
− | | | + | ; दिनांक- 26 फ़रवरी, 2014 |
+ | [[चित्र:Manavata-facebook-post.jpg|250px|right]] | ||
<poem> | <poem> | ||
मानवता, एक अत्यंत दुर्लभ गुण है। जिसे योग्यता की तरह अर्जित किया जाना या दिया जाना असंभव ही है। | मानवता, एक अत्यंत दुर्लभ गुण है। जिसे योग्यता की तरह अर्जित किया जाना या दिया जाना असंभव ही है। | ||
मनुष्य के आवेग के क्षणों में मानवता की उपस्थिति और भी दुर्लभ हो जाती है। मानवता की परीक्षा सही मायने में, किसी व्यक्ति के क्रोध और यौन आवेग के समय ही होती है। वैसे तो सामान्य स्थिति में सभी मानवतावादी होने के दंभ भरते हैं। जो लोग देश, धर्म, जाति, व्यापार, परिवार, राजनीति, पैसा आदि के लिए मानवता के विपरीत आचरण करते हैं उन्हें मानवतावादी कैसे कहा जा सकता है। दुनिया में छद्म मानवतावादियों का बोलबाला है। सामान्यत: वास्तविक मानवतावादियों को समाज का प्रकोप सहना पड़ता है। सामाजिक होना और मानवतावादी होना दोनों एक साथ होना बहुत कठिन है शायद असंभव। | मनुष्य के आवेग के क्षणों में मानवता की उपस्थिति और भी दुर्लभ हो जाती है। मानवता की परीक्षा सही मायने में, किसी व्यक्ति के क्रोध और यौन आवेग के समय ही होती है। वैसे तो सामान्य स्थिति में सभी मानवतावादी होने के दंभ भरते हैं। जो लोग देश, धर्म, जाति, व्यापार, परिवार, राजनीति, पैसा आदि के लिए मानवता के विपरीत आचरण करते हैं उन्हें मानवतावादी कैसे कहा जा सकता है। दुनिया में छद्म मानवतावादियों का बोलबाला है। सामान्यत: वास्तविक मानवतावादियों को समाज का प्रकोप सहना पड़ता है। सामाजिक होना और मानवतावादी होना दोनों एक साथ होना बहुत कठिन है शायद असंभव। | ||
</poem> | </poem> | ||
− | |||
− | |||
|- | |- | ||
| | | | ||
+ | ; दिनांक- 26 फ़रवरी, 2014 | ||
+ | [[चित्र:Bahut-se-mata-pita-facebook-post.jpg|250px|right]] | ||
<poem> | <poem> | ||
बहुत से माता-पिता, अपने अभिभावक होने के अति उत्साह में अपने बच्चों कि लिए बहुत से फ़ैसले करने की सुविधा को अपना अधिकार समझने लगते हैं। | बहुत से माता-पिता, अपने अभिभावक होने के अति उत्साह में अपने बच्चों कि लिए बहुत से फ़ैसले करने की सुविधा को अपना अधिकार समझने लगते हैं। | ||
पंक्ति 27: | पंक्ति 24: | ||
माता-पिता को चाहिए कि बच्चों को इस लायक़ बनाएँ कि वे स्वयं अच्छा बुरा तय कर सकें। | माता-पिता को चाहिए कि बच्चों को इस लायक़ बनाएँ कि वे स्वयं अच्छा बुरा तय कर सकें। | ||
</poem> | </poem> | ||
− | |||
− | |||
|- | |- | ||
| | | | ||
+ | ; दिनांक- 21 फ़रवरी, 2014 | ||
+ | [[चित्र:Krishna-16-kalayen-facebook-post.jpg|250px|right]] | ||
<poem> | <poem> | ||
मेरे प्रिय मित्र ने मुझसे प्रश्न किया है कि भगवान कृष्ण की सोलह कलाएँ कौन-कौन सी थीं? | मेरे प्रिय मित्र ने मुझसे प्रश्न किया है कि भगवान कृष्ण की सोलह कलाएँ कौन-कौन सी थीं? | ||
पंक्ति 41: | पंक्ति 38: | ||
'शास्त्र' शब्द को कला ने बहुत सहजता के साथ बदल दिया पाक शास्त्र , सौंदर्य शास्त्र, शिल्प शास्त्र आदि सब क्रमश: पाक कला, सौन्दर्य कला, शिल्प कला आदि हो गए। | 'शास्त्र' शब्द को कला ने बहुत सहजता के साथ बदल दिया पाक शास्त्र , सौंदर्य शास्त्र, शिल्प शास्त्र आदि सब क्रमश: पाक कला, सौन्दर्य कला, शिल्प कला आदि हो गए। | ||
</poem> | </poem> | ||
− | |||
− | |||
|- | |- | ||
| | | | ||
+ | ; दिनांक- 21 फ़रवरी, 2014 | ||
+ | [[चित्र:Ishwar-hai-ya-nahi-facebook-post.jpg|250px|right]] | ||
<poem> | <poem> | ||
ईश्वर के विषय में मुझसे बार-बार कई प्रश्न पूछे गए हैं- | ईश्वर के विषय में मुझसे बार-बार कई प्रश्न पूछे गए हैं- | ||
पंक्ति 56: | पंक्ति 53: | ||
ईश्वर की खोज के साधन उपलब्ध नहीं हैं। जिन साधनों से ईश्वर प्राप्ति की बात की जाती है वे सभी ज्ञात साधन हैं। अज्ञात की खोज कभी ज्ञात साधनों की सहायता से नहीं होती। | ईश्वर की खोज के साधन उपलब्ध नहीं हैं। जिन साधनों से ईश्वर प्राप्ति की बात की जाती है वे सभी ज्ञात साधन हैं। अज्ञात की खोज कभी ज्ञात साधनों की सहायता से नहीं होती। | ||
</poem> | </poem> | ||
− | |||
− | |||
|- | |- | ||
| | | | ||
+ | ; दिनांक- 11 फ़रवरी, 2014 | ||
+ | [[चित्र:Teri-shoharaten-facebook-post.jpg|250px|right]] | ||
<poem> | <poem> | ||
तेरी शोहरतें हैं चारसू, तू हुस्न बेपनाह है | तेरी शोहरतें हैं चारसू, तू हुस्न बेपनाह है | ||
पंक्ति 66: | पंक्ति 63: | ||
हासिल है आसमाँ तुझे, मिलती ज़मीं कोई नहीं | हासिल है आसमाँ तुझे, मिलती ज़मीं कोई नहीं | ||
</poem> | </poem> | ||
− | |||
− | |||
|- | |- | ||
| | | | ||
+ | ; दिनांक- 5 फ़रवरी, 2014 | ||
+ | [[चित्र:Man-me-bhay-facebook-post.jpg|250px|right]] | ||
<poem> | <poem> | ||
प्रश्न किया गया है कि- मन में भय कब आता है? | प्रश्न किया गया है कि- मन में भय कब आता है? | ||
पंक्ति 79: | पंक्ति 76: | ||
आपने वह विज्ञापन देखा होगा कि 'डर के आगे जीत है' इसका अर्थ ही यह है कि आपके मन में भय के उत्पन्न होने का कारण आपके द्वारा किया गया कोई संकल्प है। | आपने वह विज्ञापन देखा होगा कि 'डर के आगे जीत है' इसका अर्थ ही यह है कि आपके मन में भय के उत्पन्न होने का कारण आपके द्वारा किया गया कोई संकल्प है। | ||
</poem> | </poem> | ||
− | |||
− | |||
|- | |- | ||
| | | | ||
+ | ; दिनांक- 5 फ़रवरी, 2014 | ||
+ | [[चित्र:Siddhantvadi-facebook-post.jpg|250px|right]] | ||
<poem> | <poem> | ||
सिद्धांतवादी, आदर्शवादी और परम्परावादी व्यक्ति का अहिंसक होना बड़ा कठिन है। | सिद्धांतवादी, आदर्शवादी और परम्परावादी व्यक्ति का अहिंसक होना बड़ा कठिन है। | ||
पंक्ति 88: | पंक्ति 85: | ||
यहाँ तक कि जो किसी आदर्श या परम्परा के कारण ही अहिंसा में विश्वास करते हैं उनमें भी हिंसा का एक अलग रूप होता है। | यहाँ तक कि जो किसी आदर्श या परम्परा के कारण ही अहिंसा में विश्वास करते हैं उनमें भी हिंसा का एक अलग रूप होता है। | ||
</poem> | </poem> | ||
− | |||
− | |||
|- | |- | ||
| | | | ||
+ | ; दिनांक- 4 फ़रवरी, 2014 | ||
+ | [[चित्र:Sache-premi-premika-ki-pahchan-facebook-post.jpg|250px|right]] | ||
<poem> | <poem> | ||
मुझसे प्रश्न पूछा गया है कि सच्चे प्रेमी/प्रेमिका और सच्चे मित्र की पहचान कैसे हो? | मुझसे प्रश्न पूछा गया है कि सच्चे प्रेमी/प्रेमिका और सच्चे मित्र की पहचान कैसे हो? | ||
पंक्ति 101: | पंक्ति 98: | ||
हम प्यार 'पाने' के प्रयास में अधिक रहते हैं, प्यार 'करने' के प्रयास में कम। इसी तरह मित्रता भी। हम जब कभी स्वयं की भावनाओं का विश्लेषण करें तो हम पाएँगे कि जिससे हम प्यार करते हैं वह हमारे साथ धोखा कर ही नहीं सकता। यदि आपको धोखे की संभावना दिखाई दे रही है तो इसका अर्थ है कि आप कुछ पाना चाहते हैं और कुछ पाने की चाह ही प्रेम और मित्रता की सबसे बड़ी शत्रु है। | हम प्यार 'पाने' के प्रयास में अधिक रहते हैं, प्यार 'करने' के प्रयास में कम। इसी तरह मित्रता भी। हम जब कभी स्वयं की भावनाओं का विश्लेषण करें तो हम पाएँगे कि जिससे हम प्यार करते हैं वह हमारे साथ धोखा कर ही नहीं सकता। यदि आपको धोखे की संभावना दिखाई दे रही है तो इसका अर्थ है कि आप कुछ पाना चाहते हैं और कुछ पाने की चाह ही प्रेम और मित्रता की सबसे बड़ी शत्रु है। | ||
</poem> | </poem> | ||
− | |||
− | |||
|} | |} | ||
|} | |} |
10:07, 10 फ़रवरी 2017 के समय का अवतरण
फ़ेसबुक अपडेट्स
सितंबर 2013 • अक्तूबर 2013 • नवंबर 2013 • दिसंबर 2013 • जनवरी 2014 • फ़रवरी 2014 • मार्च 2014 • अप्रॅल 2014 • मई 2014 • जून 2014 • जुलाई 2014 • अगस्त 2014 • सितंबर 2014 • अक्टूबर 2014 • नवंबर 2014 • दिसंबर 2014 • जनवरी 2015 • फ़रवरी 2015 • मार्च 2015 • अप्रॅल 2015 • मई 2015 • जून 2015 • जुलाई-सितम्बर 2015 • अक्टूबर-दिसम्बर 2015 • जनवरी-जून 2016 • जुलाई-दिसम्बर 2016 • जनवरी-मार्च 2017 • अप्रैल 2017 • मई-दिसंबर 2017
|
शब्दार्थ